वरिष्ठ आदिवासी नेता नंद कुमार भाजपा को छोड़ कांग्रेस में शामिल, जानिये क्या है वजह

डीएन ब्यूरो

छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) छोड़ने के एक दिन बाद ​वरिष्ठ आदिवासी नेता नंद कुमार साय सोमवार को राज्य की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस में शामिल हो गए। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

आदिवासी नेता नंद कुमार साय कांग्रेस में शामिल
आदिवासी नेता नंद कुमार साय कांग्रेस में शामिल


रायपुर: छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) छोड़ने के एक दिन बाद ​वरिष्ठ आदिवासी नेता नंद कुमार साय सोमवार को राज्य की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस में शामिल हो गए।

साय का यह कदम छत्तीसगढ़ में इस वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मुख्य विपक्ष दल भाजपा के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है।

दो बार लोकसभा सदस्य और तीन बार विधायक रह चुके साय (77) पूर्व में छत्तीसगढ़ और अविभाजित मध्य प्रदेश में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। साय का राज्य के उत्तर छत्तीसगढ़ के (सरगुजा संभाग) आदिवासी बहुल हिस्सों में काफी प्रभाव है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार साय यहां कांग्रेस के प्रदेश मुख्यालय राजीव भवन में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मोहन मरकाम और राज्य के मंत्रियों की उपस्थिति में कांग्रेस में शामिल हुए।

साय ने रविवार को राज्य में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव के नाम अपना इस्तीफा भेजा था और दावा किया था कि उनके सहयोगी उनके खिलाफ साजिश रच रहे हैं तथा उनकी छवि धूमिल करने के लिए झूठे आरोप लगा रहे हैं। साय ने कहा था कि वह इससे दुखी हैं।

छत्तीसगढ़ के उत्तरी इलाके से आने वाले साय वर्षों तक भाजपा का प्रमुख आदिवासी चेहरा रहे हैं। वह पहली बार वर्ष 1977 में अविभाजित मध्य प्रदेश के तपकरा विधानसभा सीट (अब जशपुर जिले में) से जनता पार्टी की टिकट पर विधायक चुने गए थे।

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उन्हें 1980 में भाजपा ने रायगढ़ जिला इकाई प्रमुख नियुक्त किया। वह 1985 और 1998 में तपकरा विधानसभा सीट से भाजपा के विधायक चुने गए।

तपकरा क्षेत्र से विधायक चुने जाने के बाद भाजपा में साय का कद लगातार बढ़ता गया और वह 1989, 1996 और 2004 में रायगढ़ लोकसभा सीट से लोकसभा सदस्य भी रहे। बाद में पार्टी ने उन्हें 2009 और 2010 में राज्यसभा सदस्य भी बनाया।

साय 2003 से 2005 तक छत्तीसगढ़ भाजपा अध्यक्ष और 1997 से 2000 तक मध्यप्रदेश प्रदेश भाजपा अध्यक्ष रहे।

नवंबर 2000 में जब मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण हुआ तब वह छत्तीसगढ़ विधानसभा में प्रथम नेता प्रतिपक्ष चुने गए।

साय को 2017 में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था।

छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी को आधार देने में प्रमुख ​भूमिका निभाने वाले लखीराम अग्रवाल के करीबी रहे साय एक समय पार्टी के ‘पोस्टर बॉय’ माने जाते थे। वर्ष 2000 में राज्य​ बनने के बाद नेता प्रतिपक्ष नियुक्त होते ही वह राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ते थे।

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राज्य में जब पहली बार 2003 में विधानसभा का चुनाव हुआ तब उन्होंने अपनी परंपरागत सीट तपकरा से नहीं लड़कर मुख्यमंत्री जोगी के खिलाफ मरवाही से चुनाव लड़ने का फैसला किया। हालांकि वह इस चुनाव में हार गए लेकिन राज्य में पार्टी की सरकार बन गई।

साय अक्सर कहते थे कि उन्होंने पार्टी से दो स्थानों पर चुनाव लड़ने की मांग की थी लेकिन पार्टी ने उन्हें केवल मरवाही से ही चुनाव लड़वाया। इससे जोगी मरवाही में सिमट कर रह गए।

राज्य में रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद साय राज्य की राजनीति में वापस नहीं आ सके। वह समय समय पर अपनी ही सरकार के खिलाफ नाराजगी भी जाहिर करते रहे। रविवार को भाजपा से इस्तीफा देने और दूसरे दिन ही कांग्रेस पार्टी का दामन थामने के ​कारण भाजपा को बड़ा झटका लगा है।

राज्य में पार्टी से नाराजगी के चलते पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करूणा शुक्ला के बाद यह दूसरी बार है कि कोई कद्दावर नेता ने कांग्रेस में प्रवेश किया है।

छत्तीसगढ़ में इस वर्ष के अंत में विधानसभा चुनाव होना है, ऐसे में साय जैसे बड़े नेता के कांग्रेस में शामिल होने से भाजपा को सरगुजा क्षेत्र में परेशानी का सामना करना पड़ सकता है, जहां कांग्रेस के वरिष्ठ नेता टी एस सिंहदेव की नाराजगी के चलते भाजपा उम्मीद लगाये बैठी है।










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