बड़ी खबर: गोरखपुर के कमिश्नर ने भ्रष्टाचारी आईएएस अमरनाथ उपाध्याय को बचाने का खेला नया दांव, अज्ञात में एफआईआर दर्ज करा झोंकना चाहते हैं मुख्यमंत्री की आंखों में धूल

राज्य के मुख्य सचिव राजेन्द्र तिवारी, अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी, मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव शशि प्रकाश गोयल और पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह पर गैर राज्य असम-मेघालय से प्रतिनियुक्ति पर आये गोरखपुर के कमिश्नर जयंत नार्लिकर भारी पड़ रहे हैं। इन दिग्गजों की ‘भ्रष्टाचार मिटाओ नीति’ के ठीक विपरित कमिश्नर ने अपने मातहत रहे महराजगंज के पूर्व डीएम अमरनाथ उपाध्याय को बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। डाइनामाइट न्यूज़ एक्सक्लूसिव..

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 19 October 2019, 1:38 PM IST
google-preferred

लखनऊ: साढ़े तीन सौ एकड़ बेशकीमती जमीनों को गैरकानूनी तरीके से प्राइवेट लोगों को बांटने, सरकारी धन के गबन और गऊ-माता के चारा घोटाले के आरोपी महराजगंज के पूर्व जिलाधिकारी अमरनाथ उपाध्याय के खिलाफ पांच दिन बाद भी गोरखपुर के कमिश्नर जयंत नार्लिकर ने एफआईआर दर्ज नहीं होने दी है। निलंबन के तुरंत बाद सोची समझी रणनीति के तहत लंबी छुट्टी पर गये जयंत पर्दे के पीछे से सारे कांड को अंजाम दे रहे हैं। डाइनामाइट न्यूज़ को मिली अंदर की जानकारी के मुताबिक कमिश्नर ने कल से ही भारी दबाव बना रखा है कि अज्ञात लोगों के खिलाफ साधारण धाराओं में मुकदमा पंजीकृत कराकर सारे मामले की लीपा-पोती कर दी जाये ताकि भ्रष्टाचार साबित ही न हो और सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे।  

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सबसे प्रिय प्रोजेक्ट गऊ-सेवा के मिशन में डकैती डालने वाले अमरनाथ उपाध्याय के खिलाफ गोरखपुर के अपर आय़ुक्त (प्रशासन) अजय कांत सैनी की जांच में दोष प्रमाणित हो चुके हैं। फिर भी एफआईआर अज्ञात लोगों के नाम से साधारण धाराओं में दर्ज करने का दबाव महराजगंज जिला प्रशासन पर कमिश्नर बनाये हुए हैं। आखिर क्यों? कहीं ऐसा तो नहीं है कि जो साढ़े तीन सौ एकड़ बेशकीमती जमीनें भारी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा दी गयी हैं, उसमें कमिश्नर की भी पैरवी रही है? यदि ऐसा नहीं है तो फिर क्यों मंडलायुक्त हाथ-धोकर पीछे पड़े हुए हैं कि किसी भी कीमत पर अमरनाथ के नाम से एफआईआर नहीं पंजीकृत हो?   

पांच दिन पहले 14 अक्टूबर को मुख्यमंत्री ने विस्तृत जांच के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाते हुए आईएएस अमरनाथ उपाध्याय को सस्पेंड करने का आदेश दिया था। इसका ऐलान खुद मुख्य सचिव ने एक प्रेस वार्ता में करते हुए अमरनाथ उपाध्याय के खिलाफ वित्तीय अनियमितता और आपराधिक कारगुजारियों की धाराओं में मुकदमा पंजीकृत करने का ऐलान किया था। 

 

 

हैरान करने वाली बात यह है कि शासन के स्पष्ट निर्देश के पांच दिन बाद भी कमिश्नर ने अपने चहेते मातहत पर एफआईआर नहीं दर्ज होने दी है।

मुकुल सिंघल के नेतृत्व वाले राज्य के नियुक्ति विभाग ने एक शासनादेश निकालकर आदेश दिया कि 30 नवंबर तक फील्ड में तैनात कोई भी अफसर छुट्टी पर नहीं जायेगा लेकिन न जाने किन परिस्थियों में राज्य की प्रशासनिक मशीनरी ने निलंबन के ठीक बाद जयंत नार्लिकर को लंबी छुट्टी पर जाने की स्वीकृति दी?

चौंकाने वाली बात तो यह भी है कि नार्थ-ईस्ट के राज्यों असम-मेघालय कैडर से यूपी में प्रतिनियुक्ति पर आये जयंत किस कदर सिविल सेवा नियमावली की धज्जियां उड़ा रहे हैं इसकी बानगी आपको इस बात से मिल जायेगी कि इनके सरकारी नंबर पर फिल्मी कालर ट्यून ‘धीरे-धीरे दिल की जमीं’ लगी हई है। क्या इन्हें किसी बात का डर भय नहीं है?  

सबसे बड़ा सवाल शासन के इकबाल पर लग रहा है कि खुली प्रेस वार्ता में एफआईआर का ऐलान करने वाले मुख्य सचिव, मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरुप भ्रष्टाचार मिटाने के अपने आदेशों का पालन करा पायेंगे या फिर इन पर गैर राज्य से प्रतिनियुक्ति पर आये जयंत भारी पड़ जायेंगे। देखना दिलचस्प होगा। देखिये: अमरनाथ उपाध्याय को 'महोदय', 'जिलाधिकारी के नेतृत्व 'और 'अपील' जैसे शब्दों से कैसे पूज रहे हैं कमिश्नर जयंत नार्लिकर

No related posts found.