हिंदी
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रती सूर्यदेव और छठी मईया को गुड़ और खीर से बना प्रसाद अर्पित करते हैं। शुभ मुहूर्त और पारंपरिक रीतियों के साथ यह दिन परिवार में सुख-शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
छठ पूजा का दूसरा दिन खरना
New Delhi: छठ पूजा न केवल आस्था का पर्व है, बल्कि यह सादगी, शुद्धता और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक भी है। आज छठ पूजा का दूसरा दिन है, जिसे खरना कहा जाता है, और यह व्रती के लिए विशेष महत्व रखता है। इस दिन बनाए जाने वाले प्रसाद का धार्मिक रूप से बहुत महत्व है। माना जाता है कि सूर्यदेव और छठी मईया को अर्पित ये प्रसाद परिवार में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य लाता है।
व्रती महिला इस दिन सूर्योदय से पहले निर्जला व्रत रखती हैं और सूर्यास्त के समय गुड़ और खीर का प्रसाद बनाकर सूर्यदेव तथा छठी मईया को अर्पित करती हैं। यह भोजन शुद्धता, सादगी और श्रद्धा का प्रतीक होता है। प्रत्येक व्यंजन का अपना अलग स्वाद और धार्मिक महत्व होता है।
खरना का दिन विशेष माना जाता है क्योंकि इस दिन भक्त निर्जला व्रत रखने के बाद पहली बार भोजन ग्रहण करते हैं। परंपरागत रूप से, सूर्यास्त के समय प्रसाद तैयार किया जाता है। शुभ मुहूर्त में गुड़ और खीर का भोग लगाना अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह दिन भक्त के संयम, भक्ति और परिवार में सुख-समृद्धि का प्रतीक है।
खरना के दिन गुड़ की खीर चावल, दूध और गुड़ से बनाई जाती है। भक्त इसे सूर्य देव को अर्पित करते हैं और फिर परिवार के सभी सदस्य इसे ग्रहण करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि गुड़ की मिठास और खीर के पौष्टिक गुण तन और मन दोनों को ऊर्जावान बनाते हैं। इसे खाने से भक्त की मेहनत और तपस्या सफल होती है और घर में सुख-शांति आती है।
क्या है छठ पूजा के प्रसाद की पवित्रता?
कसाड़ छठ का दूसरा प्रमुख प्रसाद है। यह भुने हुए बेसन, घी और गुड़ से बनाया जाता है। इसका स्वाद हल्का और पौष्टिक होता है। धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि गुड़ और चना सूर्य देव को बहुत प्रिय हैं, इसलिए इन्हें प्रसाद में शामिल किया जाता है। कसार बनाते समय कोई मसाला या अतिरिक्त सामग्री नहीं डाली जाती, जिससे इसकी शुद्धता बनी रहती है। यह प्रसाद शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और ठंड के मौसम में स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है।
छठ पूजा के पहले दिन, "नहाय-खाय" से लेकर अर्घ्य के समय तक खीर या रसियाव का विशेष महत्व होता है। इसे चावल, दूध और गुड़ से बनाया जाता है। छठी मैया को रसियाव समर्पित करने के बाद, परिवार के सदस्य इसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं। इस व्यंजन को पवित्रता, संतुलन और संयम का प्रतीक माना जाता है।
Chhath Puja 2025: नहाय-खाय से होगा महापर्व का शुभारंभ, जानिए तिथि, विधि और महत्व
छठ पूजा के दौरान विशेष रूप से फल प्रसाद चढ़ाया जाता है। केला, नारियल, गन्ना, सेब और सीताफल जैसे फल सूर्य देव की कृपा के प्रतीक हैं। इन्हें अर्घ्य के दौरान जल के साथ चढ़ाया जाता है। यह परंपरा हमें प्रकृति और उसकी कृपा के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना सिखाती है।
छठ पूजा के प्रसाद की सबसे खास विशेषता इसकी सादगी है। इसमें प्याज, लहसुन या अन्य व्यावसायिक मसालों का उपयोग नहीं किया जाता है। सभी चीजें घर में बनी सामग्री से और पवित्र वातावरण में तैयार की जाती हैं। यही कारण है कि यह प्रसाद केवल स्वाद का नहीं, बल्कि आध्यात्मिक संतुष्टि का प्रतीक है।
खरना केवल भोजन का अवसर नहीं है। यह व्रती की भक्ति, संयम और पारिवारिक एकता का प्रतीक है। गुड़, खीर और अन्य प्रसाद चढ़ाने की परंपरा सूर्य देव और छठी मैया के प्रति कृतज्ञता और आभार को दर्शाती है। यह दिन पारिवारिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।