Opinion: पलायन करते मजदूर अपनी पीड़ा कहें तो कहें किससे?
स्तब्ध हूँ, नि:शब्द हूँ, किन्तु अन्तर्मन की पीड़ा के ज्वार को रोकने में असमर्थ हूँ। 14 अप्रैल को लॉकडाउन बढ़ा, अपेक्षित था और अनिवार्य भी। लॉकडाउन बढ़ने की घोषणा के साथ ही शिक्षित सम्पन्न बुद्धिजीवी वर्ग चाय की चुस्कीयों के साथ, देश-दुनिया की वर्तमान स्थिति पर पैनी नज़र रखते हुये घर पर आगामी 19 दिनों की रूपरेखा बनाने में व्यस्त था। अचानक टेलीविज़न पर समाचार वाचकों के स्वर में तल्खी ने संभवतया सभी का ध्यान उस ओर केन्द्रित किया, यह क्या? हजारों की संख्या में प्रवासी श्रमिकों का हुजूम मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर एकत्रित देखा गया वैसे ही प्रवासी मजदूरों के हुजूम सूरत, अहमदाबाद और ठाणे आदि में भी देखे जाने की सूचनाएँ मिली|