लाखों शरणार्थियों की देखभाल करने वाले हिमांग्शु मोहन चौधरी का निधन, जानिये इस महान लोक सेवक के बारे में

डीएन ब्यूरो

वर्ष 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान उल्लेखनीय सेवाएं देने के लिए पद्मश्री से सम्मानित किए गए लोक सेवा अधिकारी हिमांग्शु मोहन चौधरी का अगरतला के एक निजी अस्पताल में उम्र संबंधी जटिलताओं के कारण मंगलवार को निधन हो गया। वह 83 साल के थे। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

लोक सेवा अधिकारी हिमांग्शु मोहन चौधरी (फाइल फोटो)
लोक सेवा अधिकारी हिमांग्शु मोहन चौधरी (फाइल फोटो)


अगरतला: वर्ष 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान उल्लेखनीय सेवाएं देने के लिए पद्मश्री से सम्मानित किए गए लोक सेवा अधिकारी हिमांग्शु मोहन चौधरी का अगरतला के एक निजी अस्पताल में उम्र संबंधी जटिलताओं के कारण मंगलवार को निधन हो गया। वह 83 साल के थे।

चौधरी को मार्च 1971 में पाकिस्तानी सेना द्वारा पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में क्रूर कार्रवाई शुरू किए जाने के बाद क्षेत्र छोड़कर भारत आए लाखों शरणार्थियों के लिए भोजन और आश्रय की व्यवस्था की निगरानी करने के लिए जाना जाता था।

उन्होंने मंगलवार को अंतिम सांस ली। उनकी दो बेटियां हैं। उनकी पत्नी का चार साल पहले निधन हो गया था।

चौधरी पद्मश्री से सम्मानित पूर्वोत्तर भारत के पहले व्यक्ति थे। त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा ने उनके निधन पर शोक व्यक्ति किया।

यह भी पढ़ें | Assembly Election 2023: चुनाव आयोग ने किया नागालैंड, मेघालय, त्रिपुरा विधानसभा चुनावों के लिए कार्यक्रमों का एलान

फेनी जिले (जो अब बांग्लादेश का हिस्सा है) में एक चिकित्सक के घर पर जन्मे चौधरी का परिवार 1930 में पलायन कर त्रिपुरा आ गया था। चौधरी ने त्रिपुरा के एमबीबी कॉलेज से शुरुआती पढ़ाई की और फिर उच्च शिक्षा के लिए कोलकाता चले गए।

कोलकाता से लौटने के बाद वह भारत सरकार में अधिकारी नियुक्त हो गए। बांग्लादेश में जब मुक्ति संग्राम छिड़ा, तब वह त्रिपुरा के सिपाहीजाला जिले के सोनमुरा उपखंड के एसडीओ थे।

हिमांग्शु के छोटे भाई स्नेहांशु मोहन चौधरी ने डाइनामाइट न्यूज़ को बताया, “चूंकि, सोनमुरा एक सीमावर्ती उपखंड है, लाखों बांग्लादेशियों ने पाकिस्तानी सेना से अपनी जान बचाने के लिए वहां शरण ली थी और वो चौधरी ही थे, जिन्होंने अकेले दम पर ढाई लाख बांग्लादेशी शरणार्थियों के लिए भोजन, आश्रय और रसद की व्यवस्था की निगरानी की थी।”

स्नेहांशु चौधरी ने कहा कि उनके बड़े भाई ने बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान महीनों बिना थके, बिना रुके काम किया और शरणार्थियों को वापस उनके देश भेजे जाने तक उनकी मूल जरूरतें पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

यह भी पढ़ें | त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब सड़क दुर्घटना में बाल-बाल बचे

उन्होंने याद किया, “युद्ध के दौरान बांग्लादेश के निर्वासित प्रधानमंत्री ताजुद्दीन अहमद के परिवार ने सोनमुरा में हिमांग्शु चौधरी के आधिकारिक आवास में शरण ली थी। अहमद की बेटी समीन हुसैन रिमी, जो अब बांग्लादेश की एक सांसद हैं, दिसंबर 2021 में चौधरी से मिलने भारत आई थीं और मुक्ति संग्राम के दौरान अपने परिवार को शरण देने के लिए उनका आभार जताया था।”

स्नेहांशु चौधरी ने बताया कि भारत सरकार ने 1971 में हिग्मांशु चौधरी को पद्मश्री से सम्मानित किया था, जबकि बांग्लादेश सरकार ने मुक्ति संग्राम में उनके योगदान को मान्यता देते हुए 2013 में उन्हें ‘फ्रेंड ऑफ बांग्लादेश’ पदक से अलंकृत किया था।










संबंधित समाचार