Mughal Tax System: खेत से कारोबार तक, जानिए मुगलों ने आम लोगों से कौन-कौन से टैक्स वसूले?

मुगल काल में टैक्स प्रणाली बेहद विस्तृत और संगठित थी। खेती, धर्म, व्यापार और यात्राओं पर कर लगाकर मुगलों ने खजाने को भरा। ये टैक्स सल्तनत की प्रशासनिक और सैन्य व्यवस्था की रीढ़ थे।

Updated : 3 August 2025, 3:12 PM IST
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New Delhi: भारत में मुगलों ने करीब तीन सदियों (1526–1857) तक शासन किया और एक सशक्त प्रशासनिक व आर्थिक व्यवस्था स्थापित की। इस शासन प्रणाली का सबसे मजबूत स्तंभ था उनका कर प्रणाली (Tax System), जिससे सल्तनत का खजाना लबालब भरा रहता था। मुगलों ने फसल, धर्म, व्यापार और सुरक्षा से जुड़े कई तरह के टैक्स लागू किए थे, जिनके जरिए सरकार का खर्च और सेना की जरूरतें पूरी की जाती थीं।

इन करों की वसूली से मिली दौलत न सिर्फ शाही तामझाम में खर्च होती थी, बल्कि सड़कों, किलों, प्रशासन और युद्धों की तैयारी में भी लगती थी। आइए जानें मुगल काल में कौन-कौन से टैक्स लगाए जाते थे और उनका उद्देश्य क्या था।

1. खराज (भूमि कर)

मुगल टैक्स सिस्टम का सबसे बड़ा स्रोत था खराज, जो खेती की जमीन पर लगाया जाता था। यह टैक्स किसानों से लिया जाता था और इसकी दर जमीन की गुणवत्ता व फसल की उपज पर निर्भर करती थी। आमतौर पर फसल का 1/3 हिस्सा खराज के रूप में लिया जाता था। इसे ‘जिहत’ भी कहा जाता था।

2. जकात (Zakat)

जकात एक धार्मिक कर था, जो मुस्लिम प्रजा से वसूला जाता था। इसकी दर लगभग 2.5% होती थी और यह अमीर मुसलमानों पर लागू होता था। इस कर का उद्देश्य गरीबों और जरूरतमंदों की सहायता करना था। यह इस्लामी कानून के तहत एक अनिवार्य धार्मिक योगदान था।

Mughal Tax System

प्रतीकात्मक छवि (फोटो सोर्स-इंटरनेट)

जजिया (Jizya)

जजिया टैक्स गैर-मुस्लिम नागरिकों पर लगाया जाता था। इसका मकसद था उन्हें इस्लामिक राज्य में सुरक्षा देना और बदले में टैक्स लेना। अकबर ने इसे हटा दिया था लेकिन औरंगज़ेब ने इसे दोबारा लागू कर दिया। यह टैक्स धार्मिक भेदभाव का प्रतीक भी माना जाता है।

4. चौथ (Chauth)

चौथ एक प्रकार का सुरक्षा कर था, जिसे खासकर व्यापारियों और जमींदारों से वसूला जाता था। बदले में राज्य उनकी सुरक्षा का जिम्मा लेता था। यह टैक्स मुगलों के साथ-साथ मराठों के समय में भी लोकप्रिय रहा।

5. राहदारी (Toll Tax)

राहदारी एक टोल टैक्स था, जो व्यापारियों व यात्रियों से वसूला जाता था जब वे सामान लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते थे। इसका उद्देश्य था व्यापार मार्गों का रखरखाव और सुरक्षा। विदेशी सामानों पर 2.5% से 10% तक की इम्पोर्ट ड्यूटी भी वसूली जाती थी।

6. नजराना (Nazrana)

नजराना टैक्स नहीं था, लेकिन राजा या दरबारी अधिकारियों को भेंट के रूप में दिया जाता था। यह विशेष अवसरों पर या शाही दरबार में हाजिरी देने पर पेश किया जाता था और कई बार यह अनिवार्य जैसा होता था।

7. कटरापार्चा टैक्स (Katra Parcha)

कटरापार्चा टैक्स व्यापारियों और कारीगरों पर विशेष रूप से कीमती सामान, जैसे रेशम व बारीक कपड़ों पर लगाया जाता था। यह बाजार शुल्क से अलग होता था और खासतौर पर कारीगर वर्ग को प्रभावित करता था।

8. जब्त प्रणाली (Zabt)

जब्त अकबर द्वारा शुरू की गई एक राजस्व प्रणाली थी जिसमें जमीन की पैदावार का नियमित आंकलन होता था और उसके हिसाब से कर वसूला जाता था। यह प्रणाली पारदर्शिता और प्रशासनिक नियंत्रण के लिए अहम मानी जाती है।

Location : 
  • New Delhi

Published : 
  • 3 August 2025, 3:12 PM IST