DN Exclusive: क्या चल रहा है भाजपा के दिमाग में? क्या यूपी के होंगे 4 टुकड़े?

डीएन ब्यूरो

इसमें कोई संदेह नहीं कि भाजपा फिर एक बार केंद्र की सत्ता में वासपी करना चाहती है। यह भी सच है कि केंद्र का रास्ता यूपी से होकर गुजरता है, इसलिये भाजपा लोकसभा चुनावों से पहले यूपी को लेकर कोई बड़ा दांव खेलने की फिराक में है। देश के सबसे बड़े राज्य यूपी को लेकर क्या हो सकता है भाजपा का दांव? पढ़ें, डाइनामाइट न्यूज़ की यह एक्सक्लूसिव रिपोर्ट..

यूपी का मानचित्र
यूपी का मानचित्र


नई दिल्लीः केंद्र की सत्ता में काबिज होने के लिये हर राजनीतिक दल की नजरें उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई है। भाजपा हर हाल में मोदी की अगुवाई में फिर एक बार केंद्र में काबिज होना चाहती है। इसके लिये यूपी की सबसे ज्यादा 80 सीटों पर उसकी नजरें है। भाजपा यह भी जानती है कि यूपी को पूरी तरह जीते बिना वह अपना लक्ष्य नहीं पा सकती है। भाजपा को ये भी मालूम है कि आगामी 2019 का चुनाव उसके लिये 2014 के चुनावों जैसा आसान नहीं है। यूपी को हर हाल में जीतकर फिर से दिल्ली पहुंचने के लिये भाजपा कोई बड़ा दांव खेलने की तैयारियों में लगी हुई है। डाइनामाइट न्यूज़ को जो अंदर की खबर पता लगी है वह यह है कि भाजपा यूपी को चार टुकड़ों में बांटने का दांव खेल सकती है, ताकि उसकी सत्ता की राह आसान हो जाये। 

यूपी को चार टुकड़ों में बांटने की भाजपा की कवायद अंदरूनी तौर पर शुरू हो गयी है। हाल ही में बीजेपी शासित प्रदेशों के राज्यपालों के साथ हुई महत्पूर्ण बैठक में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कांग्रेस मुक्त भारत और उत्तर प्रदेश में फिर से भगवाकरण और 2019 में होने वाले आम चुनाव को लेकर गहन मंथन किया। इस बैठक में यह बात निकलकर सामने आई कि लोकसभा चुनाव को लेकर भाजपा के खिलाफ यूपी में महागठबंधन तैयार हो रहा है, जिसमें कांग्रेस, सपा, बसपा और अन्य दल एक साथ चुनाव लड़ सकते है। जाहिर है, इससे भाजपा की मुश्किलें बढ़ेंगी।  

इस संभावित महागठबंधन को लेकर भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी सतर्क नजर आ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में बीजेपी बर्चस्व बनाये रखना चाहती है। कुछ सप्ताह पहले एक केन्द्रीय मंत्री जो बीजेपी में जाट नेताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, उन्होंने दिल्ली में अपने कार्यालय में जुलाई के आखिरी सप्ताह में कुछ चुनिंदा लोगों से बातचीत की थी। इस बैठक में मंत्री ने उपस्थित लोगों से कहा कि उनकी पार्टी और केंद्रीय सरकार के पास यूपी में महागठबंधन के रथ को रोकने के लिए कई विकल्प है।  

बीजेपी का चुनावी चिन्ह कमल 

तो बीजेपी खेल रही है यह दांव 

इन विकल्पों में जो सबसे कारगर दिख रहा है, वह यह कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अगर बीजेपी उत्तर प्रदेश को विभाजित कर 4 राज्यों में बांट दें तो यह महागठबंधन को मात देने का सबसे कारगर उपाय हो सकता है। 

यह भी माना जा रहा है कि आरएसएस यूपी को चार भागों में बांटने के विचार का समर्थन करेगा।  

उत्तर प्रदेश का मानचित्र

यानि यूपी के होने जा रहे हैं चार टुकड़े

अब जिस तरह से खाका तैयार किया जा रहा है उसके मुताबिक उत्तर प्रदेश को चार भागों में बाटंने की योजना है। अगर ऐसा होता है तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश जिसे हरित प्रदेश के नाम से जाना जाएगा और इसकी राजधानी मेरठ होगी। वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश को पूर्वांचल के नाम से जाना जाएगा इसकी राजधानी इलाहाबाद होगी। जबकि मध्य उत्तर प्रदेश को अवध प्रदेश के नाम से जाना जाएगा और इसकी राजधानी वर्तमान में जो यूपी की राजधानी है लखनऊ होगी। वहीं चौथे प्रदेश के रूप में दक्षिणी यूपी जिसे बुंदेलखंड के नाम से जाना जाएगा और इसकी राजधानी झांसी होगी।  

दिवंगत अटल विहारी बाजपेयी के साथ लाल कृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी (फाइल फोटो)

अटल,आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी की रणनीति पर हो रहा काम

वैसे प्रदेश को चार भागों में बांटने का विचार 1990 में अटल, आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की तिकड़ी को भी सुझा था। इन्होंने तब इसे राजनीतिक मुद्दा भी बनाया था। 1980 और उसके बाद 1996 में केंद्र में सत्ता का स्वाद चख चुकी जनता पार्टी की सरकार ने सत्ता में अपनी पकड़ को मजबूत करने के लिए विकसित छोटे राज्यों के सिद्धांत को स्वायत्ता के साथ प्रचारित किया। 

भारतीय संघ वाद में यह विचार कुछ हद तक यूपोरियन स्टेट की तरह एक विकल्प के रूप में देखा गया। हालांकि तब यह विचार सिर्फ इस राजनीतिक पार्टी को सुझा था यह कहना गलत होगा क्योंकि कई समय से देश के विभिन्न भागों में रहने वाले लोग नए प्रदेश बनाने की मांग करते हुए आए हैं। 

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नए प्रदेशों का नामकरण कर बीजेपी ने ऐसे चखा सत्ता का स्वाद

अटल विहारी बाजपेयी के नेतृत्व में 1999 में एनडीए की सरकार ने तीन बड़े राज्यों को तोड़कर इनसे तीन नए राज्यों की स्थापना को स्वीकृति प्रदान की थी। जिसमें उत्तर प्रदेश से निकलकर उत्तराखंड, मध्यप्रदेश से निकलकर छत्तीसगढ़ और बिहार जैसे बड़े राज्य से झारखंड का निर्माण किया गया। 

राज्यों के निर्माण के इस महत्वपूर्ण विचार ने बीजेपी की स्थिति को इन तीन राज्यों में से दो राज्यों में तभी से मजबूत किया और यह साफ दिखता है कि किस तरह से आज तब बनाए गए इन राज्यों में से 2 राज्यों में लंबे समय से सत्ता पर काबिज है। अब इसी रणनीति को एक बार फिर बीजेपी यूपी में अपनाना चाहती है। 

यूपी को चार भागों में बांटने से बीजेपी को होंगे दो फायदे 

इससे बीजेपी को दो फायदे होंगे-इससे जहां 2019 में यूपी में महागठबंधन बीजेपी के सामने कमजोर पड़ जाएगा वहीं प्रदेश के इन जगहों पर रहने वाले मतदाताओं को भी वास्तविक मुद्दे से भटक जाएगा। बीजेपी से जुड़े करीबी सूत्र के मुताबिक बीजेपी हाईकमान यानी पार्टी प्रमुख अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचार इस मामले में बहुत हद तक मेल खाते हैं।

इस पर दोनों को लगता है कि ऐसी स्थिति में न सिर्फ विपक्षी कांग्रेस पार्टी बल्कि इसके साथ- साथ छोटे दलों जैसे राष्ट्रीय लोक दल, अपना दला और पीस पार्टी समेत कई अन्य दल जो महागठबंधन में शामिल होकर अपनी स्थिति मजबूत करना चाहते हैं वो पूरी तरह से विखर जाएंगे और ये पार्टियां कमजोर पड़ जाएंगी। 

  

समाजवादी पार्टी का चुनाव चिन्ह

समाजवादी पार्टी 

बीजेपी को लग रहा है कि प्रदेश को चार भागों में बांटने के बाद जिस तरह आज बिहार में राष्ट्रीय जनता दल की हालत हुई पड़ी है, उसी तरह क्षेत्रीय दल जैसे बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी का भी यहीं हाल हो जाएगा। यहां ध्यान देने की बात यह है कि जब बिहार से अलग होकर झारखंड को बनाया गया था तब आरजेडी ने झारखंड में अपना आधार खो दिया था वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी बिहार में अपना आधार खो दिया। 

इसका नतीजा ये निकला की यहां तब अस्तित्वहीन बीजेपी ने इन दोनों राज्यों में तभी से अपनी पकड़ को मजबूत कर लिया था। यहीं हाल आंध प्रदेश में टीडीपी और टीआरएस का हुआ। आंध्र प्रदेश का बंटवारा होने के बाद जहां तेलगू देशम पार्टी आंध्र प्रदेश में अपना बहुमत खोया वहीं तेलंगाना राष्ट्र समिति सिर्फ तेलंगाना तक ही सीमित होकर रह गई। तब से बीजेपी इन दोनों राज्यों में इन दोनों क्षेत्रीय दलों के लिए नई चुनौती बनकर खड़ी हुई है। 

बीजेपी ऐसा आंकलन कर रही है कि अगर उत्तर प्रदेश को चार भागों में बांट दिया जाएगा तो इससे यहां महागठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी जो यूपी में बीजेपी के विस्तार के लिए एक बड़ी मुख्य चुनौती बनी हुई है इससे बहुत हद तक उसे परेशानी हो सकती है और बीजेपी की राह आसान।  

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बहुजन समाज पार्टी की सभा में जुटे लोग (फाइल फोटो)

मायावती के वोट बैंक पर लग सकती है सेंध

उत्तर प्रदेश के चार भागों में बंटने से बीजेपी मायावती के दलित वोट बैंक में भी सेंध लगा सकती है। लंबे समय से बीजेपी यूपी के 20-22 प्रतिशत दलित वोट बैंक में अपने नजर गढ़ाए हुए है। इसके लिए आरएसएस ने हिंदूकरण के नाम पर दलितों पर प्रभुत्व जमाया और गैर-धर्मनिरेपक्ष के नाम पर बीजेपी ने इसको आगे बढ़ाया। वहीं गैर-जाट/जाट को दलित समुदाय में विभाजित कर शहरी क्षेत्र में ऐसे समुदाय से उदित राज जैसे चेहरों को प्रमुखता दी और अब बीजेपी यही रणनीति यूपी में अख्तियार कर रही है। 

भाजपा मानती है कि अगर प्रदेश चार भागों में बंट जाएगा तो मायावती को नुकसान होगा और एक समुदाय के नाम पर वोट बैंक बनाने वाली मायावती के हाथ से बुंदेलखंड और पूर्वांचल में अपना वोट बैंक खो बैठेगी। वहीं आरएसएस को लगता है कि गैर जाट व जाट का विभाजन कर बीजेपी फिर से सत्ता पर काबिज हो जाएगी।  

कांग्रेस का चुनावी चिन्ह

यूपी में अमेठी-रायबरेली तक सीमित रह जाएगी कांग्रेस

सरकार में विपक्ष की भूमिका में खड़ी कांग्रेस राहुल गांधी के अध्यक्ष बनाए जाने के बाद एक नए रूप में नजर आई है। वहीं अब अगर बीजेपी यूपी को चार भागों में बांटती है तो इससे कांग्रेस सिर्फ अमेठी-रायबरेली तक ही सिमटकर रह जाएगी और इससे राहुल गांधी जो पार्टी के विस्तार का सपना देख रहे हैं इसे भी गहरा धक्का लग सकता है। 

बीजेपी की इस रणनीति को लेकर जब एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता से बातचीत की गई तो उनका कहना था कि फिलहाल कांग्रेस शांत होकर इस माहौल को देख रही है कि कब बीजेपी ऐसा करेगी। इस पर अभी से घबराने जैसी कोई बात है ही नहीं। वहीं कई कांग्रेसी नेताओं को यह डर भी सता रहा है कि अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस को यूपी में बहुत हद तक नुकसान होने वाला है।  

राष्ट्रीय लोक दल का चुनावी चिन्ह 

आरएलडी भी नहीं बचा पाएगी अपनी जमीन

जाटों के सर्मथन वाला दल राष्ट्री लोक दल (आरएलडी) जिसे पश्चिमी यूपी में जाटों का अच्छा खासा समर्थन हासिल है। यहां आरएलडी 27-30 प्रतिशत जाट वोट बैंक का चुनावों में कई बार स्वाद चख चुकी है। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी के नेतृत्व में व सांप्रदायिक लहर में सवार बीजेपी ने यहां जाट वोट बैंक को भी अपनी तरफ करने में सफलता पाई। हालांकि कुछ दिनों पहले कैराना लोकसभा के उपचुनाव में जनता के आक्रोश का बीजेपी को जरूर सामना करना पड़ा।

जिस वजह से यहां से आरएलडी की प्रत्याशी तब्बसुम बेगम ने जीत हासिल की। लेकिन अगर अब यह लोकसभा चुनाव से पहले हरित प्रदेश बन गया तो इससे जाट वोट बैंक भी आरएलडी के हाथ से चला जाएगा और बीजेपी अपने मकसद में कामयाब हो जाएगी।   

भारतीय संसद

क्या कहता है संविधान, संसद से कैसे मिलेगी स्वीकृति

संविधान के अनुच्छेद 3 के अनुसार किसी भी नए राज्य के निर्माण इसकी सीमाओं में बदलाव और मौजूदा राज्यों के नाम में परिवर्तन से संबंधित अधिकार संसद के पास है। लेकिन इस प्रक्रिया में संसद की भूमिका दूसरे नंबर पर है। पहले यूनियन कैबिनेट इस प्रस्ताव को राष्ट्रपति के पास भेजेगी। इसके बाद राष्ट्रपति इसे संबंधित विधानसभा में भेजेंगे।  राष्ट्रपति और संबंधित विधानसभा से यह प्रस्ताव अनुमोदित होने के बाद लोकसभा और राज्यसभा में भेजा जाएगा। वहां बहुमत से पास होने के बाद यह बिल स्वीकृत हो जाएगा और यूपी बड़ी आसानी से चार भागों में विभाजित हो जाएगा।
 










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