DN Exclusive: नौतनवा के कुंवर बंधुओं में क्या वाकई में आयी है राजनीतिक दरार? चर्चाओं का बाजार गर्म
क्या वाकई महराजगंज जिले के नौतनवा निवासी कुंवर बंधुओं के बीच राजनीतिक टकराव है या फिर ये महज दिखावा है। ये सवाल उठ खड़ा है दोनों भाईयों के ताजा बयानों के बाद। डाइनामाइट न्यूज़ की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
नौतवना (महराजगंज): नौतनवा की राजनीति में एक समय सफल रहने वाले वाले कुंवर बंधुओं के सितारे लंबे वक्त से गर्दिश में चल रहे हैं। वजह है एक के बाद एक ताबड़तोड़ चुनावी हार।
इतना तक तो गनीमत था लेकिन घर के अंदर का राजनीतिक झगड़ा अब बीच सड़क पर आ गया है।
दोनों भाईयों कुंवर अखिलेश सिंह और कुंवर कौशल सिंह उर्फ मुन्ना सिंह ने राजनीतिक राहें अलग होने का ऐलान बाकायदे अलग-अलग पत्रकार वार्ता कर किया।
स्थानीय लोगों का एक बड़ा वर्ग इसे सोचा-समझा दिखावा बता रहा है। हकीकत क्या है...इसकी असलियत तो आने वाले दिनों में साफ होगी लेकिन चर्चाओं का बाजार पूरी तरह से गर्म है।
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डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार दोनों भाईयों ने कहा कि घर के अंदर व्यक्तिगत तौर पर दोनों एक हैं लेकिन राजनीतिक तौर पर अलग।
जब लोगों से इसकी पृष्ठभूमि के बारे में पूछा गया तो पता चला कि पिछले 20 वर्षों से कुंवर अखिलेश सिंह के राजनीतिक सितारे घनघोर अंधेरे के शिकार हो गये हैं। बीते 20 साल में उन्होंने एक भी चुनाव नही जीता है। उन्हें जीवन में सिर्फ एक बार सांसद बनने का मौका मिला वो भी 25 साल पहले 1999 में। तब उन्होंने मात्र 10,544 वोटों से चुनाव जीता था। इसके बाद 2004 और 2014 का दोनों चुनाव कुंवर ने समाजवादी पार्टी की राज्य में सरकार होते हुए लड़ा लेकिन दोनों ही बार वे बुरी तरह हारे। इसके बाद सपा ने 2019 में भी इन्हें मौका दिया तब सपा और बसपा दोनों का गठबंधन था लेकिन ये भाजपा से बहुत बुरी तरह 3 लाख 40 हजार 424 वोटों के बड़े अंतर से चुनाव हार गये।
2009 में सपा ने इन्हें टिकट देने लायक ही नहीं समझा। 2024 में किसी दल से इन्हें टिकट नहीं मिला और इनके एड़ी-चोटी का जोर लगा देने के बावजूद ये सही से अपना नामांकन तक निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में दाखिल नहीं कर पाये और इनका पर्चा जांच के दौरान खारिज हो गया। नामांकन खारिज होने के पीछे जिले भर में तरह-तरह की चर्चाएं तो थीं ही, इसी बीच इन्होंने शनिवार को अपने सगे छोटे भाई पर पर्चा खारिज होने का सार्वजनिक तौर पर आरोप मढ़ दिया। सच्चाई क्या है ये तो दोनों भाई जानें।
इधर कुंवर कौशल सिंह उर्फ मुन्ना सिंह ने अपने राजनीतिक जीवन में बहुत बार विधायकी का चुनाव लड़ा लेकिन जीत नसीब हुई सिर्फ एक बार। 1996, 2002, 2007, 2012, 2017 और 2022 लगातार 6 बार विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले मुन्ना सिंह 2012 को छोड़ हर बार चुनाव में बुरी तरह पराजित हुए और जनता ने इन्हें खारिज कर दिया। हद तो तब हो गयी जब ये सिटिंग विधायक होते हुए 2017 में विधानसभा का चुनाव एक निर्दलीय प्रत्याशी से बुरी तरह हार बैठे। यहां चौंकाने वाली बात यह रही कि 2017 में भाजपा की प्रचंड लहर थी और पूरे राज्य में भाजपा ने 325 सीट जीती थीं और ये अपना चुनाव भाजपा से नहीं बल्कि एक निर्दलीय प्रत्याशी से हारे थे।
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कुल मिलाकर इन दोनों भाईयों की राजनीतिक राहें जिस तरह से जुदा हुईं हैं उस पर प्रथम दृष्टया लोग यकीन नहीं कर रहे हैं और इसे सोची-समझी रणनीति मान रहे हैं।