

क्या आप जानते हैं कि जलाभिषेक और रुद्राभिषेक में क्या फर्क है? जलाभिषेक और रुद्राभिषेक दोनों ही शिवभक्ति के महत्वपूर्ण माध्यम हैं। एक सरल आस्था की अभिव्यक्ति है, तो दूसरा गहराई से जुड़ी वैदिक परंपरा। दोनों का अपना अलग महत्त्व है और शिवजी हर उस श्रद्धा को स्वीकार करते हैं जो सच्चे मन से की जाए। इस लेख में जानिए दोनों पूजाओं की विधि, नियम, महत्व और धार्मिक दृष्टिकोण से इनका महत्व।
New Delhi: हिन्दू धर्म में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कई तरह की पूजा-पद्धतियाँ प्रचलित हैं। विशेष रूप से श्रावण मास में शिवलिंग पर अभिषेक का अत्यधिक महत्त्व होता है। दो प्रमुख रूप हैं जलाभिषेक और रुद्राभिषेक। हालांकि दोनों का उद्देश्य शिव को प्रसन्न करना ही है, लेकिन इनकी विधि, भावना और प्रभाव में कुछ महत्वपूर्ण अंतर होते हैं।
जलाभिषेक का अर्थ है शिवलिंग पर शुद्ध जल अर्पित करना। यह सबसे सरल और प्रचलित अभिषेक विधि है, जिसे कोई भी भक्त आसानी से कर सकता है। विशेष रूप से श्रावण मास में भक्तजन सुबह उठकर शिव मंदिर जाते हैं और शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं। यह एक सामान्य लेकिन अत्यंत पुण्यदायक पूजा मानी जाती है।
प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें
कांसे या तांबे के लोटे में शुद्ध जल लें
"ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग पर जल अर्पित करें
जल के साथ बेलपत्र, आक, धतूरा और सफेद फूल भी अर्पित करें
[caption id="attachment_322152" align="aligncenter" width="1280"] रुद्राभिषेक (सोर्स-गूगल)[/caption]
जलाभिषेक से मन की शुद्धि होती है, पापों का नाश होता है और व्यक्ति में मानसिक शांति आती है। यह शिवभक्ति की पहली और सरल सीढ़ी मानी जाती है।
रुद्राभिषेक एक विशेष वैदिक प्रक्रिया है जिसमें ऋग्वेद या यजुर्वेद के रुद्र सूक्त मंत्रों का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, शहद आदि से अभिषेक किया जाता है। यह पूजा विशेष अवसरों पर ब्राह्मणों द्वारा की जाती है और इसमें मंत्रोच्चारण की विशेष भूमिका होती है।
शुभ मुहूर्त में पंडित के साथ पूजा आरंभ करें
पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) से शिवलिंग का अभिषेक करें
रुद्र सूक्त, शिवोपासना मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र आदि का उच्चारण करें
अंत में आरती, प्रसाद वितरण और शिव चालीसा का पाठ करें
रुद्राभिषेक अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है। इससे कष्टों का निवारण, ग्रहदोष शांति, स्वास्थ्य लाभ और समृद्धि प्राप्त होती है। विशेष रूप से श्रावण सोमवार, महाशिवरात्रि या जन्मदिन/विवाह के अवसर पर यह करवाना अत्यंत फलदायक होता है।
जलाभिषेक और रुद्राभिषेक दोनों ही भगवान शिव की आराधना के प्रभावशाली माध्यम हैं, लेकिन इनकी विधि, उद्देश्य और प्रक्रिया में महत्वपूर्ण अंतर होता है। जलाभिषेक एक सरल प्रक्रिया है जिसमें भक्त केवल शुद्ध जल को शिवलिंग पर अर्पित करता है। यह पूजा कोई भी व्यक्ति बिना पंडित की सहायता के कर सकता है और यह किसी भी दिन की जा सकती है। इसका मुख्य उद्देश्य सरल भक्ति के माध्यम से मन की शुद्धि और शांति प्राप्त करना होता है।
वहीं दूसरी ओर, रुद्राभिषेक एक विस्तृत और वैदिक प्रक्रिया है जिसमें विविध पवित्र द्रव्यों जैसे दूध, दही, घी, शहद आदि से शिवलिंग का अभिषेक किया जाता है। इस पूजन में रुद्रसूक्त, महामृत्युंजय मंत्र और अन्य वैदिक मंत्रों का उच्चारण आवश्यक होता है, अतः इसे पंडित की उपस्थिति में ही संपन्न किया जाता है। रुद्राभिषेक विशेष रूप से श्रावण सोमवार, महाशिवरात्रि या किसी विशेष अवसर पर किया जाता है। इसका उद्देश्य विशेष फल की प्राप्ति, ग्रहदोषों की शांति और मानसिक व आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करना होता है।