

नेपाल में युवाओं के नेतृत्व में भड़का आंदोलन अब हिंसा में बदल चुका है। गौतम बुद्ध एयरपोर्ट और संसद भवन समेत कई प्रतिष्ठानों में आगजनी और तोड़फोड़ हुई है। प्रदर्शनकारियों ने जेल पर हमला कर कैदियों को भगाया।
गौतम बुद्ध एयरपोर्ट में आगजनी (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
Kathmandu: नेपाल में जारी राजनीतिक अस्थिरता और युवाओं के नेतृत्व में उभरते जनआंदोलन ने अब हिंसक और बेहद खतरनाक रूप ले लिया है। मंगलवार शाम को भैरहवा स्थित गौतम बुद्ध अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर प्रदर्शनकारियों ने हमला कर दिया और एयरपोर्ट परिसर में जमकर आगजनी और तोड़फोड़ की।
करीब 1,000 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने एयरपोर्ट की सुरक्षा व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया और सुरक्षा बलों के वाहनों में आग लगा दी। भीड़ ने मुख्य टर्मिनल भवन के पास स्थित कई वाहनों और ऑफिस काउंटरों को भी निशाना बनाया। इसके बाद सुरक्षा कारणों से फ्लाइट संचालन अस्थायी रूप से रोक दिया गया।
प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
इसी दिन काठमांडू और बीरगंज में भी सरकार विरोधी प्रदर्शन हिंसक हो गए। काठमांडू में नेपाल संसद, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली का आवास, राष्ट्रपति भवन और पूर्व प्रधानमंत्री झलनाथ खनाल का आवास सहित कई स्थानों पर प्रदर्शनकारियों ने तोड़फोड़ और आगजनी की। इससे पहले खनाल के घर पर हुए हमले में उनकी पत्नी राजलक्ष्मी खनाल की मौत हो चुकी है, जिससे देश भर में आक्रोश और गहरा गया है।
काठमांडू के अलावा बीरगंज में भी भीड़ ने कई सरकारी भवनों को निशाना बनाया और पुलिस पर पेट्रोल बम फेंके। जवाबी कार्रवाई में पुलिस ने आंसू गैस और रबर बुलेट्स का इस्तेमाल किया, लेकिन प्रदर्शनकारियों की उग्रता पर काबू नहीं पाया जा सका।
स्थिति और भी गंभीर तब हो गई जब एक जेल परिसर पर हमला कर भीड़ ने मुख्य गेट तोड़ डाला, जिससे कई कैदी फरार हो गए। प्रशासन ने पूरे इलाके को सील कर दिया है और जेल से भागे कैदियों की तलाश में विशेष सुरक्षा बलों की तैनाती की गई है।
नेपाल सरकार ने राजधानी सहित कई जिलों में इंटरनेट सेवा बंद कर दी है, जबकि सेना को कुछ संवेदनशील इलाकों में फ्लैग मार्च करने का आदेश दिया गया है। इस बीच मानवाधिकार संगठनों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने नेपाल सरकार से संयम बरतने और युवाओं की मांगों को गंभीरता से सुनने की अपील की है।
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नेपाल में चल रहा यह आंदोलन अब सिर्फ राजनीतिक विरोध नहीं रहा, यह सामाजिक असंतोष और आर्थिक हताशा का विस्फोट बन चुका है। अगर जल्द कोई समाधान नहीं निकाला गया, तो यह संकट देश की लोकतांत्रिक नींव को भी हिला सकता है।