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न्याय का दोहरा मापदंड: निशाने पर सिर्फ चंद्रचूड़, क्यों नहीं दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव नरेश कुमार

जब पूर्व CJI को नियमों का पालन करने के लिए मजबूर किया जा सकता है, तो एक रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट क्यों नियमों से ऊपर हो जाता है? डाइनामाइट न्यूज़ पर पूरी खबर:
Post Published By: Subhash Raturi
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न्याय का दोहरा मापदंड: निशाने पर सिर्फ चंद्रचूड़, क्यों नहीं दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव नरेश कुमार

नई दिल्ली: देश की सबसे बड़ी अदालत के एक कदम ने देश में फिर “समान कानून” और “समान जवाबदेही” जैसे आदर्शों पर चर्चा छेड़ रखी है।

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को एक औपचारिक पत्र लिखकर आग्रह किया है कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश, न्यायमूर्ति डॉ डी.वाई चंद्रचूड़ से CJI का आधिकारिक आवास खाली कराया जाय। तब यह सवाल उठा कि क्या ऐसा करने वाले देश में इकलौते CJI चंद्रचूड़ ही हैं। क्या इससे पहले के मुख्य न्यायाधीशों यू यू ललित और एन वी रमना ने जब बंगले तय समय पर खाली नहीं किये तो सुप्रीम कोर्ट की नींद क्यों नहीं टूटी थी।

अब डाइनामाइट न्यूज़ की तहकीकात में यह तथ्य सामने आया है कि दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव नरेश कुमार रिटायरमेंट के बाद से ही NDMC का आलीशान सरकारी बंगला बिना किसी वैध अधिकार, बिना किसी सरकारी पद के कब्जाए बैठे हैं। फिर क्यों सिस्टम के जिम्मेदार लोगों ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की?

नरेश कुमार न तो अब किसी सरकारी पद पर हैं, न ही उनके पास ऐसा कोई संवैधानिक दर्जा बचा है, जिसकी वजह से उन्हें सरकारी आवास की पात्रता दी जाए। इसके बावजूद, वे न केवल उस बंगले में रह रहे हैं, बल्कि एक भी रुपया सरकारी किराये के तौर पर नहीं चुका रहे हैं। यह स्थिति तब और भी चौंकाने वाली हो जाती है, जब यह तथ्य सामने आता है कि उनके पास पहले से ही दिल्ली और गुरुग्राम में प्राइवेट प्रॉपर्टीज़ हैं।

तो सवाल यह उठता है कि जब पूर्व CJI को नियमों का पालन करने के लिए मजबूर किया जा सकता है, तो एक रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट क्यों नियमों से ऊपर हो जाता है?

यह दोहरा मापदंड ठीक उन्हीं मूल्यों को ठेस पहुँचाता है, जिनके दम पर एक लोकतांत्रिक व्यवस्था खड़ी होती है। देश के संविधान में “समानता” को मौलिक अधिकार माना गया है। फिर क्यों एक नागरिक, जो अब सिर्फ एक ‘पूर्व’ अधिकारी है, नियमों की खुलेआम अवहेलना करते हुए सरकार की चुप्पी का लाभ उठा रहा है? यहाँ सिर्फ़ नैतिकता का मामला नहीं है, यह सार्वजनिक संसाधनों के दुरुपयोग और शासन की निष्क्रियता का मामला है। NDMC और दिल्ली सरकार की चुप्पी इस बात की पुष्टि करती है कि सत्ता अपने नज़दीकी लोगों को ‘विशेष अधिकार’ देती है, जो नियम-कानूनों से परे होते हैं।

नरेश कुमार सिर्फ अकेले नहीं है, अब बात जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की। ये किसी सरकारी पद पर नहीं हैं, इनका गृह राज्य कश्मीर है। फिर भी ये लंबे वक्त से लुटियंस जोन का 5, साउथ एवेन्यू लेन बंगला लिये हुए हैं।
डाइनामाइट न्यूज़ की टीम ने जब आज इस घर का जायजा लिया तो बड़े फक्र से गुलाम साहब के नाम की प्लेट सरकारी बंगले पर चमकती मिली।

ऐसे उदाहरणों के बीच एक बार फिर यह सवाल सत्ता के गलियारों में गूंज उठा है कि वैश्विक स्तर पर सम्मानित डा. डीवाई चंद्रचूड़ को क्या वाकई किसी ने जानबूझकर निशाने पर लिया था?

 

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