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छठ व्रत हिन्दू धर्म का महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें सूर्य देव और छठी मैया की पूजा की जाती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा में दिशा का विशेष महत्व है। पूर्व और उत्तर की ओर मुख करके अर्घ्य देने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, समृद्धि और स्वास्थ्य मिलता है।
सूर्य देव और छठी मैया की आराधना
New Delhi: छठ व्रत हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पवित्र पर्व है, जिसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत में सूर्य देव और छठी मैया की विशेष आराधना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह पर्व जीवन में ऊर्जा, समृद्धि और स्वास्थ्य लाने का काम करता है।
वास्तु शास्त्र के अनुसार सूर्य पूजा के लिए पूर्व दिशा को सर्वोत्तम माना गया है। यह दिशा सूर्योदय की दिशा है, इसलिए इसमें खड़े होकर या बैठकर अर्घ्य देने से सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। छठ व्रती नदी, तालाब या घर के खुले स्थान में हमेशा पूर्व की ओर मुख करके पूजा करें। इससे जीवन में सफलता, मानसिक शांति और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
छठ पूजा की पवित्रता
पूर्व दिशा के साथ उत्तर दिशा का उपयोग भी बहुत लाभकारी माना जाता है। उत्तर दिशा से मिलने वाली ऊर्जा धन और समृद्धि को आमंत्रित करती है। वास्तु शास्त्र में यह विशेष रूप से कहा गया है कि उत्तर दिशा में जल या अर्घ्य अर्पित करना शुभ होता है। इससे परिवार में स्वास्थ्य और खुशहाली बनी रहती है।
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वास्तु और धार्मिक परंपराओं के अनुसार, दक्षिण दिशा में पूजा करना उचित नहीं माना जाता। इस दिशा से नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव की आशंका होती है। वहीं, पश्चिम दिशा में अर्घ्य देने को कम शुभ माना गया है। इसलिए छठ पूजा में अर्घ्य हमेशा पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके अर्पित करना चाहिए।
छठ व्रती साधना और संयम के साथ अर्घ्य अर्पित करते हैं। नदी, तालाब या अन्य जल स्रोत पर खड़े होकर सूर्य देव और छठी मैया को जल अर्पित करना धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। अर्घ्य के साथ ठेकुआ, कसार और अन्य पारंपरिक प्रसाद भी अर्पित किए जाते हैं।