जी-20 की अध्यक्षता को लेकर पूर्व विदेश सचिव ने भारत को दी ये बड़ी सलाह
पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने शनिवार को कहा कि दुनिया में ध्रुवीकरण जी-20 के सदस्यों के बीच भी परिलक्षित होता है, लेकिन भारत को इसकी (जी-20 की) अध्यक्षता के दौरान यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर काम करने के लिए वे सभी एकसाथ आएं। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर
पुणे: पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन शृंगला ने शनिवार को कहा कि दुनिया में ध्रुवीकरण जी-20 के सदस्यों के बीच भी परिलक्षित होता है, लेकिन भारत को इसकी (जी-20 की) अध्यक्षता के दौरान यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि जलवायु परिवर्तन जैसे वैश्विक मुद्दों पर काम करने के लिए वे सभी एकसाथ आएं।
शृंगला यहां सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी में 'जी-20 यूनिवर्सिटी कनेक्ट' को सम्बोधित कर रहे थे। वह जी-20 की भारत की अध्यक्षता के मुख्य समन्वयक हैं,
उन्होंने कहा कि भारत की अध्यक्षता में जी-20 शिखर सम्मेलन का विषय या आदर्श वाक्य, 'वसुधैव कुटुम्बकम' (एक विश्व, एक परिवार) 'भारतीय विदेश नीतियों को पूरी दुनिया तक पहुंचाने का दृष्टांत है।'
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पूर्व राजनयिक ने कहा, 'दुनिया में जो ध्रुवीकरण मौजूद है, वह जी-20 को भी प्रभावित करता है, इसलिए आपके पास एक ओर जी-7, अमेरिका, यूरोप, जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं, वहीं दूसरी ओर हमारे पास रूस और चीन भी हैं।’’
उन्होंने कहा, 'जी20 की अध्यक्षता के हिस्से के रूप में हमें यह सुनिश्चित करने के लिए काम करने की जरूरत है कि रूस और चीन जी-7 के साथ मिलकर उन मुद्दों पर काम करें जो दुनिया के लिए महत्वपूर्ण हैं।'
उन्होंने कहा कि भारत समझता है कि इन देशों के बीच मजबूत मतभेद हैं, लेकिन दुनिया को सतत विकास, वैश्विक ऋण, जलवायु परिवर्तन से संबंधित समस्याओं के समाधान की जरूरत है और बेहतर व्यापार तथा वस्तुओं एवं सेवाओं की सुचारू आवाजाही के लिए वैश्विक संगठनों में सुधार की जरूरत है।
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उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'देशों को एकीकृत करने' के दृष्टिकोण को विश्व स्तर पर महत्व दिया गया है और इसने भारत को महामारी के दौरान एक लचीली अर्थव्यवस्था बनाने में मदद की है।
उन्होंने कहा कि एक द्विध्रुवीय दुनिया से एक बहु-ध्रुवीय दुनिया में परिवर्तन वैश्विक विकास में मदद करेगा और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के आदर्श को बनाए रखेगा।
शृंगला ने कहा कि जी-20 कार्यक्रम सिर्फ नयी दिल्ली तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि कश्मीर से कन्याकुमारी और कच्छ के रण से लेकर अरुणाचल प्रदेश की घाटियों तक पूरे भारत में फैले हुए हैं।