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The MTA Speaks: सियासी तूफान का रुख ले रहा है SIR विवाद, संसद में विपक्ष का हंगामा जारी

बिहार एसआईआर विवाद ने दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले राजनीतिक उथल-पुथल मचा दी है। इंडिया ब्लॉक के नेताओं समेत विपक्षी दलों ने एसआईआर का विरोध किया है। वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबरेवाल आकाश का गहन विश्लेषण देखें।
Post Published By: Poonam Rajput
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The MTA Speaks: सियासी तूफान का रुख ले रहा है SIR विवाद, संसद में विपक्ष का हंगामा जारी

New Delhi: राजधानी दिल्ली में इस समय संसद से लेकर सड़क तक बस एक ही मुद्दा गूंज रहा हैऔर वो है बिहार में चल रही विशेष गहन समीक्षा (SIR) और उसके विरोध में विपक्षी दलों का प्रदर्शन। विपक्षी गठबंधन इंडिया ब्लॉक के नेता सुबह लगभग 11:30 बजे संसद भवन के मकर द्वार से नारे लगाते हुए निकले। राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, मल्लिकार्जुन खड़गे, अखिलेश यादव, डिंपल यादव, धर्मेंद्र यादव, संजय राउत, डीएमके, आरजेडी, सीपीआई-एमएल और आम आदमी पार्टी के नेता बैनर-पोस्टर लेकर सड़कों पर उतर आए।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज टिबड़ेवाल आकाश ने अपने शो ‘द एमटीए स्पीक्स’ में बताया कि पोस्टरों पर ‘वोट चोरी बंद करो, लोकतंत्र बचाओ और चुनाव आयोग – जनता को जवाब दो’ के नारे लिखे थे। बिहार में इन सभी का दावा है कि SIR के नाम पर हज़ारों नाम मनमाने ढंग से मतदाता सूची से हटाए जा रहे हैं। ज़्यादातर मतदाता पिछड़े, अल्पसंख्यक, दलित, गरीब और मज़दूर वर्ग से हैं। विपक्ष का दावा है कि यह चुनाव से पहले भाजपा समर्थक वर्गों को हटाने की एक सोची-समझी साजिश है।इन सभी का आरोप है कि बिहार में SIR के नाम पर मतदाता सूची से लाखों नाम बिना सूचना हटाए जा रहे हैं। यह नाम अधिकतर गरीब, मजदूर, दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय के मतदाताओं के हैं। विपक्ष का कहना है कि यह एक सुनियोजित साजिश है, ताकि भाजपा के खिलाफ वोट डालने वाले तबकों को चुनाव से पहले ही बाहर कर दिया जाए।

कब हुई पूरे विवाद की शुरूआत

दरअसल इस पूरे विवाद की शुरुआत जून 2025 में हुई, जब चुनाव आयोग ने अचानक बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण का ऐलान किया। आयोग ने कहा कि यह एक नियमित प्रक्रिया है, जो समय-समय पर होती है, ताकि मतदाता सूची को अद्यतन और त्रुटिरहित रखा जा सके। SIR के तहत बूथ लेवल ऑफिसर घर-घर जाकर मतदाताओं की जानकारी की पुष्टि करते हैं, दोहराए गए नाम हटाते हैं, पता बदल चुके मतदाताओं को सूची से निकालते हैं और नए पात्र मतदाताओं को जोड़ते हैं। आयोग का तर्क है कि इस बार बिहार में यह इसलिए जरूरी था क्योंकि राज्य में बड़े पैमाने पर शहरीकरण और प्रवासन हुआ है, जिससे मतदाता सूची में कई गड़बड़ियां और दोहराव आ गए हैं। आयोग का दावा है कि 5.7 करोड़ मोबाइल यूजर्स को SMS भेजकर जानकारी दी गई, अखबारों और रेडियो पर विज्ञापन चलाए गए और हर व्यक्ति को नाम जुड़वाने या हटने से बचाने का मौका दिया गया।

लेकिन विपक्ष को आयोग की दलीलों पर भरोसा नहीं। उनका कहना है कि इस बार SIR के तहत करीब 65 लाख नाम हटाने की योजना है, और हटने वाले नामों का सबसे ज्यादा असर कमजोर तबकों पर पड़ेगा। विपक्ष ने आरोप लगाया कि दस्तावेजों के नाम पर गरीब और अशिक्षित लोगों को परेशान किया जा रहा है, कई को यह भी नहीं पता कि उनका नाम सूची से हटाया जा चुका है। यही कारण है कि इसे वे ‘वोट चोरी’ कह रहे हैं।

इंडिया ब्लॉक का मकसद था संसद से चुनाव आयोग तक मार्च करना और वहां जाकर ज्ञापन सौंपना। लेकिन दिल्ली पुलिस ने उन्हें बीच रास्ते में ही रोक दिया। पुलिस का कहना था कि इस मार्च के लिए कोई अनुमति नहीं दी गई थी। नतीजा यह हुआ कि संसद मार्ग पर भारी संख्या में बैरिकेड लगाए गए, पुलिस बल तैनात रहा और विपक्षी नेता वहीं धरने पर बैठ गए। इस दौरान माहौल में तनाव बढ़ा। अखिलेश यादव अचानक बैरिकेड पर चढ़े और इसे फांदकर आगे की तरफ बढ़ गये, तो डिंपल यादव और प्रियंका गांधी वाड्रा कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ने के लिए उत्साहित कर रही थीं। कुछ देर बाद पुलिस ने राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, अखिलेश यादव, डिंपल यादव, धर्मेन्द्र यादव, संजय राउत समेत तमाम नेताओं को हिरासत में ले लिया और बसों में भरकर उन्हें अलग-अलग थानों में ले जाया गया।

संसद की कार्यवाही पर विरोध का असर

इस विरोध का असर संसद की कार्यवाही पर भी पड़ा। लोकसभा और राज्यसभा दोनों में विपक्षी सांसदों ने SIR के मुद्दे पर नारेबाजी की, जिससे कार्यवाही कई बार बाधित हुई। स्पीकर और सभापति ने विपक्ष से शांत होने की अपील की, लेकिन नारेबाजी थमी नहीं और अंततः दोनों सदनों की बैठकें स्थगित करनी पड़ीं। इस हंगामे के बीच लोकसभा ने गोवा में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण से जुड़ा विधेयक बिना बहस पारित कर दिया, जिस पर विपक्ष ने सवाल उठाए।
राहुल गांधी ने पुलिस हिरासत में जाते हुए मीडिया से कहा कि यह लड़ाई किसी दल की नहीं, बल्कि संविधान और हर नागरिक के ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ के अधिकार की रक्षा की लड़ाई है। उन्होंने कहा कि अगर आज यह प्रक्रिया बिना रोक के चलने दी गई, तो कल देश के किसी भी हिस्से में सत्ता पक्ष इसी तरह विपक्षी वोट बैंक को खत्म कर देगा। मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे भाजपा और चुनाव आयोग की मिलीभगत करार दिया और कहा कि इंडिया ब्लॉक इस साजिश को नाकाम करेगा। तृणमूल कांग्रेस के अभिषेक बनर्जी ने कहा कि वे किसी भी पार्टी के साथ खड़े होंगे जो SIR का विरोध करेगी, चाहे वह किसी भी राज्य की हो। आम आदमी पार्टी के संजय सिंह ने भी कहा कि भले ही उनकी पार्टी अब इंडिया ब्लॉक का हिस्सा नहीं है, लेकिन SIR लोकतंत्र खत्म करने की साजिश है और इस मुद्दे पर वे विपक्ष के साथ हैं।

चुनाव आयोग  का कहना

उधर चुनाव आयोग का कहना है कि SIR का मकसद सिर्फ मतदाता सूची को शुद्ध करना और उसे अद्यतन रखना है। इसमें किसी विशेष वर्ग या समुदाय को निशाना नहीं बनाया जा रहा। आयोग का दावा है कि प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी है और किसी का नाम हटाने से पहले सभी जरूरी नोटिस और अवसर दिए जा रहे हैं। आयोग के अधिकारी यह भी कहते हैं कि अगर किसी का नाम गलती से हट भी गया है, तो वह फॉर्म भरकर और दस्तावेज जमा कराकर दोबारा जोड़ा जा सकता है। लेकिन विपक्ष इस स्पष्टीकरण से संतुष्ट नहीं। उनका कहना है कि प्रक्रिया भले ही कागज पर पारदर्शी हो, लेकिन जमीन पर इसका इस्तेमाल चुनिंदा मतदाताओं को बाहर करने के लिए हो रहा है। वे इसे बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा को लाभ पहुंचाने की रणनीति मानते हैं।

आगे क्या होगा?

अब सवाल है कि आगे क्या होगा। विपक्ष इस मुद्दे को संसद, सड़क और अदालत – तीनों मोर्चों पर उठाने की तैयारी कर रहा है। सुप्रीम कोर्ट या पटना हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर होने की संभावना है, जिनमें SIR की वैधता और पारदर्शिता को चुनौती दी जा सकती है। बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक आते-आते यह मुद्दा और गरमाने वाला है, क्योंकि इसके जरिए विपक्ष जनता के बीच यह संदेश देना चाहता है कि सत्ता पक्ष मताधिकार पर हमला कर रहा है।
राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर यह विवाद लंबा खिंचता है, तो इसका असर सिर्फ बिहार ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ेगा। SIR को लेकर विपक्ष की एकजुटता, भाजपा और चुनाव आयोग पर सीधा हमला, और सड़क पर उतरने की रणनीति – ये सभी आने वाले महीनों में चुनावी माहौल को और ज्यादा तीखा करने वाले हैं।

आज का दिन इस बात का सबूत है कि SIR का मामला सिर्फ एक तकनीकी प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि अब यह एक बड़ा राजनीतिक हथियार बन चुका है, जिसे विपक्ष सरकार के खिलाफ पूरी ताकत से इस्तेमाल करने जा रहा है। अगले कुछ हफ्तों में इस मुद्दे पर और प्रदर्शन, धरने, रैलियां और कानूनी लड़ाइयां देखने को मिल सकती हैं। और अगर यह विवाद सुलझा नहीं, तो यह 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव और 2029 के आम चुनाव दोनों में एक अहम चुनावी मुद्दा बन सकता है।
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