हरदोई में जन्माष्टमी की परंपरा: लकड़ी के सूप में रखकर भक्तों ने बाढ़ में पार की नदी, दिखी भक्ति की अनूठी झलक

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के हरियावां गांव में जन्माष्टमी के अवसर पर एक अनोखी और साहसिक परंपरा निभाई गई। यहां भगवान श्रीकृष्ण को लकड़ी के सूप में रखकर पुजारी और ग्रामीणों ने रात के 12 बजे उफनती सई नदी को तैरकर पार किया। यह परंपरा 1980 से चली आ रही है।

Post Published By: Asmita Patel
Updated : 17 August 2025, 12:30 PM IST
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Hardoi: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर जब पूरे देश में मंदिरों में भजन-कीर्तन और झांकियों का आयोजन हो रहा था, उसी दौरान उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के हरियावां गांव में एक विशेष और रोमांचक दृश्य देखने को मिला। यहां पर सिद्धनाथ मंदिर में हर साल की तरह इस वर्ष भी एक अद्वितीय परंपरा को निभाया गया।

श्रीकृष्ण को सूप में रखकर भक्तों ने पार की उफनती नदी

शनिवार रात ठीक 12 बजे, जब भगवान श्रीकृष्ण के जन्म की घोषणा हुई, तब मंदिर के पुजारी ने द्वापर युग की परंपरा के अनुसार श्रीकृष्ण की मूर्ति को लकड़ी के सूप में रखा और उसे अपने सिर पर उठाकर सई नदी में उतर गए। सई नदी, जिसे भैंसटा नदी के नाम से भी जाना जाता है, इन दिनों बाढ़ के चलते पूरी तरह उफान पर है, लेकिन आस्था के आगे यह उफान भी छोटा पड़ गया।

बाढ़ में भी नहीं टूटी परंपरा

कई ग्रामीण भक्त, जिनमें नान्हे त्रिवेदी, प्रिशु अग्निहोत्री, सर्वेश त्रिवेदी, उत्तम गुप्ता, और राममिलन गुप्ता शामिल थे, नदी में उतरे और तैरते हुए श्रीकृष्ण की मूर्ति को सुरक्षित रूप से नदी पार ले गए। नदी पार करने के बाद वहाँ पूजन-अर्चन हुआ और फिर मूर्ति को वापस मंदिर लाया गया। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान भक्तों के मुख से केवल एक ही जयकारा गूंजता रहा “हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की।”

1980 से निभाई जा रही है यह परंपरा

यह अनूठी परंपरा 1980 से चली आ रही है। हर वर्ष जन्माष्टमी की रात, ग्रामीण भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद उन्हें सूप में रखकर नदी के उस पार ले जाते हैं, जहां उन्हें प्रतीकात्मक रूप से गोकुल ले जाने की प्रक्रिया दोहराई जाती है। यह परंपरा कंस के डर से वासुदेव द्वारा श्रीकृष्ण को यमुना पार गोकुल ले जाने की कथा पर आधारित है।

भक्तों की भारी भीड़, मंदिर में कीर्तन और आरती

इस अद्भुत दृश्य को देखने के लिए मंदिर पर सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु जमा हो गए। रात भर मंदिर परिसर में भजन-कीर्तन और श्रीकृष्ण की भव्य आरती होती रही। श्रद्धालुओं ने कहा कि हम हर साल इस पल का इंतजार करते हैं। यह केवल परंपरा नहीं, बल्कि हमारी श्रद्धा और संस्कृति की पहचान है।

सुरक्षा के बावजूद नदी में उतरे भक्त

इस बार चूंकि नदी पूरी तरह उफान पर थी, ऐसे में प्रशासन की ओर से एहतियात बरतने की चेतावनी भी दी गई थी, लेकिन ग्रामीणों की आस्था और साहस ने इस चेतावनी को भी पीछे छोड़ दिया। श्रद्धालु बोले कि जब श्रीकृष्ण साथ हैं तो डर कैसा? यह परंपरा हमारी आस्था का प्रतीक है, और इसे कोई रोक नहीं सकता।

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