

पारंपरिक तौर पर इस पर्व में जानवरों का बलिदान, उनके पीछे की धार्मिक भावना और मीठी बातें शामिल होती हैं। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की यह रिपोर्ट
आप क्या मनाओगे, ग्रीन बकरीद या वर्चुअल बकरीद
नई दिल्ली: ईद-उल-अजहा यानी बकरीद का त्योहार सदियों से मुस्लिम समुदाय का महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व रहा है। इस दिन लोग बकरे, भेड़ या अन्य हलाल जानवरों की कुर्बानी देते हैं। जिसे कुरान में निर्देशित किया गया है। यह त्योहार केवल धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मेल-जोल का भी अवसर है, जहां परिवार और समुदाय एक साथ मिलकर त्योहार मनाते हैं।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के अनुसार, पारंपरिक तौर पर इस पर्व में जानवरों का बलिदान, उनके पीछे की धार्मिक भावना और मीठी बातें शामिल होती हैं। यह परंपरा विभिन्न समुदायों में सदियों से चली आ रही है और इसे श्रद्धा और आस्था का प्रतीक माना जाता है।
ग्रीन बकरीद
वहीं दूसरी ओर, हाल के वर्षों में "ग्रीन बकरीद" नामक विचारधारा उभर कर सामने आई है। यह पर्यावरण संरक्षण और जानवरों की रक्षा की ओर संकेत करता है। ग्रीन बकरीद का मकसद है कि जानवरों की बलि की जगह पेड़ लगाए जाएं, जरूरतमंदों को मदद दी जाए या पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे। सोशल मीडिया पर #GreenBakrid ट्रेंड कर रहा है, जिसमें युवा पौधे लेकर सेल्फी लेते हैं और संदेश देते हैं कि त्योहार को पर्यावरण के अनुकूल बनाना जरूरी है। यह विचारधारा उन लोगों की तरफ से है जो जानवरों की बलि के विरोध में हैं और इस त्योहार को अधिक सामाजिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से देखने का प्रयास कर रहे हैं।
वर्चुअल बकरीद
कोविड-19 महामारी ने दुनिया को बहुत कुछ बदल दिया है। इसी का प्रभाव ईद-उल-अजहा पर भी पड़ा है, जहां "वर्चुअल बकरीद" का जन्म हुआ। डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के जरिए लोग घर बैठे कुर्बानी का आर्डर कर सकते हैं। ऑनलाइन साइट्स और मोबाइल ऐप्स के माध्यम से कुर्बानी का प्रबंध किया जाता है और जानवर की बलि का लाइव स्ट्रीमिंग भी संभव है। यह व्यवस्था प्रवासियों और व्यस्त लोगों के लिए सुविधाजनक साबित हो रही है, जिससे भीड़-भाड़ और संक्रमण का खतरा कम हो जाता है। इस तरीके से कम समय में, बिना शारीरिक संपर्क के, धार्मिक क्रिया पूरी हो जाती है।
क्या ग्रीन बकरीद से होगी रोजगार में कमी?
बकरीद का त्योहार न सिर्फ धार्मिक और सामाजिक महत्व रखता है, बल्कि यह अर्थव्यवस्था का भी बड़ा हिस्सा है। देशभर में बकरी मंडियां सजती हैं, जहां हजारों लोग जानवरों को खरीदते और बेचते हैं। यह व्यापार कई गरीब किसानों, पशुपालकों, मजदूरों और ट्रांसपोर्टरों का जीवन यापन का जरिया है। कई बार इन जानवरों को पालने वाले हिंदू, दलित, आदिवासी या गरीब परिवार होते हैं, जो सालभर बकरीद का इंतजार करते हैं। ऐसे में, यदि वर्चुअल और ग्रीन बकरीद का प्रचार अधिक हुआ तो संभव है कि इस परंपरा से जुड़े रोजगार और बाजार पर असर पड़े, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यह त्योहार खत्म हो जाएगा।
यूजर्स के रिएक्शन
सोशल मीडिया पर ग्रीन और वर्चुअल बकरीद ट्रेंड कर रहा है और यूजर्स अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं। कुछ का मानना है कि जीव हत्या नहीं होनी चाहिए तो कुछ का कहना है कि यह सब एक दिन की बात है और परंपरा से जुड़ा त्योहार है। एक यूजर ने लिखा, "बकरीद आने पर ही जीव दया जाग जाती है," तो दूसरे ने कहा, "ग्रीन बकरीद सिर्फ एक प्रयोग है, असली त्योहार तो वहीं है।" इस तरह के विचारधारा का आदान-प्रदान इस बात को दर्शाता है कि परंपरा और आधुनिकता के बीच संघर्ष जारी है, और समाज में बदलाव की लहरें उमड़ रही हैं।