विकसित देश बनने तक कोयला आधारित बिजली पर निर्भर रहेगा भारत

डीएन ब्यूरो

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने मंगलवार को कहा कि भारत अपने नागरिकों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है और जब तक उसे विकसित देश का दर्जा नहीं मिल जाता तब तक कोयले से बनने वाली बिजली पर निर्भर रहेगा। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर

केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव


नयी दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने मंगलवार को कहा कि भारत अपने नागरिकों की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है और जब तक उसे विकसित देश का दर्जा नहीं मिल जाता तब तक कोयले से बनने वाली बिजली पर निर्भर रहेगा।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार यादव ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में एक प्रश्न के उत्तर में यह भी कहा कि भारत ने जीवाश्म ईंधन का उपयोग रोकने को लेकर संयुक्त अरब अमीरात में आयोजित जलवायु सम्मेलन में विकसित देशों के दबाव का विरोध किया।

उन्होंने कहा कि भारत अपनी जनता की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है और ‘केवल तेल और गैस का आयात करके’ यह नहीं किया जा सकता।

उन्होंने कहा, ‘‘हम अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ा रहे हैं, वहीं जब तक हम विकसित भारत के उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर लेते, हमें कोयले से बनी बिजली पर निर्भर रहना होगा।’’

भारत अपने करीब 70 प्रतिशत बिजली उत्पादन के लिए कोयले पर आश्रित है और उसका उद्देश्य अगले 16 महीने में कोयला आधारित विद्युत उत्पादन क्षमता को 17 गीगावाट बढ़ाना है।

उन्होंने कहा कि कोयला आधारित बिजली उत्पादन को सीमित करने के विकसित देशों के आह्वान का भारत ने कड़ा विरोध किया। उन्होंने कहा, ‘‘हमने कहा कि आप किसी देश को आदेश नहीं दे सकते या बाध्य नहीं कर सकते।’’

वैश्विक तौर पर करीब 40 प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन कोयले से और बाकी तेल एवं गैस से होता है।

यादव ने कहा कि भारत समेत विकासशील देशों ने धनवान देशों पर जलवायु कार्रवाई में नेतृत्व करने के लिए दबाव बनाया और ‘‘इसलिए दुबई में जलवायु सम्मेलन लंबा खिंच गया।’’

केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत में दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी रहती है लेकिन वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में उसका योगदान महज चार प्रतिशत है।

उन्होंने कहा, ‘‘कई देशों की प्राथमिकता गरीबी उन्मूलन है। इसलिए, हमने विकसित देशों के दबाव को स्वीकार नहीं किया।’’

उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रूप से उत्सर्जन में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले विकसित देशों को विकासशील देशों को वित्तीय और प्रौद्योगिकीय सहयोग देना होगा ताकि उन्हें जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने में मदद मिले।

यादव ने कहा, ‘‘लेकिन विकसित देश जीवाश्म ईंधन का उपयोग बंद करने के लिए विकासशील देशों पर दबाव बना रहे हैं। हमने इसे स्वीकार नहीं किया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘हमने कहा कि तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयासों को राष्ट्रीय परिस्थितियों के आलोक में देखा जाना चाहिए और समानता तथा सामान्य लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों एवं संबंधित क्षमताओं (सीबीडीआर-आरसी) के सिद्धांतों का पालन किया जाना चाहिए।’’

यादव ने कहा कि भारत ने 2005 से 2019 के बीच अपनी जीडीपी उत्सर्जन तीव्रता को 33 प्रतिशत कम कर दिया और 11 साल पहले ही लक्ष्य हासिल कर लिया।

किसी अर्थव्यवस्था की जीडीपी उत्सर्जन तीव्रता से आशय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की प्रति इकाई वृद्धि के लिए उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों की कुल मात्रा से है।

पिछले सप्ताह दुबई में सीओपी28 में देश 'जीवाश्म ईंधन से दूरी' के मुइ्दे को लेकर एक ऐतिहासिक समझौते पर पहुंचे, जबकि भारत और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं ने कोयले को लक्षित करने का कड़ा विरोध किया।










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