जनवरी 2023 तक फास्ट-ट्रैक अदालतों में 2.43 लाख से अधिक पॉक्सो मामले लंबित: रिपोर्ट

डीएन ब्यूरो

केंद्र सरकार की मजबूत नीति और वित्तीय प्रतिबद्धता के बावजूद इस साल 31 जनवरी तक फास्ट-ट्रैक विशेष अदालतों (एफटीएससी) में पॉक्सो अधिनियम के तहत 2.43 लाख से अधिक मामले लंबित थे। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड
इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड


नयी दिल्ली: केंद्र सरकार की मजबूत नीति और वित्तीय प्रतिबद्धता के बावजूद इस साल 31 जनवरी तक फास्ट-ट्रैक विशेष अदालतों (एफटीएससी) में पॉक्सो अधिनियम के तहत 2.43 लाख से अधिक मामले लंबित थे। यह बात एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा प्रकाशित एक शोधपत्र में कही गई है।

इसमें कहा गया है कि 2022 में ऐसे मामलों की संख्या राष्ट्रीय स्तर पर मात्र तीन प्रतिशत रही, जिनमें दोषसिद्धि हुई।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड (आईसीपीएफ) द्वारा जारी शोधपत्र - 'न्याय प्रतीक्षा: भारत में बाल यौन शोषण के मामलों में न्याय वितरण तंत्र की प्रभावकारिता का विश्लेषण' में कहा गया है कि भले ही सूची में कोई नया मामला नहीं जुड़ा हो, लेकिन लंबित मामलों को निपटाने में देश को कम से कम नौ साल लगेंगे।

अरुणाचल प्रदेश और बिहार जैसे कुछ राज्यों में लंबित मामलों को निपटाने में 25 साल से अधिक का समय लग सकता है।

शोधपत्र के निष्कर्षों ने बाल यौन शोषण पीड़ितों को न्याय प्रदान करने के लिए फास्ट-ट्रैक विशेष अदालतें स्थापित करने के केंद्र सरकार के 2019 के ऐतिहासिक फैसले और करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद देश की न्यायिक प्रणाली की प्रभावशीलता पर एक बड़ा सवालिया निशान लगाया है।

इसमें कहा गया है कि वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए अरुणाचल प्रदेश को जनवरी 2023 तक यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत लंबित मामलों की सुनवाई पूरी करने में 30 साल लगेंगे, जबकि दिल्ली को 27 साल, पश्चिम बंगाल को 25 साल, मेघालय को 21 साल, बिहार को 26 साल और उत्तर प्रदेश को 22 साल लगेंगे।

वर्ष 2019 में स्थापित फास्ट-ट्रैक अदालतों को ऐसे मामलों की सुनवाई एक साल के भीतर पूरी करने के लिए कानूनी आदेश देना था और फिर भी कुल 2,68,038 मामलों में से केवल 8,909 मामलों में सजा हुई।

केंद्र सरकार ने हाल ही में 1,900 करोड़ रुपये से अधिक के बजटीय आवंटन के साथ 2026 तक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में एफटीएससी को जारी रखने की मंजूरी दी।

अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि देश में प्रत्येक एफटीएससी औसतन प्रति वर्ष केवल 28 मामलों का निपटारा करती है, जिसका मतलब है कि एक सजा पर खर्च लगभग नौ लाख रुपये है।

यह रिपोर्ट कानून और न्याय मंत्रालय, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय तथा राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों पर आधारित है।

शोधपत्र में कहा गया है, 'प्रत्येक एफटीएससी से एक तिमाही में 41-42 मामलों और एक वर्ष में कम से कम 165 मामलों का निपटारा करने की उम्मीद की गई थी। आंकड़ों से पता चलता है कि एफटीएससी इस योजना की शुरुआत के तीन साल बाद भी निर्धारित लक्ष्य हासिल करने में असमर्थ हैं।'










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