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साल 2025 की शुरुआत भारत के लिए दर्दनाक रही। प्रयागराज महाकुंभ भगदड़ से लेकर अहमदाबाद प्लेन क्रैश तक कई त्रासद घटनाओं ने सैकड़ों परिवारों को उजाड़ दिया। यह रिपोर्ट सवाल उठाती है कि क्या सिस्टम के लिए अब इंसानी जान सिर्फ मुआवजे तक सिमट गई है।
New Delhi: साल 2025 की शुरुआत भारत के लिए राहत नहीं, बल्कि एक के बाद एक दर्दनाक त्रासदियों की गवाह बनी। जनवरी से अब तक देश ने कई ऐसी घटनाएं देखीं, जिन्होंने न केवल आम नागरिक की सुरक्षा पर सवाल खड़े किए, बल्कि सिस्टम की संवेदनशीलता को भी कटघरे में ला खड़ा किया।
प्रयागराज महाकुंभ में हुई भगदड़ ने आस्था के सबसे बड़े आयोजन में अव्यवस्थाओं को उजागर किया। इसके बाद नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ में यात्रियों की मौत ने परिवहन व्यवस्था की तैयारियों पर सवाल खड़े कर दिए। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुआ आतंकी हमला एक बार फिर सुरक्षा तंत्र की चुनौती को सामने ले आया।
बेंगलुरु में आईपीएल जीत के जश्न के दौरान हुई मौतें यह बताने के लिए काफी थीं कि भीड़ प्रबंधन आज भी प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है। मुंबई लोकल ट्रेन दुर्घटना ने महानगरों की जर्जर यातायात व्यवस्था की पोल खोली, तो अहमदाबाद प्लेन क्रैश ने विमानन सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता पैदा की। दिल्ली में हुआ कार धमाका इस श्रृंखला की एक और कड़ी बन गया।
इन घटनाओं में सिर्फ आंकड़े नहीं बढ़े, बल्कि सैकड़ों परिवारों की दुनिया उजड़ गई। हर हादसे के बाद जांच के आदेश, मुआवजे की घोषणाएं और कुछ समय बाद मामला ठंडे बस्ते में चला जाना एक तयशुदा प्रक्रिया बनती दिख रही है। सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या 2025 हमें यह सिखा रहा है कि इंसानी जान की कीमत सिर्फ मुआवजे तक सीमित रह गई है? जब तक जवाबदेही तय नहीं होगी और सिस्टम में सुधार नहीं होंगे, तब तक ऐसी त्रासदियां देश को झकझोरती रहेंगी।
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