Opinion on Nizamuddin Markaz: इंसानियत के लिए खुद को फना करने से बड़ा कोई धर्म नहीं
इस समय वाकई मूसा और फकीर के चरित्र, ईमान और मानसिकता को समझे जाने की नितांत आवश्यकता है| आवश्यक नहीं कि नियमित इबादत/प्रार्थना करने वाला, सुबह-शाम पूजा/अर्चना करने वाला एवं दिन में 5 बार नमाज पढ़ने वाला व्यक्ति धर्म-धर्म चिल्लाते हुए नियमित रूप से धार्मिक स्थलों पर जाएगा तभी वह ईश्वर का दूत और खुदा का बंदा होगा| हो सकता है, सांसारिक मोहमाया से दूर दीन-हीन, फटे-हाल मांगकर खाने वाला फकीर-साधु ऊपर वाले के ज्यादा करीब हो| धर्म की रक्षा के लिए चिल्लाने और बरगलाने की आवश्यकता नहीं पड़ती है| मानवता और इंसानियत के लिए खुद को फना (कुर्बान) करने वाले से बड़ा धार्मिक कोई नहीं हो सकता|