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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संभल जिले की जामा मस्जिद में सर्वे के दौरान भड़की हिंसा के मामले में गिरफ्तार किए गए मुख्य आरोपी जफर अली को जमानत दे दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति समीर जैन की एकलपीठ ने गुरुवार को पारित किया।
इलाहाबाद हाई कोर्ट से आरोपी जफर अली को मिली जमानत, संभल हिंसा मामले में हुए थे गिरफ्तार
Prayagraj: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संभल जिले की जामा मस्जिद में सर्वे के दौरान भड़की हिंसा के मामले में गिरफ्तार किए गए मुख्य आरोपी जफर अली को जमानत दे दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति समीर जैन की एकलपीठ ने गुरुवार को पारित किया। कोर्ट के इस फैसले के बाद अब जफर अली की रिहाई की प्रक्रिया जल्द शुरू हो सकती है। बताया जा रहा है कि वह पिछले चार महीने से जेल में बंद थे।
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के मुताबिक, गौरतलब है कि 24 नवंबर 2024 को संभल की जामा मस्जिद में हो रहे सर्वे के दौरान अचानक हिंसा भड़क गई थी। हालात इतने बेकाबू हो गए कि 5 लोगों की मौत हो गई और कई पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। हिंसा के दौरान बड़े पैमाने पर तोड़फोड़, आगजनी और पथराव की घटनाएं हुईं। इस पूरे घटनाक्रम ने प्रदेशभर में सनसनी फैला दी थी।
घटना के तुरंत बाद संभल पुलिस ने कार्रवाई करते हुए मस्जिद के सदर जफर अली के अलावा समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और सांसद जियाउर्रहमान बर्क, सपा विधायक इकबाल महमूद के बेटे सोहेल इकबाल और अन्य के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। यह एफआईआर भारतीय दंड संहिता की गंभीर धाराओं के तहत की गई थी, जिसमें सार्वजनिक शांति भंग करने और हिंसा भड़काने के आरोप शामिल थे।
विशेष जांच दल (एसआईटी) ने इस मामले की गहराई से जांच की। रिपोर्ट के अनुसार, जफर अली को इस हिंसा का मुख्य साजिशकर्ता बताया गया। एसआईटी का दावा था कि जफर अली ने 23 नवंबर की रात को मस्जिद में संभावित सर्वे की जानकारी सपा सांसद बर्क के साथ साझा की थी। इसके बाद क्षेत्र में भीड़ जुटने लगी और अगले दिन सर्वे के दौरान हिंसा भड़क उठी।
जफर अली को पुलिस ने 23 मार्च 2025 को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। उन्हें मुख्य रूप से हिंसा की साजिश रचने, भीड़ को उकसाने और प्रशासन के कार्य में बाधा डालने जैसे आरोपों में हिरासत में लिया गया था। हालांकि अब हाईकोर्ट ने यह मानते हुए जमानत दी है कि मामला ट्रायल के दौरान प्रभावित नहीं होगा।
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद अब यह माना जा रहा है कि जफर अली जल्द ही जेल से रिहा हो सकते हैं। उनके समर्थकों और परिवार वालों में इस आदेश के बाद राहत की लहर है। वहीं, इस प्रकरण की अगली सुनवाई और न्यायिक प्रक्रिया पर पूरे प्रदेश की नजरें टिकी हैं।
यह मामला संवेदनशील धार्मिक स्थल पर सरकारी कार्रवाई के दौरान भड़की हिंसा से जुड़ा होने के कारण राजनीतिक और सामाजिक दोनों ही दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है।