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भारत में जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। असामान्य गर्मी, अनियमित बारिश और बर्फबारी की कमी से कृषि, स्वास्थ्य और जल संकट पर गहरा असर पड़ा है।
मौसम में उथल-पुथल (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
New Delhi: जलवायु परिवर्तन (Climate Change) आज 21वीं सदी की सबसे गंभीर वैश्विक समस्याओं में से एक बन चुका है। यह केवल किसी एक देश या क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव सम्पूर्ण पृथ्वी पर पड़ रहा है। भारत जैसे विविध भौगोलिक और जलवायवीय क्षेत्र वाले देश पर इसका प्रभाव और भी जटिल और व्यापक है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में तापमान में वृद्धि, वर्षा के पैटर्न में अनियमितता, बर्फबारी की कमी और तीव्र प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोत्तरी ने यह साबित कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन कोई दूर की आशंका नहीं, बल्कि वर्तमान की सच्चाई है।
भारत में औसत तापमान में निरंतर वृद्धि देखी जा रही है। भारतीय मौसम विभाग के अनुसार, 1901 से अब तक औसत सतही तापमान में लगभग 0.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है। हाल के वर्षों में दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में 50 डिग्री सेल्सियस तक तापमान रिकॉर्ड किया गया। यह न केवल आम जनजीवन को प्रभावित करता है, बल्कि कृषि, जल स्रोतों और ऊर्जा आपूर्ति पर भी सीधा प्रभाव डालता है।
जलवायु परिवर्तन का सबसे बड़ा असर भारत के मानसून पैटर्न पर पड़ा है। पहले जहां मानसून एक निश्चित समय पर आता था और संतुलित वर्षा होती थी, अब वहां या तो अत्यधिक बारिश होती है जिससे बाढ़ आती है, या फिर लम्बे समय तक सूखा पड़ता है। उदाहरण के तौर पर, असम और बिहार में एक ओर बाढ़ तबाही मचाती है, वहीं महाराष्ट्र, विदर्भ और बुंदेलखंड जैसे क्षेत्रों में सूखा किसानों के लिए संकट बन जाता है।
भारत में जलवायु परिवर्तन (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
हिमालय भारत के लिए जल का प्रमुख स्रोत है, लेकिन यहां भी तापमान वृद्धि के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। यह नदियों के प्रवाह को प्रभावित करता है और भविष्य में जल संकट की स्थिति उत्पन्न कर सकता है। कश्मीर और उत्तराखंड जैसे क्षेत्रों में बर्फबारी की मात्रा में गिरावट देखी गई है, जिससे पर्यटन उद्योग और स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित हो रहे हैं।
भारत की बड़ी आबादी कृषि पर निर्भर है। जलवायु परिवर्तन के कारण फसल चक्र प्रभावित हो रहा है जैसे कि गेहूं और धान की बुआई का समय बदल गया है। उपज में गिरावट आ रही है, जिससे किसानों की आय घट रही है। कीट और रोग अधिक फैलने लगे हैं क्योंकि गर्मी और नमी का अनुपात असंतुलित हो गया है। खेती अब अधिक जोखिम भरा कार्य बन चुकी है, जिससे किसानों की आत्महत्याओं में भी वृद्धि देखी गई है।
लू (Heatstroke) के मामले बढ़े हैं। मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया जैसी बीमारियाँ अब उन क्षेत्रों में भी फैल रही हैं जहां पहले ये नहीं होती थीं। मानसिक तनाव और अवसाद का स्तर भी बढ़ रहा है, विशेषकर उन लोगों में जो प्राकृतिक आपदाओं से बार-बार प्रभावित होते हैं।
प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
जलवायु परिवर्तन से केवल प्राकृतिक तंत्र ही नहीं, बल्कि देश की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित हो रही है, जैसे- आपदाओं के कारण करोड़ों रुपये की संपत्ति नष्ट हो जाती है। पलायन की घटनाएँ बढ़ रही हैं- किसान और मजदूर शहरों की ओर जा रहे हैं। पेयजल संकट भी सामाजिक असंतोष और संघर्ष का कारण बन सकता है।
भारत सरकार और वैज्ञानिक संस्थाएँ इस दिशा में प्रयास कर रही हैं, जैसे- राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्ययोजना (NAPCC) के अंतर्गत विभिन्न मिशन चलाए जा रहे हैं जैसे सोलर मिशन, जल मिशन आदि। वनों की कटाई पर रोक, पुन: वनीकरण, और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दिया जा रहा है। आम नागरिकों को भी प्लास्टिक का कम उपयोग, वृक्षारोपण और ऊर्जा की बचत जैसे छोटे-छोटे कदमों से जुड़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।
जलवायु परिवर्तन कोई भविष्य की चुनौती नहीं, बल्कि आज की सच्चाई है। भारत में मौसम का बदलता स्वरूप हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रहा है चाहे वह भोजन हो, स्वास्थ्य हो, रोजगार हो या पर्यावरण। यह आवश्यक है कि सरकार, वैज्ञानिक समुदाय और आम नागरिक मिलकर इस संकट का समाधान खोजें।