

इंडियन ऑयल को इंटरनेशनल ISCC CORSIA से सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल बनाने की अनुमति मिल गई है। अब पानीपत रिफाइनरी में बचे हुए खाने के तेल से विमान ईंधन बनेगा। दिसंबर से उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है।
खाने के तेल से बने ईंधन से हवाई जहाज उड़ान भरेंगे
New Delhi: देश में अब वह दिन दूर नहीं जब इस्तेमाल किए गए खाने के तेल से बने ईंधन से हवाई जहाज उड़ान भरेंगे। इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) को इस दिशा में एक बड़ी सफलता मिली है, क्योंकि कंपनी को ISCC CORSIA (ICAO) से सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल (SAF) बनाने की आधिकारिक अनुमति मिल गई है। यह मान्यता IOC की पानीपत रिफाइनरी को मिली है, जिससे कंपनी अब इस साल के दिसंबर तक व्यावसायिक उत्पादन शुरू करने की योजना बना रही है।
इंडियन ऑयल इस मान्यता को पाने वाली भारत की पहली कंपनी बन गई है, जो सस्टेनेबल एविएशन फ्यूल का व्यावसायिक उत्पादन करेगी। कंपनी के चेयरमैन अरविंदर सिंह साहनी ने बताया कि, यह केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि भारत के विमानन क्षेत्र में हरित क्रांति (Green Revolution) की दिशा में एक बड़ा कदम है।
आमतौर पर खराब या फेंका गया खाने का तेल कचरे में चला जाता है, लेकिन अब इसी बेकार तेल से विमान के लिए इंधन तैयार किया जाएगा। IOC ने होटल, रेस्तरां, और बड़े खाद्य ब्रांड्स जैसे हल्दीराम से तेल इकट्ठा करने की योजना तैयार की है। यह वही तेल होता है जो एक बार खाना पकाने या तलने के बाद दोबारा उपयोग के लायक नहीं होता।
पानीपत रिफाइनरी (फोटो सोर्स-इंटरनेट)
आईओसी का अनुमान है कि साल के अंत तक पानीपत रिफाइनरी की SAF उत्पादन क्षमता 35,000 टन प्रति वर्ष तक पहुंच जाएगी। इसके लिए पूरे देश से "Used Cooking Oil" (UCO) को एकत्रित करने का संगठित नेटवर्क तैयार किया जा रहा है। कंपनी मानती है कि कच्चे माल की उपलब्धता तो है, लेकिन उसे देश के कोने-कोने से जुटाना सबसे बड़ी चुनौती है।
SAF एक वैकल्पिक बायोफ्यूल है जो पारंपरिक एविएशन फ्यूल की तुलना में 80% तक कम कार्बन उत्सर्जन करता है। इसे मुख्य रूप से खाने के तेल, कृषि अवशेष, और बायो-वेस्ट से बनाया जाता है। इसका उपयोग ना केवल ईंधन के क्षेत्र में क्रांति ला रहा है, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने में भी अहम भूमिका निभाएगा।
ISCC CORSIA (Carbon Offsetting and Reduction Scheme for International Aviation) द्वारा मिली मान्यता यह साबित करती है कि IOC का उत्पादन प्रक्रिया वैश्विक मानकों पर खरी उतरती है। यह मान्यता मिलने के बाद IOC अब अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए भी SAF निर्यात कर सकेगी।
SAF का उपयोग विमानन क्षेत्र में एक Game Changer साबित हो सकता है। यह तकनीक न केवल फॉसिल फ्यूल पर निर्भरता कम करेगी, बल्कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भी भारी कमी लाएगी। यह कदम भारत के Net Zero Carbon Emission लक्ष्य की दिशा में भी अहम माना जा रहा है।