Marital Dispute: पत्नी की गुप्त कॉल रिकॉर्डिंग क्या कानूनी साक्ष्य है? जानिये मामले पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक अहम और विवादित टिप्पणी की है, जिसमें उसने कहा कि पति-पत्नी के बीच की गुप्त बातचीत को अब न्यायिक साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। यह फैसला पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ आया है। जिसमें कोर्ट ने गुप्त रिकॉर्डिंग को न्यायिक साक्ष्य के रूप में स्वीकारने से इनकार कर दिया था।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 14 July 2025, 1:43 PM IST
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New Delhi: न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यदि पति-पत्नी एक-दूसरे की गुप्त बातचीत रिकॉर्ड करते हैं तो यह अपने आप में इस बात का सबूत है कि विवाह मजबूत नहीं चल रहा है।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता को मिली जानकारी के अनुसार, कोर्ट ने कहा कि यह व्यवहार दिखाता है कि रिश्ते में विश्वास की कमी है और जब तक यह स्थिति बनी रहती है, तब तक ऐसी रिकॉर्डिंग को अदालत में साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि पति और पत्नी एक-दूसरे की बातचीत को गुप्त रूप से रिकॉर्ड करते हैं, तो यह विवाह के कमजोर होने का संकेत है। कोर्ट ने कहा कि जब विवाह इस मुकाम तक पहुंच जाता है कि दोनों पक्ष एक-दूसरे पर नजर रखते हैं, तो यह रिश्ते के टूटने का संकेत है और इसे न्यायिक कार्यवाही में इस्तेमाल किया जा सकता है।

बठिंडा की पारिवारिक अदालत का मामला

बठिंडा की पारिवारिक अदालत में एक मामले में पति ने अपनी पत्नी के खिलाफ क्रूरता के आरोप लगाए थे और उसके समर्थन में पत्नी के साथ की गई फोन कॉल की रिकॉर्डिंग को सबूत के रूप में पेश किया। पारिवारिक अदालत ने इस रिकॉर्डिंग को स्वीकार किया और उसे सबूत के तौर पर माना। पत्नी ने इस पर उच्च न्यायालय में चुनौती दी, और उसका तर्क था कि यह रिकॉर्डिंग उसकी सहमति के बिना की गई थी, जो उसकी निजता का उल्लंघन है।

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय का फैसला

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने इस मामले में पत्नी की याचिका को स्वीकार करते हुए रिकॉर्डिंग को अस्वीकार्य करार दिया था। न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार की रिकॉर्डिंग निजता का उल्लंघन करती है और कानूनी दृष्टिकोण से अनुचित है। अदालत ने यह भी कहा कि इस तरह के साक्ष्य से घरेलू सौहार्द और वैवाहिक संबंधों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, क्योंकि इससे पति-पत्नी पर जासूसी करने का दबाव बढ़ सकता है, जो साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 के उद्देश्य का उल्लंघन करेगा।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के इस फैसले को खारिज कर दिया और पारिवारिक न्यायालय को निर्देश दिया कि वह गुप्त रिकॉर्डिंग को न्यायिक साक्ष्य के रूप में स्वीकार करते हुए मामले को आगे बढ़ाए। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार की रिकॉर्डिंग यह दिखाती है कि विवाह में विश्वास की कमी है, और यह परिस्थिति विवाहिक रिश्तों की स्थिरता को प्रभावित करती है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा कि अगर पति और पत्नी एक-दूसरे पर नजर रख रहे हैं, तो यह अपने आप में टूटे हुए रिश्ते का संकेत है और इसे न्यायिक कार्यवाही में खारिज नहीं किया जा सकता है।

कानूनी और सामाजिक दृष्टिकोण

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला समाज में विवाहिक रिश्तों और निजता के महत्व पर नए सवाल खड़ा करता है। जहां एक तरफ गुप्त रिकॉर्डिंग को न्यायिक साक्ष्य के रूप में स्वीकार करने से रिश्तों में बढ़ती जासूसी और विश्वास की कमी को दिखाया गया है, वहीं दूसरी तरफ इसने यह भी साबित किया है कि गुप्त बातचीत का वैधानिक उपयोग किया जा सकता है जब विवाह में सद्भावना की कमी हो।

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