जम्मू-कश्मीर के दो डॉक्टर 2009 के ‘‘शोपियां बलात्कार’’ मामले में सबूत गढ़ने के आरोप में बर्खास्त

डीएन ब्यूरो

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने पाकिस्तान स्थित समूहों के साथ कथित तौर पर काम करने और 2009 के शोपियां बलात्कार मामले में सबूत गढ़ने को लेकर बृहस्पतिवार को दो डॉक्टरों को बर्खास्त कर दिया। अधिकारियों ने यहां यह जानकारी दी।

आरोप (फाइल)
आरोप (फाइल)


श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने पाकिस्तान स्थित समूहों के साथ कथित तौर पर काम करने और 2009 के 'शोपियां बलात्कार' मामले में सबूत गढ़ने को लेकर बृहस्पतिवार को दो डॉक्टरों को बर्खास्त कर दिया। अधिकारियों ने यहां यह जानकारी दी।

शोपियां में 30 मई 2009 को दो महिलाओं -आसिया और नीलोफर- के शव एक जलधारा में मिले थे। उसके बाद आरोप लगाया गया था कि सुरक्षाकर्मियों ने उनके साथ बलात्कार किया और फिर उनकी हत्या कर दी।

इस मामले को लेकर कश्मीर में 42 दिनों तक बंद की स्थिति थी। केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा इस मामले की जांच शुरू किए जाने के बाद स्थिति में सुधार हुआ था। जांच के दौरान स्पष्ट हुआ कि दोनों महिलाओं के साथ दुष्कर्म नहीं हुआ था और न ही उनकी हत्या की गई थी।

अधिकारियों ने कहा कि दो डॉक्टरों- डॉ बिलाल अहमद दलाल और डॉ. निघत शाहीन चिल्लू- को पाकिस्तान के साथ मिल कर काम करने और शोपियां की आसिया और नीलोफर की पोस्टमार्टम रिपोर्ट को गलत साबित करने के लिए साजिश रचने के कारण सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है।

उन्होंने कहा कि दोनों महिलाओं की 29 मई 2009 को डूबने से मौत हो गई थी।

उन्होंने कहा कि दोनों डॉक्टरों का मकसद सुरक्षा बलों पर बलात्कार और हत्या का झूठा आरोप लगाकर लोगों में असंतोष पैदा करना था।

सीबीआई ने सबूत गढ़ने और डूबने से हुई मौतों को बलात्कार और हत्या का रूप देने के लिए दोनों डॉक्टरों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया है।

अधिकारियों ने बताया कि अहमद शवों का पोस्टमार्टम करने वाले पहले डॉक्टर थे, जबकि चिल्लू पोस्टमार्टम करने वाली डॉक्टरों की दूसरी टीम में शामिल थे।

उन्होंने कहा कि चिकित्सा नैतिकता का घोर उल्लंघन करते हुए, चिल्लू ने अपना नमूना देकर उसे आसिया का नमूना बताया। चिल्लू ने दावा किया था कि आसिया के साथ बलात्कार किया गया और फिर उसकी हत्या कर दी गई।

एम्स की एक फोरेंसिक टीम ने शवों की फिर से जांच की और पाया कि आसिया के साथ दुष्कर्म नहीं किया गया था। इस टीम में डॉ. टी. डी. डोगरा और डॉ. अनुपमा रैना भी थे।

अधिकारियों के अनुसार यह रिपोर्ट सीबीआई के आरोपपत्र का हिस्सा थी।

सीबीआई ने दिसंबर 2009 में निष्कर्ष निकाला था कि दोनों महिलाओं के साथ न तो बलात्कार किया गया और न ही उनकी हत्या हुई थी।

सीबीआई ने सबूत गढ़ने के आरोप में छह डॉक्टरों, पांच वकीलों और दो अन्य लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया।

इस मामले को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के सिलसिले में पांच पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया था वहीं दो वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का तबादला कर दिया गया था। 66 पृष्ठों की सीबीआई रिपोर्ट में उन पुलिसकर्मियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया, जिन्हें मामले के सिलसिले में करीब 47 दिनों तक हिरासत में रखा गया था।

सीबीआई की रिपोर्ट में 13 लोगों पर सुरक्षा बलों के खिलाफ जनता का गुस्सा भड़काने के लिए आपराधिक साजिश रचने का आरोप लगाया गया है। इस मामले में न तो बलात्कार हुआ था और न ही हत्या, इसलिए सीबीआई रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यह कोई मामला नहीं था।

रिपोर्ट में कहा गया कि वकीलों ने साजिश रची और दो लोगों को गवाह बनने के लिए बाध्य किया।

सीबीआई की रिपोर्ट में इस बात का विस्तार से जिक्र है कि किस प्रकार वकीलों और मृतक महिलाओं में से एक के पति शकील के परिवार के सदस्यों ने उन दोनों पर दबाव डाला था।

 










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