Rudraprayag: जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से सटी ग्राम पंचायत दरमोला में देवउठनी एकादशी के शुभ अवसर पर धार्मिक परंपराओं का अनुपम संगम देखने को मिला। अलकनंदा और मंदाकिनी के पवित्र संगम स्थल पर भगवान नारायण स्वयं स्नान करने पहुंचे यह मान्यता आज भी यहां जीवंत है। इसी के साथ देव निशानों और पांडवों के अस्त्र-शस्त्रों के स्नान के बाद पांडव नृत्य का शुभारंभ हुआ।
देव निशानों का गंगा स्नान और जागरण
एकादशी की पूर्व संध्या पर दरमोला, तरवाड़ी और स्वीली-सेम गांवों के ग्रामीण पारंपरिक वाद्य यंत्रों ढोल, नगाड़े और रणसिंघे के साथ अलकनंदा-मंदाकिनी के संगम तट पहुंचे।
यहां देव निशानों का गंगा स्नान कराया गया और ग्रामीणों ने पूरी रात भक्ति भाव से जागरण किया। पुजारियों ने देवताओं की चार पहर की पूजा-अर्चना कर धर्म अनुष्ठानों को पूर्ण किया।
रुद्रप्रयाग की केदारघाटी में भगवान नारायण का संगम पर दिव्य स्नान! देव निशानों और पांडवों के अस्त्र-शस्त्रों की पूजा के साथ शुरू हुआ पारंपरिक पांडव नृत्य। देखें आस्था, संस्कृति और भक्ति का अनोखा संगम!#Uttarakhand #Rudraprayag #KedarnathValley #NarayanSnan pic.twitter.com/3tj9IW7REz
— डाइनामाइट न्यूज़ हिंदी (@DNHindi) November 2, 2025
भोर के समय देवताओं का विशेष हवन, आरती और तिलक संस्कार संपन्न हुआ। इसके बाद देव निशानों को फूलों की मालाओं और श्रृंगार सामग्री से अलंकृत किया गया।
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पांडवों के अस्त्र-शस्त्रों की पूजा
कार्यक्रम के दौरान भगवान बद्रीविशाल, लक्ष्मीनारायण, शंकरनाथ, तुंगनाथ, नागराजा, हीत देवता, चामुंडा देवी, भैरवनाथ सहित कई देवी-देवताओं के निशान उपस्थित रहे। साथ ही पांडवों के छोड़े गए अस्त्र-शस्त्रों की विधिवत पूजा-अर्चना की गई।
माना जाता है कि महाभारत काल में पांडवों ने केदारघाटी में तप किया था और अपने अस्त्र यहीं विराम में रखे थे। इन्हीं अस्त्रों की पूजा के साथ पांडव नृत्य की परंपरा की शुरुआत होती है।
देवउठनी एकादशी से जुड़ी मान्यता
लोकमान्यता के अनुसार, देवउठनी एकादशी के दिन भगवान नारायण पांच माह की योगनिद्रा से जागते हैं। इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी का विवाह भी हुआ था। इसी कारण यह पर्व अत्यंत शुभ और मंगलकारी माना जाता है। केदारघाटी में सदियों पुरानी यह परंपरा आज भी उतनी ही आस्था और उल्लास के साथ निभाई जाती है।
केदारघाटी में भक्तिमय वातावरण
देव निशानों की शोभायात्रा जब दरमोला गांव की ओर रवाना हुई, तो भक्तों के जयकारों से पूरा वातावरण गूंज उठा “जय बद्रीविशाल! जय नारायण भगवान!” ढोल-दमाऊं और नगाड़ों की थाप पर देव निशान नृत्य करते हुए आगे बढ़े। इस दौरान स्थानीय जनता ने भंडारे का आयोजन कर श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया।
दो से तीन माह तक चलेगा पांडव नृत्य
ग्राम पंचायत दरमोला में हर वर्ष पांडव नृत्य का आयोजन बारी-बारी से किया जाता है एक वर्ष दरमोला में और अगले वर्ष राजस्व ग्राम तरवाड़ी में। इस बार दरमोला गांव में देव निशानों की स्थापना कर नृत्य की शुरुआत की गई है, जो आने वाले दो से तीन महीनों तक चलेगा।
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इस दौरान पांडवों के जीवन की गाथाएं गीत-संगीत और नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत की जाती हैं। इसे “पाड़व लीला” कहा जाता है, जो श्रद्धा और सांस्कृतिक विरासत का अद्भुत संगम है।
श्रद्धा और परंपरा का प्रतीक आयोजन
कार्यक्रम में पुजारी कीर्तिराम डिमरी, आचार्य शशांक शेखर, गिरीश डिमरी, जसपाल सिंह, एनएस कप्रवान, राकेश पंवार, लक्ष्मी प्रसाद डिमरी, हरि प्रसाद डिमरी, वाणी विलास डिमरी, भक्ति डिमरी, जयपाल सिंह, विजय सिंह, विनोद पंवार, संतोष रावत समेत बड़ी संख्या में स्थानीय भक्त उपस्थित रहे। सभी ने एक स्वर में कहा, यह आयोजन हमारी आस्था, परंपरा और एकता का प्रतीक है।

