हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: डी फार्मा की काउंसिलिंग प्रक्रिया रद्द, जानें पूरा मामला

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने डी फार्मा कोर्स की काउंसिलिंग प्रक्रिया को रद्द करते हुए फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) को दो सप्ताह के भीतर लंबित आवेदनों पर निर्णय देने का आदेश दिया है। यह आदेश रामनेवाज सिंह फार्मेसी कॉलेज सहित पांच संस्थानों की याचिका पर सुनाया गया।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 11 July 2025, 8:15 AM IST
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Lucknow News: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने फार्मेसी कॉलेजों को डी फार्मा कोर्स की मंजूरी न देने के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इस आधार पर पूरी काउंसिलिंग प्रक्रिया को रद्द कर दिया है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के अनुसार, जब कॉलेजों के आवेदन लंबित हैं, तो बिना मंजूरी के काउंसिलिंग की कोई वैधानिकता नहीं बनती।

दो हफ्ते में निर्णय देने का निर्देश

न्यायमूर्ति पंकज भाटिया की एकल पीठ ने अपने आदेश में फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) को निर्देश दिया कि वह कॉलेजों के लंबित आवेदनों पर दो सप्ताह के भीतर आदेश पारित करे। कोर्ट ने कहा कि जब तक पीसीआई से मान्यता नहीं मिलेगी, तब तक कॉलेज संबद्धता भी नहीं ले सकते, जिससे विद्यार्थियों का भविष्य अधर में लटक सकता है।

इन कॉलेजों की याचिका मंजूर

यह फैसला अयोध्या स्थित रामनेवाज सिंह फार्मेसी कॉलेज समेत पांच फार्मेसी कॉलेजों द्वारा दाखिल याचिका पर सुनाया गया है। इन कॉलेजों ने कहा था कि उन्होंने डी फार्मा कोर्स के संचालन के लिए पीसीआई के पास समय से आवेदन किया था, लेकिन पीसीआई ने मौजूदा सत्र में कोई निर्णय नहीं लिया।

बिना मंजूरी के काउंसिलिंग प्रक्रिया अनुचित

याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि जब तक आवेदन पर निर्णय नहीं होता, तब तक कॉलेज काउंसिलिंग में भाग नहीं ले सकते, और ऐसे में काउंसिलिंग प्रक्रिया प्रारंभ करना अव्यवस्थित और गैरकानूनी है। यह विद्यार्थियों और संस्थानों दोनों के साथ अन्याय है।

राज्य सरकार और पीसीआई के अधिवक्ता भी कोर्ट में पेश

सुनवाई के दौरान राज्य सरकार और फार्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के अधिवक्ता भी कोर्ट में उपस्थित रहे। उन्होंने अपना पक्ष रखा, लेकिन कोर्ट ने पूर्ववर्ती निर्णयों और तथ्यों का हवाला देकर याचिकाकर्ताओं की बात को उचित माना।

पीसीआई को नीतिगत निर्णय लेने के निर्देश भी

कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि फार्मेसी काउंसिल को केवल इन मामलों में ही नहीं, बल्कि आगे के लिए भी स्पष्ट और पारदर्शी नीति बनाने की जरूरत है। इसके लिए उसे समुचित स्तर पर नीतिगत निर्णय लेने का निर्देश दिया गया है ताकि भविष्य में छात्रों और संस्थानों को असमंजस का सामना न करना पड़े।

पीसीआई की कार्यप्रणाली पर सवाल

हाईकोर्ट के इस फैसले से उन छात्रों और कॉलेजों को राहत मिली है जो कई महीनों से अनिश्चितता का सामना कर रहे थे। साथ ही, यह फैसला पीसीआई की कार्यप्रणाली और जवाबदेही पर भी सवाल खड़े करता है, जो उच्च शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता और नियमन की सख्त आवश्यकता को दर्शाता है।

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