

बिहार चुनाव 2025 को लेकर सियासी माहौल गर्म है, जहां तेजस्वी के नेतृत्व में महागठबंधन और नीतीश के नेतृत्व वाले एनडीए के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है। एंटी-इन्कम्बेंसी और नए विकल्प की तलाश में वोटर्स की राय महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
बिहार चुनाव 2025
Patna: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एक बार फिर से बड़ा राजनीतिक मुकाबला देखने को मिलेगा। राज्य में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में खड़े महागठबंधन के बीच कड़ी टक्कर की संभावना जताई जा रही है। इस बार चुनावी माहौल में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव हैं, जिनमें जातिगत जनगणना और प्रशांत किशोर के जन सुराज आंदोलन ने चुनावी परिप्रेक्ष्य को नया मोड़ दिया है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले 20 वर्षों से राज्य की सत्ता पर काबिज हैं। वे पहले तो एनडीए का हिस्सा थे, फिर महागठबंधन में शामिल हुए, लेकिन उनका राजनीतिक करियर हमेशा ही गठबंधनों पर निर्भर रहा है। नीतीश कुमार की यह पाला बदलने की राजनीति अब उनके खिलाफ एंटी-इन्कम्बेंसी की स्थिति पैदा कर रही है, क्योंकि लोग इस बार उनके विकल्प के रूप में नए चेहरे की तलाश कर रहे हैं।
एक्सिस माए इंडिया के प्रमुख और चुनावी विशेषज्ञ प्रदीप गुप्ता ने एएनआई से बातचीत में कहा कि इस बार के चुनाव में नीतीश कुमार के खिलाफ एंटी-इन्कम्बेंसी की भावना प्रबल हो रही है। उन्होंने कहा, "नीतीश कुमार ने पिछले 20 वर्षों में सत्ता में रहते हुए कई बार गठबंधनों में बदलाव किए हैं, और अब लोग देख रहे हैं कि उनका विकल्प क्या है। चुनावी माहौल में यह साफ दिखाई दे रहा है कि जनता अब पूरी तरह से नीतीश कुमार पर विश्वास नहीं कर रही है।"
बिहार चुनाव 2025
2020 में बिहार में जातिगत जनगणना का आयोजन किया गया था, जिसका चुनावी समीकरणों पर गहरा असर पड़ा है। गुप्ता ने कहा, "जातिगत जनगणना के बाद बिहार में जातीय समीकरणों का राजनीति में अहम स्थान होगा।" बिहार के पिछले विधानसभा चुनाव (2020) में राजद ने 80 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, जबकि बीजेपी ने 75 सीटें हासिल की थीं। इसके बावजूद, आरजेडी का राज्य में वर्चस्व कायम है और अब भी उन्हें चुनाव में फायदा मिल सकता है।
नीतीश कुमार के लंबे शासन और महागठबंधन के नेतृत्व के बावजूद, उनकी पार्टी जेडीयू को अब तेजस्वी यादव और राजद के मुकाबले दबाव का सामना करना पड़ रहा है। प्रदीप गुप्ता ने 2020 के चुनाव का उदाहरण देते हुए कहा, "वह समय जब लग रहा था कि राजद और तेजस्वी यादव जीत जाएंगे, लेकिन जेडीयू के खिलाफ चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी ने अलग से चुनाव लड़ा था। इस कारण जेडीयू की सीटें कम हो गईं। इस बार चिराग पासवान का समर्थन बीजेपी को मिलेगा, जिससे उन्हें और फायदा हो सकता है।"
इस बार के चुनावी परिप्रेक्ष्य को सबसे खास बनाने वाली बात यह है कि प्रशांत किशोर का जन सुराज आंदोलन भी चुनावी मैदान में उतरा है। किशोर, जो पहले जनता दल (यूनाइटेड) और नीतीश कुमार के चुनावी रणनीतिकार रहे हैं, अब एक स्वतंत्र नेता के रूप में चुनावी माहौल को बदलने की कोशिश कर रहे हैं। गुप्ता ने कहा, "प्रशांत किशोर का जन सुराज आंदोलन एक बड़ा बदलाव ला सकता है, क्योंकि बिहार की जनता नए विकल्प की तलाश में है। इस बार चुनाव में नए चेहरे की तलाश ज्यादा दिख रही है।"