संकट में है इन खिलौना शिल्पकारों का अस्तित्व, चीनी प्रोडक्ट से लड़ना हो रहा मुश्किल
महाराष्ट्र के सावंतवाड़ी इलाके में रहने वाले अनेक लोगों का पुश्तैनी पेशा लकड़ी के खिलौने बनाना है, लेकिन अब इन शिल्पकारों का कहना है कि बाजार में कम कीमत वाले चीनी उत्पादों के आने से इनकी कला के अस्तित्व पर गंभीर संकट मंडरा रहा है। पढ़िए पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
सावंतवाड़ी: महाराष्ट्र के सावंतवाड़ी इलाके में रहने वाले अनेक लोगों का पुश्तैनी पेशा लकड़ी के खिलौने बनाना है, लेकिन अब इन शिल्पकारों का कहना है कि बाजार में कम कीमत वाले चीनी उत्पादों के आने से इनकी कला के अस्तित्व पर गंभीर संकट मंडरा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सितंबर 2020 को अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में सावंतवाड़ी खिलौनों का जिक्र किया था और इसके बाद सावंतवाड़ी नगर के इस उद्योग ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया था।
लोगों की बदलती रुचियों से परेशानी का सामना कर उहे खिलौना शिल्पकारों का कहना है कि करीब एक दशक पहले तक वे एक दिन में 25-50 खिलौने तक बेच लेते थे लेकिन यह संख्या अब घट कर दस के आसपास हो गई है।
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शिल्पकारों का कहना है कि मजबूत खिलौनों का यह उद्योग कम कीमत वाले ‘चीन निर्मित’’ उत्पादों, मजदूरी में बढ़ोतरी तथा कच्चे माल की बढ़ती कीमत आदि से संकटों से जूझ रहा है।
खिलौना शिल्पकार गणपत चितारी ने डाइनामाइट न्यूज़ से कहा कि चितारी समुदाय के लोगों को इस कला के प्रचार-प्रसार के लिए तत्कालीन राजा ने खासतौर पर कर्नाटक से सावंतवाड़ी बुलाया था। उन्होंने कहा, ‘‘ आपको कर्नाटक में और दक्षिण गोवा जिले के कंकोलिम गांव में चितारी परिवार मिल जाएंगे।’’
शिल्पकार ने कहा,‘‘ कुछ वर्ष पहले तक इन खिलौनों की अच्छी खासी मांग थी लेकिन अचानक चीन से खिलौने आयात होने के कारण हमारे खिलौनों की मांग घट गई। ग्राहकों को हमारे खिलौने मंहगे लगते हैं।’’
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इन शिल्पकारों के एक प्रतिनिधि मंजुनाथ गुडियार कहते हैं कि पूर्व में कच्चे माल की कीमत कम थी इसलिए खिलौनों की कीमतें भी कम रहती थीं। उन्होंने कहा कि अब लकड़ी की कीमत बढ़ गई है इसलिए खिलौनों की कीमत अधिक है और इनकी बिक्री कम हो गई है।