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पाकिस्तान में राजनीतिक संघर्ष अब सेना और इमरान खान के बीच नहीं, बल्कि सेना के संस्थागत प्रभुत्व, प्रांतीय पहचान और अर्थव्यवस्था के संकट से जुड़ा हुआ है। इमरान खान की बढ़ती लोकप्रियता और आर्थिक संकट ने पाकिस्तान को एक गंभीर राजनीतिक और सामाजिक संकट में डाल दिया है।
पाकिस्तान में संकट गहरा
Islamabad: पाकिस्तान का वर्तमान संकट केवल इमरान खान बनाम सेना की राजनीतिक लड़ाई तक सीमित नहीं है, बल्कि अब यह मुद्दा सेना के संस्थागत प्रभुत्व, प्रांतों की क्षेत्रीय पहचान और अर्थव्यवस्था के संकट से जुड़ा हुआ है। इमरान खान की पार्टी, पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ़ (PTI) और पाकिस्तानी सेना के बीच का संघर्ष देश को एक नए राजनीतिक और सामाजिक पुनर्गठन की ओर ले जा रहा है। यह संघर्ष केवल राजनीतिक शक्ति का नहीं, बल्कि पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा, विदेश नीति और आर्थिक संरचना का भी है।
पाकिस्तान के आंतरिक खुफिया रिपोर्टों के अनुसार, पहली बार प्रजातंत्र के खिलाफ नहीं, बल्कि सैन्य प्रतिष्ठान के खिलाफ जन-आंदोलन की मानसिकता उभर रही है। सेना के प्रयासों के बावजूद, पीटीआई के समर्थक अब व्यापक स्तर पर संगठित विरोध में बदलते जा रहे हैं। यह स्थिति सेना के लिए सिर्फ राजनीतिक असुविधा नहीं, बल्कि एक संस्थागत संकट बन गई है, क्योंकि पहली बार सेना की वैधता को लोकप्रियता से चुनौती मिल रही है।
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सेवानिवृत्त पाकिस्तान मिलिट्री अकादमी के एक ब्रिगेडियर ने बताया कि समस्या केवल इमरान खान की लोकप्रियता नहीं है, बल्कि असल समस्या यह है कि सेना का संस्थागत प्रभुत्व अब लोकप्रिय वैधता से कमजोर महसूस कर रहा है। पाकिस्तान में यह संकट सामरिक खतरे का रूप ले चुका है, क्योंकि सेना का अपनी रणनीति पर नियंत्रण अब जनता के विरोध से खतरे में है।
पाकिस्तान में संकट केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि प्रांतीय जनसत्ता और केंद्रीय सैन्य सत्ता के बीच संघर्ष बन चुका है। पंजाब जैसे प्रांत में पीटीआई के प्रति जनमत बरकरार है, जबकि खैबर पख्तूनख्वा में असंतोष बढ़ रहा है। इसी तरह, सिंध में इमरान खान के लिए भारी समर्थन है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) का प्रभाव अभी भी मजबूत है। यह प्रदर्शित करता है कि राजनीतिक संघर्ष अब राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि प्रांतीय स्तर पर भी गहराया हुआ है।
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बलूचिस्तान की स्थिति अलग है, जहां यह संघर्ष इमरान खान और सेना के बीच नहीं, बल्कि बलूच अस्मिता और इस्लामाबाद के बीच है। बलूचिस्तान में स्थानीय पहचान और स्वतंत्रता के मुद्दे काफी समय से उठते रहे हैं। साउथ एशिया पॉलिसी कंसोर्टियम के अनुसार, पाकिस्तान की शक्ति रावलपिंडी और इस्लामाबाद के कॉरिडोर तक सीमित है, जबकि इमरान खान की लोकप्रियता पूरे देश में फैली हुई है। बलूचिस्तान में इस संघर्ष ने एक नई दिशा ले ली है, जहां प्रांतीय अस्मिता की रक्षा का मुद्दा प्रमुख बन चुका है।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट से जूझ रही है। विदेशी मुद्रा भंडार न्यूनतम स्तर पर है और आईएमएफ से कर्ज राहत के बावजूद कोई स्थायी समाधान नहीं है। खाद्य और ईंधन संकट, बेरोजगारी और मुद्रास्फीति पाकिस्तान के आम नागरिकों को परेशान कर रही है। सेना का सामना अब केवल व्यवस्था को बनाए रखने की चुनौती नहीं है, बल्कि वह ढहती अर्थव्यवस्था और जनता के बढ़ते असंतोष को भी संभालने की कोशिश कर रही है। इसके बावजूद, सेना के पास किसी ठोस समाधान का मॉडल नहीं है, बल्कि केवल देश को नियंत्रित करने की क्षमता है।
डिफेंस एनालिटिक्स नेटवर्क के अनुसार, पाकिस्तान की सेना का सबसे बड़ा खतरा यह है कि आर्थिक संकट उसकी सैन्य रणनीति को कमजोर कर सकता है। सेना का प्रयास जनसमर्थन को दबाकर निष्क्रिय करना था, लेकिन इमरान खान के समर्थन में अचानक वृद्धि ने इस रणनीति को विफल कर दिया है। यह संघर्ष अब त्रिआयामी युद्ध बन चुका है, जिसमें सेना, राजनीति और अर्थव्यवस्था तीनों मोर्चों पर चुनौती सामने है। इस टकराव में अगर कोई मोर्चा गलत होता है, तो पाकिस्तान को विभाजनकारी हिंसा का सामना करना पड़ सकता है।
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