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शाकंभरी नवरात्रि 2025 की शुरुआत 28 दिसंबर से और समाप्ति 3 जनवरी 2026 को होगी। यह पर्व देवी शाकंभरी को समर्पित है जो अन्न, जल और वनस्पति की देवी मानी जाती हैं। जानें पूजा विधि, महत्व और इस नवरात्रि की खास परंपराएं।
शाकंभरी नवरात्रि 2025 (Img source: google)
New Delhi: भारत में नवरात्रि के कई रूप मनाए जाते हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्रि जहां देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना के लिए प्रसिद्ध हैं, वहीं आषाढ़ और माघ की गुप्त नवरात्रि तांत्रिक साधना और महाविद्या पूजन से जुड़ी होती हैं। इनके अलावा एक और विशेष नवरात्रि पौष महीने में आती है, जिसे शाकंभरी नवरात्रि कहा जाता है। यह पर्व पूरी तरह देवी शाकंभरी को समर्पित है, जिन्हें अन्न, जल और वनस्पति की देवी माना जाता है।
शाकंभरी नवरात्रि इस वर्ष 28 दिसंबर 2025 से शुरू होकर 3 जनवरी 2026 को समाप्त होगी। यह नवरात्रि कुल 8 दिनों की होती है और इसे पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक मनाया जाता है।
पहला दिन बनादा अष्टमी के नाम से जाना जाता है, जबकि अंतिम दिन शाकंभरी पूर्णिमा के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में यह पर्व विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार जब पृथ्वी पर भयंकर अकाल पड़ा और जीवों के लिए अन्न-जल का संकट खड़ा हो गया, तब देवी भगवती ने शाकंभरी रूप धारण किया। कहा जाता है कि देवी की दृष्टि मात्र से धरती पर सब्जियां, फल, अनाज और हरी वनस्पतियां उग आईं। इसी कारण उन्हें “वनस्पति और अन्न की अधिष्ठात्री देवी” के रूप में पूजा जाता है।
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माता की मूर्तियों में उन्हें फल-फूल, सब्जियों और हरी पत्तियों से आच्छादित रूप में दर्शाया जाता है, जो समृद्धि और जीवनदायिनी शक्ति का प्रतीक है।
शाकंभरी नवरात्रि की पूजा सामान्य नवरात्रि जैसी ही होती है, हालांकि इसमें अन्न-वनस्पति का अधिक महत्व माना जाता है। पूजा की विधि इस प्रकार है-
यह नवरात्रि विशेष रूप से किसानों और कृषि से जुड़े लोगों के लिए शुभ मानी जाती है। माना जाता है कि मां शाकंभरी की कृपा से खेतों में भरपूर पैदावार होती है और परिवार में अन्न-धन की कभी कमी नहीं रहती।
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इसके अलावा यह पर्व पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति के महत्व की भी याद दिलाता है। देवी शाकंभरी का संदेश है कि पृथ्वी और वनस्पति का संरक्षण ही जीवन का आधार है।
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