सीबीआई के पूर्व संयुक्त निदेशक का बड़ा बयान, भ्रष्टाचार रोधी एजंसियों को लेकर कही ये बात
देश में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और अन्य भ्रष्टाचार रोधी एजेंसियां ‘स्थायी हस्तक्षेप’ की स्थिति का सामना कर रही हैं और यदि 2018 के भ्रष्टाचार रोधी कानून को चुनौती नहीं दी जाती तो यह स्थिति बरकरार रहेगी। सीबीआई के पूर्व संयुक्त निदेशक शांतनु सेन ने यह बात कही। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
कोलकाता: देश में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और अन्य भ्रष्टाचार रोधी एजेंसियां ‘स्थायी हस्तक्षेप’ की स्थिति का सामना कर रही हैं और यदि 2018 के भ्रष्टाचार रोधी कानून को चुनौती नहीं दी जाती तो यह स्थिति बरकरार रहेगी। सीबीआई के पूर्व संयुक्त निदेशक शांतनु सेन ने यह बात कही।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार सेन ने कहा कि सीबीआई को जांचकर्ताओं के अपने स्वयं के कैडर की परिपाटी को बहाल करना चाहिए, क्योंकि राज्यों से जांच एजेंसी में शामिल किए गए लोग हस्तक्षेप के लिहाज से ‘अनुकूलित’ होने के लिए बाध्य होते हैं।
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सेन ने कहा, ‘‘भ्रष्टाचार रोधी एजेंसियां अब जांच के अपने अधिकार के लिए किसी अन्य प्राधिकरण पर निर्भर हैं, जबकि कानून के तहत, पुलिस को अपराध की जांच के लिए किसी पर निर्भर नहीं होना चाहिए। पुलिस थाना को बलात्कार या हत्या के मामले की जांच के लिए किसी व्यक्ति से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं होती।’’
लेखक और स्तंभकार सेन जुलाई, 2018 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (पीसीए) में धारा 17 (ए) को शामिल किये जाने और बाद में 2021 में इस धारा के तहत मामलों से जुड़ी कार्यवाही के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) को जोड़े जाने का जिक्र कर रहे थे।
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इस धारा में कहा गया है कि अब से पीसीए में उल्लेखित भ्रष्टाचार के किसी भी कृत्य के मामले में (किसी को फंसाए जाने की स्थिति को छोड़कर) नियुक्त प्रधिकारी की अनुमति के बिना किसी पुलिस अधिकारी द्वारा जांच या पूछताछ नहीं की जाएगी।
वर्ष 2007 से 2013 के बीच दिल्ली के उपराज्यपाल के ओएसडी के रूप में कार्यरत रहे सेन ने कहा, ‘‘ इसलिए अब सीबीआई या एक भ्रष्टाचार रोधी एजेंसी में एक पुलिस अधिकारी अब भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच-पड़ताल नहीं कर सकता है, जबकि उससे ऐसा करने की अपेक्षा की जाती थी। यह कानून का एक असमान अनुप्रयोग है।’’