R. Chidambaram Death: न्यूक्लियर साइंटिस्ट आर.चिदंबरम का निधन, जानें उनके बारे में

भारत के प्रतिष्ठित परमाणु वैज्ञानिक और न्यूक्लियर प्रोग्राम के मुख्य आर्किटेक्ट्स में से एक डॉ. आर. चिदंबरम का शनिवार को निधन हो गया। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

Updated : 4 January 2025, 10:49 AM IST
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मुंबई: भारत के प्रतिष्ठित परमाणु वैज्ञानिक और न्यूक्लियर प्रोग्राम के मुख्य आर्किटेक्ट्स में से एक डॉ. राजगोपाल चिदंबरम का शनिवार सुबह मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया। वह 88 वर्ष के थे और कुछ समय से बीमार चल रहे थे। 

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, डॉ. चिदंबरम एटॉमिक एनर्जी कमीशन के पूर्व अध्यक्ष थे और भारत के परमाणु परीक्षणों में उनकी अहम भूमिका थी।

न्यूक्लियर परीक्षणों में अहम योगदान

डॉ. चिदंबरम उन चुनिंदा वैज्ञानिकों में शामिल थे, जिन्होंने 1974 और 1998 के भारत के दोनों परमाणु परीक्षणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पोखरण में हुए इन परीक्षणों ने भारत को न्यूक्लियर ताकत के रूप में स्थापित किया। उनके नेतृत्व में अमेरिका के साथ हुए सिविल न्यूक्लियर एग्रीमेंट को भी पूरा किया गया, जिसने भारत को अंतरराष्ट्रीय परमाणु समुदाय में मान्यता दिलाई।

कई पुरस्कारों से हुए सम्मानित

डॉ. चिदंबरम का जन्म चेन्नई में हुआ था। उन्होंने बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) से पीएचडी की और 1962 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) में अपने करियर की शुरुआत की। 1974 के परमाणु परीक्षण के डिजाइन और क्रियान्वयन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के लिए उन्हें 1975 में पद्मश्री और 1999 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया।

नेतृत्व में नई ऊंचाइयां

1990 में डॉ. चिदंबरम को BARC का निदेशक नियुक्त किया गया और 1993 में एटॉमिक एनर्जी कमिशन के अध्यक्ष बने। इस पद पर रहते हुए 1998 में भारत का दूसरा परमाणु परीक्षण सफलतापूर्वक किया गया। 2000 में एटॉमिक एनर्जी कमीशन से सेवानिवृत्त होने के बाद, उन्होंने 1999 में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के बाद प्रिंसिपल साइंटिफिक एडवाइजर का पद संभाला और इस भूमिका में 17 वर्षों तक कार्य किया।

विज्ञान और तकनीक के प्रति समर्पण

डॉ. आर. चिदंबरम का योगदान न केवल भारत के परमाणु कार्यक्रम में था, बल्कि उन्होंने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने में भी अहम भूमिका निभाई। उनका निधन विज्ञान और अनुसंधान जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

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