

सावन मास में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्व होता है। इस दौरान शिवलिंग पूजन के नियमों का पालन करना जरूरी होता है, खासकर महिलाओं के लिए निर्धारित नियमों का। आइए जानें ‘नंदी मुद्रा’ में शिवलिंग पूजन क्यों है महत्वपूर्ण।
शिवलिंग की पूजा (सोर्स-गूगल)
New Delhi: सावन का महीना शुरू होते ही सम्पूर्ण भारत में शिवभक्ति का उत्साह चरम पर पहुंच जाता है। विशेष रूप से यह मास भगवान शिव की आराधना के लिए समर्पित होता है, जहां शिवलिंग पर जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक और रुद्राभिषेक जैसे विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। कांवड़ यात्रा के माध्यम से हजारों भक्त गंगाजल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं।
शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्व
हिंदू धर्म में शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्व है। शिव को 'परम कल्याणकारी' माना जाता है और शिवलिंग को सृजन तथा ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक। वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिस तत्व में विलीन हो जाती है और जिससे सृष्टि की पुनः रचना होती है, वही शिवलिंग है। इसलिए इसे सृजन और संहार दोनों का आधार माना गया है।
हालांकि शास्त्रों में शिवलिंग पूजन के कुछ विशेष नियम बताए गए हैं, विशेषकर महिलाओं के लिए। यह माना जाता है कि शिवलिंग पुरुष तत्व का प्रतीक है, अतः महिलाओं को इसका पूजन करते समय विशेष सावधानी रखनी चाहिए।
नंदी मुद्रा में करें पूजन
ऐसे में महिलाओं को शिवलिंग का स्पर्श नंदी मुद्रा में ही करना चाहिए। नंदी भगवान शिव के वाहन और परम भक्त माने जाते हैं। नंदी मुद्रा में बैठकर पूजा करने से शिव अधिक प्रसन्न होते हैं। इस मुद्रा में पहली और आखिरी उंगली सीधी रखी जाती है, जबकि बीच की दो उंगलियों को अंगूठे से जोड़कर पूजा की जाती है।
शिवलिंग पूजन (सोर्स-गूगल)
ऐसा माना जाता है कि इस मुद्रा से महिलाओं द्वारा किए गए शिवलिंग पूजन से शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। अगर महिला श्रद्धापूर्वक और विधिपूर्वक इस मुद्रा में पूजन करें, तो उनके समस्त दोष दूर होते हैं और इच्छाएं पूर्ण होती हैं।
इसलिए सावन के इस पवित्र महीने में खासकर सोमवार के दिन जब शिव की पूजा का अत्यधिक महत्व होता है महिलाएं शास्त्रों में बताए गए नियमों का पालन करते हुए 'नंदी मुद्रा' में शिवलिंग का पूजन करें।
डिस्क्लेमर
यह लेख धार्मिक मान्यताओं और पुराणों पर आधारित है। इसका उद्देश्य किसी की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है। पाठक अपनी आस्था और श्रद्धा अनुसार निर्णय लें। पूजा संबंधी विधियों के लिए किसी विद्वान पंडित या आचार्य की सलाह भी ली जा सकती है।