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यूपी के बाराबंकी से ईरान का है गहरा रिश्ता, खामेनेई की जड़ें भी हैं हिंदुस्तानी

ईरान के वर्तमान शासक से बाराबंकी जिले का गहरा नाता है। पढिये डाइनामाइट न्यूज़ की पूरी रिपोर्ट
Post Published By: Rohit Goyal
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यूपी के बाराबंकी से ईरान का है गहरा रिश्ता, खामेनेई की जड़ें भी हैं हिंदुस्तानी

बाराबंकी: अयातुल्ला खामेनेई के दादा सैय्यद अहमद मूसवी 1830 में बाराबंकी के किंतूर से ईरान गए थे। उनके पोते ने ईरान की तस्वीर बदल दी और अब उनके उत्तराधिकारी शासन कर रहे हैं।

राजधानी के निकटवर्ती बाराबंकी की धरती महाभारतकालीन इतिहास को संजोए हुए है। प्राचीन कुंडेश्वर मंदिर जिस स्थान पर स्थित है, उसे किंतूर कहा जाता है। इसी किंतूर की धरती से ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्लाह खुमैनी का नाता भी रहा है। अब जब युद्ध शुरू हो चुका है गांव के लोग इजराइल के विरोध में हैं और ईरान की जमकर प्रशंसा कर रहे हैं। हालांकि अयातुल्लाह खुमैनी कभी इस गांव नहीं आए, मगर उनके पूर्वजों की पीढ़ियां तमाम दस्तावेजों और यादों को संजोए हुए हैं।

डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार जहां आज पूरी दुनिया ईरान-इजराइल के बीच छिड़े युद्ध से चिंतित है, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि ईरान के वर्तमान शासक से बाराबंकी जिले का गहरा नाता है। जनपद के किंतूर गांव से जुड़े लोगों ने ही ईरान में क्रांति का अध्याय जोड़ा, जिसका बखान खुमैनी की पीढ़ियों के द्वारा किया जा रहा है। मिली जानकारी के अनुसार, ईरान की तत्कालीन सरकार का तख्ता पलट कर एक नई इस्लामी हुकूमत कायम की।

कित्तूर से ईरान गए सैयद अहमद मूसवी के पोते

किंतूर से ईरान गए सैयद अहमद मूसवी के पोते रूहुल्लाह खुमैनी के उत्तराधिकारी ही आज ईरान के सर्वोच्च नेता हैं और इजराइल से मजबूती से जंग लड़ रहे हैं। खुमैनी के पूर्वजों की बात करें तो करीब 1790 में सिरौलीगौसपुर तहसील के किंतूर गांव में सैयद अहमद मूसवी का जन्म हुआ था। पढ़ाई-लिखाई के बाद 1830 में 40 वर्ष की उम्र में अहमद मूसवी अवध के नवाब के साथ धार्मिक यात्रा पर इराक गए। वहां से दोनों ईरान पहुंचे और अहमद मूसवी वहीं के एक गांव खुमैन में बस गए।

उनके पूर्वज बताते हैं कि अहमद मूसवी ने अपने नाम के आगे उपनाम ‘हिंदी’ जोड़ा ताकि यह अहसास बना रहे कि वह हिंदुस्तान से हैं।उन्हें शेरो-शायरी का भी काफी शौक था, जिनकी शायरी की चर्चा आज भी होती है।परिवार बताता है कि मूसवी साहब को हिंदी से अत्यधिक लगाव था, जिसके चलते उन्होंने अपने नाम के आगे ‘हिंदी’ जोड़ा। इसके बाद लोग उन्हें सैयद अहमद मूसवी हिंदी के नाम से जानने लगे।

ईरान के पहले सुप्रीम लीडर रूहुल्लाह के वंशजों का किंतूर गांव स्थित मकान है, जिसे सैयद वाड़ा के नाम से जाना जाता है। पहले यह बड़ा क्षेत्र हुआ करता था, मगर अब सिमट गया है, जिसके चलते यह पुष्टि नहीं हो सकती कि खुमैनी के पूर्वज सैयद अहमद मूसवी किस निर्धारित स्थान पर रहते थे।

इस गांव में लोग इजराइल के खिलाफ हैं। गांव के लोगों का मानना है कि हमारी सोच अपने देश भारत के साथ है। वर्तमान में चल रहे युद्ध में हम लोग ईरान के साथ हैं।

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