Crime News: पिता पर नाबालिग बेटी के यौन शोषण का आरोप, हाई कोर्ट ने दिये जांच के आदेश

डीएन ब्यूरो

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक ऐसे मामले में आगे की जांच का आदेश दिया है जहां पत्नी ने पति पर ही अपनी चार साल की बेटी के यौन शोषण का आरोप लगाया है। पढ़िये पूरी खबर डाइनामाइट न्यूज़ पर

फाइल फोटो
फाइल फोटो


बेंगलुरु: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक ऐसे मामले में आगे की जांच का आदेश दिया है जहां पत्नी ने पति पर ही अपनी चार साल की बेटी के यौन शोषण का आरोप लगाया है।

उच्च न्यायालय ने जांच अधिकारी की ओर से दायर आरोप-पत्र में नौ खामियां पाईं।

अदालत ने पुलिस आयुक्त को इस मामले में एक नया जांच अधिकारी (आईओ) नियुक्त करने का निर्देश दिया, जो 10 सप्ताह के भीतर आगे की जांच पूरी करेगा।

पत्नी ने अगस्त 2022 में अपने पति के खिलाफ ‘कुछ गंभीर आरोप’ लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी। उसने आरोप लगाया था कि उसका पति यौन रूप से विकृत है और बच्चों से जुड़ी अश्लील फिल्में देखता है।

आरोपों के अनुसार, पति ने कथित तौर पर चार साल की बेटी के साथ अपनी नग्न तस्वीरें लीं और उसे (बेटी को) गलत तरीके से छुआ।

पत्नी की शिकायत में कहा गया था कि उसके पति ने बेटी की मौजूदगी में उससे (पत्नी से) यौन संबंध बनाने को कहा था। इतना ही नहीं, पति ने कथित तौर पर बेटी के आईपैड में बच्चों पर आधारित अश्लील वीडियो (चाइल्ड पोर्नोग्राफी) अपलोड किये और उसे उन्हें देखने के लिए मजबूर किया।

उसकी शिकायत के बाद, पति पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया।

पुलिस ने जांच पूरी करने के बाद अक्टूबर 2022 में सत्र अदालत के समक्ष आरोप-पत्र दायर किया था। हालांकि, पत्नी ने आगे की जांच की मांग करते हुए एक अर्जी दायर की, क्योंकि उसने पाया कि कई मुद्दों की जांच नहीं की गई थी, लेकिन संबंधित अर्जी खारिज कर दी गयी। इसके बाद पत्नी ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

अपने हालिया फैसले में न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने याचिका स्वीकार कर ली और पुलिस को आगे की जांच करने का निर्देश दिया। अदालत ने पुलिस द्वारा दायर आरोप-पत्र में नौ खामियां पाईं।

एकल पीठ ने कहा, “आरोप पत्र और संबंधित दस्तावेजों को देखने पर प्रथम दृष्टया आक्षेपित कमियां सही प्रतीत होती हैं। अदालत की दृष्टि से महत्वपूर्ण साक्ष्यों के तौर पर काम आने वाले सभी नौ बिंदुओं को जांच अधिकारी ने जानबूझकर छोड़ दिया है।’’

अदालत ने पाया कि बच्चे के बयान में आरोपी के नाम का उल्लेख किया गया था, लेकिन आरोप-पत्र में इसका उल्लेख नहीं किया गया। इतना ही नहीं, डॉक्टर के समक्ष बच्चे का बयान भी आरोप-पत्र में शामिल नहीं किया गया।

अदालत ने कहा, ‘‘यहां तक कि उस मनोवैज्ञानिक की रिपोर्ट को भी आरोप पत्र का हिस्सा नहीं बनाया गया, जिसने बच्चे को हुई यातना की विस्तृत रिपोर्ट दी थी।’’

उच्च न्यायालय ने निचली अदालत को आगे की जांच के लिए इंतजार करने का निर्देश दिया।










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