खेड़ा में सरेआम पिटायी का मामला: अवमानना को लेकर चार पुलिसकर्मियों को 14 दिन की सजा
गुजरात उच्च न्यायालय ने 2022 में राज्य के खेड़ा जिले के एक गांव में अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ सदस्यों की सरेआम पिटायी से उपजे अदालत की अवमानना के एक मामले में एक निरीक्षक सहित चार पुलिसकर्मियों को बृहस्पतिवार को 14 दिन की साधारण कारावास की सजा सुनायी। पढ़िये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
अहमदाबाद: गुजरात उच्च न्यायालय ने 2022 में राज्य के खेड़ा जिले के एक गांव में अल्पसंख्यक समुदाय के कुछ सदस्यों की सरेआम पिटायी से उपजे अदालत की अवमानना के एक मामले में एक निरीक्षक सहित चार पुलिसकर्मियों को बृहस्पतिवार को 14 दिन की साधारण कारावास की सजा सुनायी।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक न्यायमूर्ति ए एस सुपेहिया और न्यायमूर्ति गीता गोपी की खंडपीठ ने चारों पुलिसकर्मियों को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराया और उन्हें सजा के तौर पर 14 दिन जेल में बिताने का आदेश दिया।
न्यायमूर्ति सुपेहिया के नेतृत्व वाली पीठ ने इन पुलिसकर्मियों को आदेश मिलने के 10 दिनों के भीतर अदालत के न्यायिक रजिस्ट्रार के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया ताकि उन्हें एक 'उचित जेल' भेजा जा सके।
हालांकि उच्च न्यायालय ने पुलिसकर्मियों को राहत देते हुए अपने आदेश के कार्यान्वयन पर तीन महीने की अवधि के लिए रोक लगा दी ताकि आरोपी फैसले के खिलाफ अपील दायर कर सकें। ये चार पुलिसकर्मी निरीक्षक ए वी परमार, उप निरीक्षक डी बी कुमावत, हेड कांस्टेबल के एल डाभी और कांस्टेबल आर आर डाभी हैं।
उच्च न्यायालय ने घटना की जांच के बाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम), खेड़ा द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में पुलिसकर्मियों की पहचान होने और उनकी भूमिका निर्दिष्ट होने के बाद उनके खिलाफ आरोप तय किए थे।
बृहस्पतिवार को सजा पर सुनवाई के दौरान पुलिसकर्मियों की ओर से पेश वकील प्रकाश जानी ने अदालत से इन पुलिसकर्मियों के सेवा रिकॉर्ड को देखते हुए नरम रुख अपनाने का आग्रह किया। जानी ने जेल की सजा के बजाय, अदालत से केवल जुर्माना लगाने, उन्हें उचित निर्देश देने और यह देखने के लिए मामले को लंबित रखने का अनुरोध किया कि क्या उन्होंने अदालत के निर्देशों का पालन किया है।
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हालांकि, शिकायतकर्ताओं के वकील आई एच सैयद ने इसका विरोध करते हुए कहा, ‘‘यदि इस तरह के कृत्य को मुआवजे, जुर्माना या माफी के माध्यम से माफ कर दिया जाता है, तो इससे अदालत की गरिमा प्रभावित होगी। यह गलत मिसाल भी कायम करेगा, क्योंकि इससे अन्य पुलिसकर्मियों को ऐसा काम करने का प्रोत्साहन मिलेगा।’’
पीठ ने मामले को लंबित रखने के जानी के विचार को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि पुलिसकर्मियों ने ‘‘हिरासत में लिये गए व्यक्तियों को खंभे से बांधकर और फिर ग्रामीणों के सामने उनकी पिटायी करके अमानवीय कृत्य किया।’’
पिछली सुनवाई में, अदालत ने किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने से पहले उचित प्रक्रिया के अनुपालन के संबंध में डी के बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य के मामले में उच्चतम न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने के लिए अदालत की अवमानना अधिनियम के तहत दोषी पाए जाने के बाद पुलिसकर्मियों के खिलाफ आरोप तय किए थे।
जिन पांच व्यक्तियों की पुलिसकर्मियों ने कथित तौर पर पिटायी की थी, उन्होंने उन चार पुलिसकर्मियों से आर्थिक मुआवजा लेने से इनकार भी कर दिया था, जिन्हें इस कृत्य के लिए अदालत की अवमानना का दोषी पाया गया था।
पिछले साल अक्टूबर में नवरात्रि उत्सव के दौरान, खेड़ा जिले के उंधेला गांव में एक गरबा कार्यक्रम में मुस्लिम समुदाय के लोगों की भीड़ ने कथित तौर पर पथराव किया था, जिसमें कुछ ग्रामीण और पुलिसकर्मी घायल हो गए थे।
गिरफ्तार किए गए 13 आरोपियों में से तीन की पुलिसकर्मियों द्वारा कथित तौर पर सरेआम पिटायी करते दिखाने वाला एक वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया था।
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बाद में, मुख्य शिकायतकर्ता जाहिरमिया मालेक सहित पांच आरोपियों ने उच्च न्यायालय का रुख किया था और दावा किया था कि इस कृत्य में शामिल पुलिस कर्मियों ने गिरफ्तारी पर उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन करके अदालत की अवमानना की है।
शीर्ष अदालत ने 1996 के अपने ऐतिहासिक फैसले के तहत गिरफ्तारी और हिरासत के सभी मामलों में अनुपालन के लिए दिशानिर्देश जारी किये थे।
शुरुआत में मामले में कुल 13 पुलिसकर्मियों को आरोपी बनाया गया था। बाद में, घटना की जांच के बाद खेड़ा के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में चार पुलिसकर्मियों की भूमिका निर्दिष्ट की गई थी।