शीर्ष अदालत ने बहन समेत दो लोगों की हत्या करने वाले शख्स को दी गई मौत की सज़ा को उम्र कैद में बदला

डीएन ब्यूरो

उच्चतम न्यायालय ने एक शख्स को सुनाई गई मौत की सज़ा को शुक्रवार को उम्र कैद में बदल दिया। व्यक्ति 2017 में अपनी बहन और उसके प्रेमी की हत्या करने का दोषी है।

सज़ा उम्र कैद (फाइल)
सज़ा उम्र कैद (फाइल)


नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने एक शख्स को सुनाई गई मौत की सज़ा को शुक्रवार को उम्र कैद में बदल दिया। व्यक्ति 2017 में अपनी बहन और उसके प्रेमी की हत्या करने का दोषी है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसका “व्यवहार अच्छा’ पाया गया है और उसकी आपराधिक मानसिकता नहीं है।

न्यायमूर्ति बीआर गवई की अगुवाई वाली पीठ ने दो दोषियों की ओर से दायर अपील पर यह फैसला दिया है। एक दोषी को मौत की सज़ा सुनाई गई थी, जबकि दूसरे को उम्र कैद का दंड दिया गया था। उन्होंने बंबई उच्च न्यायालय के दिसंबर 2021 के फैसले को चुनौती दी थी।

उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले के खिलाफ उनकी अपील को खारिज कर दिया था और उनमें से एक को सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि की थी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि निचली अदालत के निष्कर्षों और उच्च न्यायालय के फैसले में दखल देना वांछित नहीं है। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सवाल सिर्फ इतना है कि मामला मौत की सज़ा देने के लिए दुर्लभतम मामले में आता है या नहीं ।

पीठ में न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति संजय करोल भी थे। उसने कहा कि दोनों अपीलकर्ताओं का आपराधिक इतिहास नहीं रहा है और मौत की सज़ा का सामना कर रहा दिगंबर घटना के वक्त 25 साल का युवा था।

पीठ ने कहा, “ चिकित्सीय साक्ष्य से यह भी पता चलता है कि अपीलकर्ता ने क्रूर तरीके से कृत्य नहीं किया है, क्योंकि दोनों मृतकों के (शवों पर) केवल एक ही चोट लगी है। इस प्रकार, हम पाते हैं कि यह 'दुर्लभतम' मामला नहीं माना जा सकता है।”

पीठ ने कहा, ‘‘ नांदेड़ के परिवीक्षा अधिकारी और नासिक रोड केंद्रीय जेल के अधीक्षक की रिपोर्ट बताती है कि अपीलकर्ता दिगंबर अच्छा व्यवहार करने वाला, मदद करने वाला और नेतृत्व के गुणों वाला व्यक्ति है। वह आपराधिक मानसिकता और आपराधिक रिकॉर्ड वाला व्यक्ति नहीं है।”

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसका मानना है कि उच्च न्यायालय और निचली अदालत ने मामले को दुर्लभतम मामला मानकर दिगंबर को मौत की सज़ा सुनाकर गलती की है।

पीठ ने कहा, “ हम दिगंबर की अपील को आंशिक रूप से मंजूर करने के इच्छुक हैं। जहां तक अपीलकर्ता मोहन के मामले का संबंध है, हमें इसमें दखल देने का कोई कारण नहीं मिला है। उसे उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई है।”

शीर्ष अदालत ने कहा कि दिगंबर की बहन का पांच साल से एक व्यक्ति के साथ प्रेम प्रसंग था और उसकी जून 2017 में अन्य व्यक्ति से शादी हुई और जुलाई 2017 में किसी को बताए बिना अपने पति का घर छोड़ कर चली गई, जिसके बाद उसके पति ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।

अदालत ने कहा कि हत्याओं को अंजाम देने के बाद दिगंबर ने थाने में आत्मसमर्पण कर दिया था।










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