

भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री को अमेरिकी टैरिफ से केवल दो हफ्ते की राहत मिली है। अगर सेक्शन 232 की समीक्षा में छूट नहीं मिली, तो ‘मेक इन इंडिया’ की नींव हिल सकती है। क्या भारत रणनीतिक चुप्पी से जवाब देगा या अमेरिका से टकराकर अपनी तकनीकी ताकत को बचाएगा?
डोनाल्ड ट्रम्प, अमेरिका राष्ट्रपति (सोर्स इंटरनेट)
New Delhi: भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री, जिसे हाल के वर्षों में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘डिजिटल इंडिया’ जैसी पहलों ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूत किया है, आज एक बड़े अमेरिकी व्यापारिक दबाव के मुहाने पर खड़ी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित 25% टैरिफ ने भारत को अस्थायी तौर पर तो राहत दी है, लेकिन यह राहत केवल दो हफ्तों की है। इसके बाद क्या होगा, यह किसी को नहीं पता।
सूत्रों के मुताबिक, भारत को यह दो हफ्तों की राहत अमेरिका के सेक्शन 232 की समीक्षा प्रक्रिया के कारण मिली है। यह एक व्यापार कानून है, जो अमेरिका को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कुछ उत्पादों (जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी हार्डवेयर) पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की अनुमति देता है। भारत और अमेरिका के बीच चल रही द्विपक्षीय बातचीत के चलते यह समीक्षा टाल दी गई है, जिससे इंडस्ट्री को थोड़ी सांस लेने का मौका मिला है।
भारत की इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री विशेष रूप से मोबाइल फोन, लैपटॉप, आईटी हार्डवेयर और सेमीकंडक्टर सेक्टर में तेज़ी से आगे बढ़ी है। अमेरिकी टैरिफ से निर्यात महंगा होगा, जिससे अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा कम होगी। ‘मेक इन इंडिया’ के तहत बनने वाले उत्पादों की मांग घट सकती है। रोज़गार और निवेश पर भी असर पड़ सकता है।
सरकार ने स्थिति को गंभीरता से लेते हुए, डिप्लोमैटिक लेवल पर बातचीत तेज़ कर दी है। वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार भारत कूटनीतिक समाधान को प्राथमिकता देगा। WTO (विश्व व्यापार संगठन) के माध्यम से भी विकल्प खुले हैं। यदि ज़रूरत पड़ी, तो नई सब्सिडी योजनाएं, टैक्स राहत और स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने के उपाय किए जाएंगे।
यह सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि भू-राजनीतिक दबाव की रणनीति भी है। अमेरिका नहीं चाहता कि भारत रूस से सैन्य उपकरण और कच्चा तेल खरीदना जारी रखे। यह टैरिफ और प्रस्तावित जुर्माना उसी दबाव का हिस्सा है। भारत अब रणनीतिक स्वतंत्रता और अमेरिकी दबाव के बीच संतुलन साधने की कोशिश कर रहा है।
यदि सेक्शन 232 में भारत को छूट मिलती है, तो यह बहुत बड़ी कूटनीतिक जीत होगी। अगर नहीं मिलती, तो भारत को व्यापार नीति, निर्यात रणनीति और औद्योगिक ढांचे को नए सिरे से तैयार करना होगा। इलेक्ट्रॉनिक्स इंडस्ट्री को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करने के प्रयासों में और तेजी लानी होगी।