रियल एस्टेट की अटकी परियोजनाओं के प्रवर्तकों पर आजीवन पाबंदी लगायी जानी चाहिए: मंच

डीएन ब्यूरो

मकान खरीदारों के मंच एफपीसीई ने सुझाव दिया है कि अटकी पड़ी परियोजनाओं के प्रवर्तकों पर आजीवन पाबंदी लगायी जानी चाहिए। साथ ही कोष की हेराफेरी और परियोजनाओं को वित्तीय रूप से अव्यावहारिक बनाये जाने के कारणों का पता लगाने को लेकर फॉरेंसिक ऑडिट की जानी चाहिए।

मकान खरीदार (फाइल)
मकान खरीदार (फाइल)


नई दिल्ली: मकान खरीदारों के मंच एफपीसीई ने सुझाव दिया है कि अटकी पड़ी परियोजनाओं के प्रवर्तकों पर आजीवन पाबंदी लगायी जानी चाहिए। साथ ही कोष की हेराफेरी और परियोजनाओं को वित्तीय रूप से अव्यावहारिक बनाये जाने के कारणों का पता लगाने को लेकर फॉरेंसिक ऑडिट की जानी चाहिए।

फोरम फॉर पीपुल्स कॉलेक्टिव अफर्ट्स(एफपीसीई) के अध्यक्ष अभय उपाध्याय ने अटकी पड़ी परियोजनाओं पर गठित समिति के चेयरमैन अमिताभ कांत को लिखे पत्र में देशभर में फंसी पड़ी परियोजनाओं को पटरी पर लाने तथा उन्हें पूरा करने के लिये उपाये सुझाये हैं।

समिति ने अटकी परियोजनाओं से जुड़े मुद्दों पर विचार के लिये आठ मई को दूसरी बैठक की।

केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने 31 मार्च को आदेश में नीति आयोग के पूर्व मुख्य कार्यपालक अधिकारी अमिताभ कांत की अध्यक्षता में 14 सदस्यीय समिति का गठन किया था। समिति को रियल एस्टेट की अटकी पड़ी परियोजनाओं से संबंधित मुद्दों पर गौर करने और उसके पूरा होने के उपायों के बारे में सुझाव देने की जिम्मेदारी दी गयी।

उपाध्याय ने पत्र में सुझाव दिया कि पांच साल से अधिक देरी वाली या पूर्ण रूप से फंसी परियोजनाओं की पहचान के लिये अखिल भारतीय स्तर पर अभियान चलाया जाना चाहिए। सभी आवश्यक विवरणों के साथ ऐसी परियोजनाओं की राज्यवार सूची बनाई जानी चाहिए।

उन्होंने लिखा है कि परियोजनाओं की पहचान करने के बाद, ऐसी सभी परियोजनाओं को वित्तीय रूप से व्यावहारिक, वित्तीय रूप से अव्यावहारिक और धन की कमी के अलावा अन्य कारणों से रुकी हुई परियोजनाओं में वर्गीकृत किया जाना चाहिए।

उपाध्याय ने सुझाव दिया है कि लंबे समय से लंबित/रुकी हुई परियोजनाओं को पूरा करने के लिये परियोजना के प्रवर्तक को पूरी तरह से हटा दिया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि परियोजना को नए प्रवर्तक को दिया जाना चाहिए। सिर्फ उन मामलों को छोड़कर जिनमें मूल प्रवर्तक की भागीदारी के बिना परियोजना पूरी नहीं हो सकती है।

रेरा (रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण) के तहत गठित केंद्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य की भी भूमिका निभा रहे उपाध्याय ने कहा, ‘‘ऐसी अटकी परियोजनाओं के प्रवर्तकों को आवास बिक्री से जुड़ी किसी भी रियल एस्टेट परियोजनाओं से जुड़ने पर पाबंदी लगायी जानी चाहिए या काली सूची में डालना चाहिए।’’

उन्होंने कहा कि जो परियोजनाएं वित्तीय रूप से अव्यावहारिक हैं, उसके बारे में फॉरेंसिक ऑडिट किया जाना चाहिए ताकि परियोजना से कोष की हेराफेरी का पता लगाया जा सके। ऐसे मामलों में कोष बढ़ाने के लिये प्रवर्तकों की व्यक्तिगत संपत्ति ली जानी चाहिए।

उपाध्याय ने कहा कि इसके अलावा अतिरिक्त संसाधन जुटाने के लिये सभी संभावनाओं पर गौर किया जाना चाहिए। इसमें अतिरिक्त क्षेत्र में निर्माण शामिल है।

 










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