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अमेरिका ने वर्क परमिट के ऑटो एक्सटेंशन को खत्म कर दिया है, जिससे प्रवासी भारतीयों की नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है। अब हर रिन्यूअल के लिए नई जांच जरूरी होगी। इस फैसले से हजारों पेशेवरों को बेरोजगारी का सामना करना पड़ सकता है।
वर्क परमिट रिन्यूअल में नहीं मिलेगी राहत
New Delhi: अमेरिका ने वर्क परमिट धारकों के लिए एक बड़ा और चौंकाने वाला फैसला लिया है। अमेरिकी डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) ने रोजगार प्राधिकरण दस्तावेज (EAD) के ऑटोमैटिक रिन्यूअल की सुविधा खत्म कर दी है। इसका मतलब है कि अब अमेरिका में काम कर रहे विदेशी नागरिकों को हर बार वर्क परमिट रिन्यू करवाने के लिए नई जांच प्रक्रिया से गुजरना होगा।
यह नया नियम 30 अक्टूबर 2025 से प्रभावी हो गया है। इससे उन हजारों भारतीयों पर सीधा असर पड़ेगा जो अमेरिका में H-1B वीजा धारकों के जीवनसाथी या OPT प्रोग्राम के तहत काम कर रहे हैं। अब तक, EAD की समयसीमा समाप्त होने के बाद रिन्यूअल फाइल पेंडिंग होने पर भी कर्मचारी काम जारी रख सकते थे, लेकिन अब यह सुविधा खत्म कर दी गई है।
भारत से अमेरिका में काम करने वाले लोगों में बड़ी संख्या उन लोगों की है जो अपने H-1B वीजा धारक पति या पत्नी के साथ वहां रहकर EAD के तहत काम कर रहे हैं। ऑटो एक्सटेंशन खत्म होने के बाद अब इन लोगों को हर बार वर्क परमिट रिन्यूअल के लिए आवेदन करना होगा और जांच पूरी होने तक वे काम नहीं कर पाएंगे।
इससे न केवल इन परिवारों की आमदनी पर असर पड़ेगा बल्कि कंपनियों को भी योग्य कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिकी इमिग्रेशन एक्सपर्ट्स का कहना है कि पहले से ही EAD रिन्यूअल प्रक्रिया में 6 से 8 महीने तक का समय लग जाता है। ऐसे में, बिना ऑटो एक्सटेंशन के हजारों प्रवासी कर्मचारियों की नौकरी पर तलवार लटक सकती है।
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OPT (Optional Practical Training) प्रोग्राम के तहत पढ़ाई के बाद अमेरिका में काम कर रहे भारतीय छात्रों को भी इस नए नियम का असर झेलना पड़ेगा। जब तक उनका नया वर्क परमिट मंजूर नहीं होता, वे अपने नियोक्ता के लिए काम नहीं कर पाएंगे। ग्रीन कार्ड धारकों, L-1 और O-1 वीजा धारकों पर इसका असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि उन्हें EAD की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन भारतीय छात्रों और H-1B स्पाउस के लिए यह बदलाव एक “झटका” साबित हो सकता है।
प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) ने अपने बयान में कहा कि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा बढ़ाने और धोखाधड़ी रोकने के लिए उठाया गया है। एजेंसी ने कहा कि नई जांच प्रणाली से संभावित रूप से संदिग्ध या गलत दस्तावेज़ रखने वाले लोगों की पहचान में मदद मिलेगी और अमेरिकी वर्कफोर्स को अधिक पारदर्शी बनाया जा सकेगा।
हालांकि, इमिग्रेशन विशेषज्ञों का मानना है कि बिना पर्याप्त तैयारी और सूचना के यह फैसला "नौकरी की अस्थिरता" पैदा कर सकता है। कंपनियां पहले से ही प्रतिभाशाली कर्मचारियों को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं, ऐसे में यह बदलाव स्थिति को और जटिल कर देगा।
कैलिफ़ोर्निया स्थित इमिग्रेशन वकील एना जोसेफ का कहना है, "EAD रिन्यूअल प्रक्रिया पहले से ही धीमी है। अब अगर ऑटो एक्सटेंशन की सुविधा भी खत्म कर दी गई, तो हजारों परिवार बेरोज़गारी और अनिश्चितता के दौर में फंस जाएंगे।"
भारतीय-अमेरिकी संगठन भी इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह नीति न केवल परिवारों को प्रभावित करेगी बल्कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचा सकती है, क्योंकि बड़ी संख्या में कुशल प्रवासी भारतीय टेक सेक्टर में काम कर रहे हैं।
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अमेरिका की कई टेक और स्टार्टअप कंपनियों ने इस कदम को लेकर चिंता जताई है। उनका कहना है कि योग्य कर्मचारियों की कमी से प्रोजेक्ट्स पर असर पड़ सकता है। टेक इंडस्ट्री में भारतीय प्रोफेशनल्स की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा है, और इस निर्णय से वर्कफोर्स में अस्थिरता बढ़ सकती है।