दिल्ली हाई कोर्ट ने धर्म-आधारित आरक्षण मुद्दे पर जामिया का पक्ष जानना चाहा

डीएन ब्यूरो

दिल्ली उच्च न्यायालय ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) से उस याचिका पर रुख जानना चाहा है, जिसमें शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों पर नियुक्तियों में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के आरक्षण को समाप्त करके धर्म-आधारित आरक्षण दिये जाने के फैसले को चुनौती दी गई है।

फाइल फोटो
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नयी दिल्ली, 21 जून (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) से उस याचिका पर रुख जानना चाहा है, जिसमें शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों पर नियुक्तियों में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के आरक्षण को समाप्त करके धर्म-आधारित आरक्षण दिये जाने के फैसले को चुनौती दी गई है।

याचिकाकर्ता राम निवास सिंह और संजय कुमार मीणा ने जेएमआई द्वारा 241 गैर-शिक्षण पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन दिए जाने के बाद उच्च न्यायालय का रुख किया है और दलील दी है कि आरक्षण नीति से एससी/एसटी श्रेणी के उम्मीदवारों को बाहर करना संवैधानिक जनादेश के खिलाफ ‘भूल’ है।

सिंह और मीणा क्रमश: एससी और एसटी समुदाय के सदस्य हैं।

न्यायमूर्ति विकास महाजन की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि इस मामले पर विचार किये जाने की आवश्यकता है और इसके साथ ही इसने विश्वविद्यालय के साथ-साथ केंद्र सरकार से तीन सप्ताह के भीतर याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा।

अदालत ने यह स्पष्ट किया कि वह भर्ती प्रक्रिया पर रोक नहीं लगा रही है, हालांकि इसने विश्वविद्यालय को यह भी निर्देश दिया कि वह विज्ञापन के अनुसार उन श्रेणियों में एक-एक पद खाली रखें, जिनके लिए याचिकाकर्ताओं ने आवेदन किये हैं।

अदालत ने गत सप्ताह जारी आदेश में कहा, ‘‘ऐसा प्रतीत होता है कि मामले में पर्याप्त विचार की आवश्यकता है। नोटिस जारी किया जाए। तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दायर किया जाए। इस बीच, प्रतिवादी विश्वविद्यालय को निर्देश दिया जाता है कि वह- सहायक पंजीयक, सेक्शन अधिकारी और निम्न श्रेणी लिपिक- श्रेणियों में एक-एक पद याचिकाकर्ताओं के लिए खाली रखे, क्योंकि इन श्रेणियों में इन्होंने आवेदन किये थे।’’

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण भारद्वाज ने दलील दी कि अप्रैल में जारी 241 गैर-शिक्षण पदों के लिए विज्ञापन, आरक्षण की संवैधानिक योजना के साथ-साथ जामिया मिल्लिया इस्लामिया अधिनियम के विपरीत था। उन्होंने कहा कि इस अधिनियम के तहत विश्वविद्यालय सभी वर्ग, जाति और पंथ के लिए है।

वकील ऋतु भारद्वाज के माध्यम से दायर याचिका में जेएमआई की कार्यकारी परिषद द्वारा 23 जून, 2014 को कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना केवल धर्म-आधारित आरक्षण को मंजूरी देने वाले प्रस्ताव को रद्द करने के निर्देश देने की मांग की गई है।

जेएमआई के स्थायी वकील प्रीतिश सभरवाल ने मौजूदा ढांचे का बचाव किया और कहा कि अल्पसंख्यक संस्थान होने के नाते विश्वविद्यालय एससी/एसटी से संबंधित आरक्षण नीति को मानने के लिए बाध्य नहीं है।

याचिका में कहा गया है कि जेएमआई ने गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति और पदोन्नति में एससी और एसटी श्रेणियों के लिए मनमाने ढंग से आरक्षण समाप्त कर दिया।

मामले की अगली सुनवाई सात जुलाई को होगी।

भाषा सुरेश माधव

माधव










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