

गर्भावस्था एक विशेष और संवेदनशील समय होता है, जिसमें महिला के मन, शरीर और विचारों में बदलाव आते हैं। इस दौरान धार्मिक आस्था और पूजा-पाठ मानसिक शांति का स्रोत बन सकते हैं। लेकिन क्या गर्भवती महिलाओं को शिवलिंग पूजन करना चाहिए? आइए जानते हैं शास्त्रों की राय।
शिवलिंग (सोर्स-गूगल)
New Delhi: गर्भावस्था के दौरान महिला का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य न केवल उसके लिए, बल्कि गर्भ में पल रहे शिशु के विकास के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस समय पूजा-पाठ और आध्यात्म से जुड़ाव महिलाओं को मानसिक शांति देने के साथ-साथ सकारात्मक ऊर्जा से भी भर देता है।
कई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गर्भवती महिलाओं को गीता का पाठ मंत्रोच्चारण और देवी-देवताओं की आराधना करने की सलाह दी जाती है। विशेष रूप से यह माना जाता है कि जिस प्रकार का आचरण गर्भवती महिला रखती है, उसी का प्रभाव शिशु के स्वभाव और मानसिकता पर भी पड़ता है।
गर्भवती महिलाओं को शिवलिंग की पूजा नहीं करनी चाहिए
हालांकि जब बात शिवलिंग पूजन की आती है तो समाज में इसे लेकर विभिन्न धारणाएं प्रचलित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि गर्भवती महिलाओं को शिवलिंग की पूजा नहीं करनी चाहिए, जबकि अन्य इस विचार को केवल अंधविश्वास मानते हैं।
शिवजी अत्यंत सरलता से प्रसन्न होने वाले देवता हैं और उनकी पूजा में किसी प्रकार की कठोरता आवश्यक नहीं होती। वे भाव के भूखे हैं, नियमों के नहीं। ऐसे में गर्भवती महिलाएं भी संपूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ शिवलिंग पूजन कर सकती हैं।
गर्भावस्था में शिवलिंग की पूजा वर्जित
वास्तव में शास्त्रों में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि गर्भावस्था में शिवलिंग की पूजा वर्जित है। बल्कि यह समय ऐसा होता है जब महिला को मानसिक संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा की अधिक आवश्यकता होती है। ऐसे में भगवान शिव की पूजा न केवल आंतरिक शांति देती है, बल्कि शिशु के मानसिक और आध्यात्मिक विकास में भी सहायक हो सकती है।
शिवलिंग पूजन की सरल विधि गर्भवती महिलाओं के लिए
अधिक देर तक खड़े होकर पूजा न करें, बल्कि कुर्सी या टेबल का प्रयोग करें।
बिना उपवास किए भी सुबह स्नान कर शुद्ध जल शिवलिंग पर चढ़ाएं।
घर पर एक छोटा शिवलिंग स्थापित कर नियमित रूप से जल, बेलपत्र और धूप-दीप अर्पित करें।
मंत्रों का उच्चारण मन ही मन करें और भगवान शिव से अपने व अपने बच्चे के स्वास्थ्य की प्रार्थना करें।
शिव पूजा के लाभ गर्भावस्था में
मानसिक शांति और भावनात्मक स्थिरता मिलती है।
नकारात्मक ऊर्जा और ग्रह दोषों से सुरक्षा होती है।
शिशु पर शुभ संस्कारों का प्रभाव पड़ता है।
मां और बच्चे दोनों का स्वास्थ्य बेहतर रहता है।
डिस्क्लेमर
इस लेख में दी गई जानकारियाँ धार्मिक ग्रंथों, परंपराओं और विशेषज्ञों की राय पर आधारित हैं। गर्भावस्था से संबंधित किसी भी धार्मिक या शारीरिक गतिविधि को अपनाने से पहले अपने परिवार के बुज़ुर्गों से सलाह अवश्य लें।