

बांग्लादेश में छात्रों द्वारा शिक्षा व्यवस्था और बेरोजगारी के खिलाफ किए गए विरोध-प्रदर्शन ने शुरुआत में सरकार को झकझोर दिया। पढ़िए डाइनामाइट न्यूज़ की ये रिपोर्ट
शेख हसीना (सोर्स-इंटरनेट)
नई दिल्ली: 1971 में पाकिस्तान के सैन्य शासन से आज़ादी पाने वाला बांग्लादेश आज एक बार फिर राजनीतिक संकट के ऐसे दौर में प्रवेश कर चुका है, जहां उसका लोकतांत्रिक ढांचा डगमगाता नजर आ रहा है। अगस्त 2024 में छात्रों द्वारा शुरू किए गए आंदोलन ने जल्द ही राष्ट्रव्यापी स्वरूप ले लिया और अंततः प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद सेना ने हस्तक्षेप करते हुए सत्ता की कमान अपने हाथ में ले ली और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता डॉ. मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक अंतरिम सरकार का गठन कर दिया।
छात्रों के आंदोलन से शुरू हुई अस्थिरता
बांग्लादेश में छात्रों द्वारा शिक्षा व्यवस्था और बेरोजगारी के खिलाफ किए गए विरोध-प्रदर्शन ने शुरुआत में सरकार को झकझोर दिया। लेकिन जैसे-जैसे आंदोलन तेज हुआ, इसमें अन्य वर्गों जैसे शिक्षक, सरकारी कर्मचारी और सामाजिक संगठन भी शामिल होते गए। सरकार द्वारा लगाए गए कर्फ्यू आदेशों को सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज-जमान ने मानने से इनकार कर दिया, जिससे राजनीतिक संतुलन पूरी तरह बिगड़ गया।
सेना का हस्तक्षेप और अस्थायी सरकार का गठन
शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद जनरल जमान ने खुद को सत्ता से दूर रखते हुए डॉ. मुहम्मद यूनुस को कार्यवाहक प्रधानमंत्री घोषित किया। यूनुस के नेतृत्व में बनी इस सरकार को सेना का पूरा समर्थन प्राप्त है। हालांकि शुरुआत में यह कदम स्थिरता की दिशा में देखा गया, लेकिन अब इसी के खिलाफ देशभर में व्यापक असंतोष उभरने लगा है।
लोकतंत्र की वापसी की मांग
सरकारी कर्मचारियों, शिक्षकों और सामाजिक संगठनों ने यूनुस सरकार के खिलाफ व्यापक प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि जल्द से जल्द चुनाव कराए जाएं और एक चुनी हुई सरकार को सत्ता सौंपी जाए। लोग आशंकित हैं कि सेना की सत्ता में बढ़ती भूमिका बांग्लादेश को एक बार फिर सैन्य शासन की ओर धकेल सकती है।
धार्मिक असहिष्णुता और मानवाधिकार उल्लंघन
राजनीतिक अस्थिरता के इस दौर में बांग्लादेश के हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमलों की घटनाएं बढ़ी हैं। धार्मिक कट्टरता और असहिष्णुता बढ़ रही है, जिससे सामाजिक तनाव और भय का माहौल बन गया है। यह स्थिति 1971 से पहले के पाकिस्तान की याद दिलाती है, जब बांग्लादेश ने अलग राष्ट्र बनने का साहसिक निर्णय लिया था।