गोरखपुर पुलिस लाइन में बड़ा हादसा: जर्जर भवन की छत गिरने से दीवान की पत्नी गंभीर घायल, सवालों के घेरे में जिम्मेदार

गोरखपुर पुलिस लाइन में एक पुराने आवासीय भवन की छत गिरने से दीवान की पत्नी गंभीर रूप से घायल हो गईं। घटना सरकारी भवनों की जर्जर स्थिति और प्रशासन की घोर लापरवाही को उजागर करती है। अब सवाल उठता है कि क्या इस हादसे पर कोई जिम्मेदार कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी ठंडे बस्ते में चला जाएगा?

Post Published By: सौम्या सिंह
Updated : 3 August 2025, 6:35 PM IST

Gorakhpur: शहर की पुलिस लाइन में स्थित जर्जर आवासीय भवन एक बार फिर हादसे का सबब बन गया। रविवार दोपहर, एलआईयू ऑफिस के सामने बने पुराने सरकारी क्वार्टर में अचानक छत का प्लास्टर और ईंटें भरभराकर गिर गईं। इस हादसे में वहां रह रहे दीवान की पत्नी गंभीर रूप से घायल हो गईं। आनन-फानन में उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उनकी हालत नाजुक बनी हुई है।

सरकारी अनदेखी ने ली जान 

यह घटना न सिर्फ गोरखपुर पुलिस विभाग, बल्कि पूरे सरकारी सिस्टम की लापरवाही और उदासीनता की पोल खोलती है। जानकारी के अनुसार, पुलिस लाइन में स्थित कई पुराने भवन वर्षों से जर्जर अवस्था में हैं, लेकिन मरम्मत और पुनर्निर्माण के नाम पर सिर्फ कागजी औपचारिकताएं पूरी की जाती हैं।

यह पहला मामला नहीं है। जिले में कई सरकारी कार्यालय, विद्यालय और आवासीय भवन इसी तरह खस्ताहाल में हैं। कुछ दिनों पहले ही चरगांवा ब्लॉक के बालापार गांव के प्राथमिक विद्यालय की छत गिरने से एक छात्र घायल हो गया था। उस मामले में शिक्षा विभाग ने तत्काल प्रधानाध्यापक को निलंबित कर दिया, लेकिन सवाल यह है कि पुलिस लाइन में हुए हादसे पर क्या इसी तरह की सख्ती दिखाई जाएगी?

सवालों के घेरे में जिम्मेदार

सबसे चौंकाने वाली बात तब सामने आई जब पुलिस लाइन के रिपेयरिंग इंजीनियर (R.E.) से संपर्क किया गया। उन्होंने न सिर्फ घटना की जानकारी से इनकार किया, बल्कि इसे 'अनभिज्ञता' बता कर अपना पल्ला झाड़ लिया। यह गैर-जिम्मेदाराना रवैया बताता है कि प्रशासनिक तंत्र किस हद तक संवेदनहीन हो चुका है।

मरम्मत के नाम पर खानापूर्ति जारी

स्थानीय लोगों और पुलिसकर्मियों का कहना है कि वे लंबे समय से भवन की जर्जर स्थिति की शिकायत कर रहे हैं, लेकिन विभाग ने कोई ध्यान नहीं दिया। अब जब हादसा हो चुका है, तब भी कोई ठोस प्रतिक्रिया या जवाबदेही सामने नहीं आई है। प्रश्न यह है कि क्या वर्दीधारी जवानों के परिवारों की जान की कोई कीमत नहीं? क्या उन्हें ऐसी खतरनाक इमारतों में रहने को मजबूर करना सिस्टम की विफलता नहीं है?

हादसे ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं

कब तक सरकारी भवनों की मरम्मत को टालते रहेंगे जिम्मेदार?

क्या हर हादसे के बाद ही प्रशासन जागेगा?

क्या अब भी कोई ठोस कार्रवाई होगी या यह मामला भी ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा?

इस हादसे ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो अगला हादसा और भी बड़ा और जानलेवा हो सकता है।

Location : 
  • Gorakhpur

Published : 
  • 3 August 2025, 6:35 PM IST