Jayant R Verma, member of the Monetary Policy Committee: आने वाले वर्षों में निजी पूंजीगत व्यय में तेजी आएगी

भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्य जयंत आर वर्मा ने कहा है कि स्थापित क्षमता का उपयोग धीरे-धीरे बढ़ रहा है और आने वाले वर्षों में निजी पूंजीगत व्यय भी जोर पकड़ेगा। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 16 January 2024, 6:52 PM IST
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नयी दिल्ली:  भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्य जयंत आर वर्मा ने कहा है कि स्थापित क्षमता का उपयोग धीरे-धीरे बढ़ रहा है और आने वाले वर्षों में निजी पूंजीगत व्यय भी जोर पकड़ेगा।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक वर्मा ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने ही निवेश का बोझ उठाया है जबकि निजी पूंजीगत व्यय बहुत कम रहा है।

उन्होंने पीटीआई-भाषा से बातचीत में कहा, ''क्षमता उपयोग धीरे-धीरे बढ़ रहा है और यह उस स्तर के करीब पहुंच रहा है जो निजी क्षेत्र को कम-से-कम कुछ क्षेत्रों में पूंजीगत व्यय करने के लिए प्रेरित करता है।''

भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम), अहमदाबाद में प्रोफेसर वर्मा ने कहा कि हाल के वर्षों में सार्वजनिक क्षेत्र के बुनियादी ढांचे में हुए बड़े निवेश में निजी क्षेत्र के निवेश को भी आकर्षित करने की गुंजाइश बरकरार है।

उन्होंने कहा, ‘‘कुल मिलाकर मुझे उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में निजी पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी होगी और यह सार्वजनिक क्षेत्र से निवेश की कमान संभाल लेगा।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या भारत मध्यम-आय के जाल में फंसने से बच सकता है, वर्मा ने कहा कि भारत के लिए इस बदलाव को अंजाम देना जरूरी है क्योंकि इसमें मिली नाकामी देश की विशाल आबादी के लिए बेहद नुकसान पहुंचाने वाली होगी।

हालांकि, प्रोफेसर वर्मा ने यह माना कि ऐसा करना आसान नहीं होगा। उन्होंने कहा, ‘‘इसके लिए कई दशकों तक सात-आठ प्रतिशत की वृद्धि दर को बनाए रखने की जरूरत होगी। और इस काम को ज्यादा देश नहीं पूरा कर पाए हैं।’’

इसके साथ ही उन्होंने आशावादी नजरिया जाहिर करते हुए कहा कि भारत एक राष्ट्र के तौर पर इस चुनौती से पार पा सकता है।

मध्यम-आय का जाल एक ऐसी स्थिति है जिसमें मध्यम-आय वाला देश ज्यादा मजदूरी होने से मानकीकृत, श्रम-बहुल उत्पादों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकता है। इसके साथ ही यह देश तुलनात्मक रूप से बहुत कम उत्पादकता होने से उच्च मूल्य-वर्धित कार्यों में भी बड़े पैमाने पर प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाता है।

मध्यम आय वाले देशों में दुनिया की 75 प्रतिशत आबादी और 62 प्रतिशत गरीब रहते हैं। ये देश वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक तिहाई प्रतिनिधित्व करते हैं और वैश्विक वृद्धि के प्रमुख इंजन हैं।

 

 

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