यासीन मलिक को जेल से वीडियो कांफ्रेंस के जरिए पेश करने की इजाजत, जानिये आतंकवाद का मामला
दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को निर्देश दिया कि आतंकवाद के वित्त-पोषण के एक मामले में, यासीन मलिक के लिए मौत की सजा की मांग करने वाली राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की याचिका पर सुनवाई के संबंध में अलगाववादी नेता को जेल से वीडियो कांफ्रेंस के जरिए उसके समक्ष पेश किया जाए। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
नयी दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को निर्देश दिया कि आतंकवाद के वित्त-पोषण के एक मामले में, यासीन मलिक के लिए मौत की सजा की मांग करने वाली राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) की याचिका पर सुनवाई के संबंध में अलगाववादी नेता को जेल से वीडियो कांफ्रेंस के जरिए उसके समक्ष पेश किया जाए।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार, सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए जेल अधीक्षक की ओर से दायर किए गए एक आवेदन को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि आतंकवाद के वित्त-पोषण के मामले में जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के प्रमुख को व्यक्तिगत रूप से पेश करने की आवश्यकता नहीं है। साथ ही पीठ ने मलिक को प्रत्यक्ष रूप से पेश करने की मांग के संबंध में पूर्व में जारी आदेश में संशोधन कर दिया। इस पीठ में न्यायामूर्ति अनीश दयाल भी हैं।
पीठ ने आदेश दिया, ‘‘मामले को ध्यान में रखते हुए 29 मई 2023 के आदेश को आवश्यक रूप से संशोधित किया जाता है। जेल अधीक्षक को यासीन मलिक को व्यक्तिगत रूप से पेश करने के बजाय नौ अगस्त को वीडियो कांफ्रेंस के जरिए पेश करने का निर्देश दिया जाए।’’
अदालत ने तिहाड़ जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे मलिक को नौ अगस्त को पेश करने के लिए 29 मई को उस वक्त वारंट जारी किया था, जब अलगाववादी नेता की सजा बढ़ाने के लिए एनआईए की ओर से दी गई याचिका सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थी।
दिल्ली सरकार के स्थायी वकील ने अदालत को बताया था कि राष्ट्रपति द्वारा एक आदेश दिया गया था कि मलिक को 'तिहाड़ जेल से नहीं हटाया जा सकता'।
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उन्होंने यह भी बताया कि उच्चतम न्यायालय ने मलिक को हाल ही में व्यक्तिगत रूप से पेश करने पर नाराजगी व्यक्त की थी।
आदेश में संशोधन का अनुरोध करते हुए जेल प्रशाासन ने कहा था कि मलिक एक ‘‘बेहद उच्च जोखिम वाला कैदी’’ है और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए जरूरी है कि उसे अदालत में व्यक्तिगत रूप से पेश न किया जाए।
आतंकवाद के वित्तपोषण मामले में तिहाड़ जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख यासीन मलिक को 21 जुलाई को जब उच्चतम न्यायालय में पेश किया गया था तब सभी लोग हतप्रभ रह गए थे।
मलिक को अदालत की अनुमति के बिना कारागार के वाहन में उच्चतम न्यायालय परिसर में लाया गया था और इस वाहन को सशस्त्र सुरक्षाकर्मियों ने सुरक्षा दी हुई थी। मलिक के अदालत कक्ष में कदम रखते ही वहां मौजूद सभी लोग हैरान रह गए।
मलिक की मौजूदगी पर आश्चर्य जताते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति सूर्यकांत तथा न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ से कहा था कि उच्च जोखिम वाले दोषियों को अपने मामले की व्यक्तिगत तौर पर पैरवी करने के लिए अदालत कक्ष में आने की मंजूरी देने की एक प्रक्रिया है।
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मेहता ने मलिक को एक मुकदमे की सुनवाई के लिए उच्चतम न्यायालय लाये जाने के बाद केन्द्रीय गृह सचिव अजय भल्ला को शुक्रवार को पत्र लिखकर ‘सुरक्षा में गंभीर चूक’ से अवगत कराया था।
मेहता ने लिखा था, ‘‘मेरा स्पष्ट विचार है कि यह सुरक्षा में गंभीर खामी है। आतंकवादी और अलगाववादी पृष्ठभूमि वाला यासीन मलिक न सिर्फ आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन उपलब्ध कराने के मामले का दोषी है, बल्कि जिसके पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध हैं। पेशी के लिए लाए जाते समय वह भाग सकता था या उसे जबरन अगवा किया जा सकता है या फिर उसकी हत्या की जा सकती थी।’’
उन्होंने कहा कि अगर कोई अप्रिय घटना हो जाती तो उच्चतम न्यायालय की सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाती।
न्यायालय पूर्व केन्द्रीय गृह मंत्री दिवंगत मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबैया सईद के 1989 में हुए अपहरण के मामले में जम्मू की निचली अदालत द्वारा 20 सितंबर, 2022 को पारित आदेश के खिलाफ केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इसी दौरान यासीन मलिक अदालत कक्ष में उपस्थित हुआ था।