शुरुआती दिन हमारे लिए बहुत कठिन थे: सिल्क्यारा सुरंग से निकले लोगों ने आपबीती साझा की
उत्तराखंड में सिलक्यारा सुरंग से निकाले गये 41 श्रमिकों में से एक पुष्कर सिंह ने बुधवार को कहा कि शुरुआती कई दिन उनके लिए बहुत कठिन थे क्योंकि उन्हें पर्याप्त भोजन के बिना रहना पड़ा था। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
उत्तरकाशी: उत्तराखंड में सिलक्यारा सुरंग से निकाले गये 41 श्रमिकों में से एक पुष्कर सिंह ने बुधवार को कहा कि शुरुआती कई दिन उनके लिए बहुत कठिन थे क्योंकि उन्हें पर्याप्त भोजन के बिना रहना पड़ा था।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक पुष्कर (24) ने बताया, ‘‘शुरुआती दिनों में न तो खाना मिला न ही अपनी बात पहुंचाने का कोई उचित माध्यम और हम केवल एक जोड़ी कपड़े में ही अंदर फंसे थे।’’
उत्तराखंड के चंपावत गांव के निवासी पुष्कर ने कहा, ‘‘जब हमें पता चला कि सुरंग का एक हिस्सा ढह गया है, तो हम बाहर निकलने की ओर भागे लेकिन यह मलबे से पूरी तरह से अवरुद्ध हो गया था।’’
वह सुरंग में मशीन ‘ऑपरेटर’ के तौर काम कर रहे थे।
पुष्कर के पिता किसान हैं। उसका एक बड़ा भाई और एक बड़ी बहन है।
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पुष्कर के भाई विक्रम सिंह और कुछ दोस्त उनके बाहर आने तक घटनास्थल पर डेरा डाले हुए थे।
विक्रम ने बताया कि पुष्कर ने पहले हिमाचल प्रदेश में एक सुरंग में काम किया था और वह एक साल से सिलक्यारा साइट पर काम कर रहा था।
पुष्कर ने बताया कि शुरुआती घंटे बहुत खौफनाक थे क्योंकि हर श्रमिक को लगता था कि वे बच नहीं पाएंगे।
पुष्कर ने कहा, ‘‘शुरुआत में, हमें लगा था कि हम ज्यादा समय तक बच नहीं पाएंगे क्योंकि हमें घुटन महसूस हो रही थी। लेकिन हमें पानी की मोटर पाइप में आशा की किरण मिली, जिसका इस्तेमाल सुरंग से पानी बाहर निकालने के लिए किया गया था।’’
पुष्कर ने कहा, पाइप उनके लिए वरदान साबित हुआ। उन्होंने कहा, ‘‘उस पाइप से हमने मोटर के जरिए पानी की सप्लाई बंद करके बाहर के लोगों को संकेत देने की कोशिश की। शुरुआती 12-13 घंटे ऐसा करने में ही निकल गए। फिर बाहर के लोगों को भी समझ आ गया कि हम में से कुछ लोग जिदा हैं।’’
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आखिरकार 20 नवंबर को छह इंच का पाइप डाला गया और सामान्य भोजन और कपड़ों की आपूर्ति शुरू हो गई।
सुरंग में 12 नवंबर को फंसे 41 श्रमिकों को 17 दिनों के जटिल अभियान के बाद मंगलवार को बचाया गया। बचाये गये श्रमिकों को चिकित्सा निगरानी में रखा गया है।