बसपा सुप्रीमो मायावती के इंकार के बाद चंद्रशेखर उर्फ रावण का क्या होगा अगला दांव?

बसपा सुप्रीमो मायावती को बुआ कहने वाले रावण को लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मायावती ने बड़ा झटका दिया है। मायावती ने कहा कि रावण राजनीतिक महत्वाकांक्षा के आधार उनसे रिश्ते जोड़ने की कोशिश कर रहा है, जो एक साजिश है। मायावती के नकारने के बाद चंद्रशेखर उर्फ रावण क्या होगा दांव..पढ़ें डाइनामाइट न्यूज की इस एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में

Post Published By: डीएन ब्यूरो
Updated : 16 September 2018, 4:11 PM IST
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लखनऊः बहुजन समाजवादी पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने रविरवार को लखनऊ में अपने नये आवास में प्रवेश के बाद मीडिया से मुखातिब हुई और हाल ही में जेल से रिहा होकर आये भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर उर्फ रावण को उनको बुआ कहने पर कटघरे में खड़ा किया। बसपा सुप्रीमो ने कहा कि कुछ लोग अपने राजनैतिक स्वार्थ के चलते मुझसे अपनी रिश्तेदारी जोड़ रहे हैं, जो एक साजिश के सिवा कुछ और नहीं है।  

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मायावती ने कहा कि भीम आर्मी जैसे संगठन समाज के सामने कहते कुछ और हैं और करते कुछ हैं। ऐसे संगठन कई समय से बनते चले आ रहे हैं, जो अपना धंधा चलाते हैं। मेरा ऐसे लोगों से कोई रिश्ता नहीं है। मायावती के इस तरह से चंद्रशेखर उर्फ रावण से अपने रिश्तों को एक झटके में खत्म कर दिया। लेकिन इसके बावजूद भी कई सवाल खड़े हो गये। अब सबसे बड़ा सवाल यह खड़ा हो रहा है कि दलितों की लड़ाई लड़ने वाले रावण कैसे अपनी राजनीति को आगे बढ़ाएंगे और कौन उनका हाथ थामेगा? क्या होगा रावण का अगला दांव? 

प्रेस कान्फ्रेंस करती मायावती 

 

अब क्या होगा रावण का

चंद्रशेखर का कहना है कि वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दोबारा से प्रधानमंत्री बनते हुए नहीं देख सकते, क्योंकि मोदी अब थक चुके हैं और उन्हें राजनीति से आराम ले लेना चाहिए। अगर बीजेपी व मोदी को हराना है तो महागठबंधन को एक साथ खड़ा होना पड़ेगा और वो वह उन्हें अपना पूरा सपोर्ट करने के लिए तैयार है।    

फाइल फोटो

  रावण के पास अब खुले हैं ये विकल्प

1. 'बुआ' मायावती के इस तरह से रावण से मुंह मोड़ लेने पर अब चंद्रशेखर के पास और भी कई विकल्प मौजूद हैं। यूपी में महागठबंधन का मुख्य मकसद बीजेपी को 2019 में सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाना है। महागठबंधन में शामिल राष्ट्रीय दल व क्षेत्रीय दल अपने साथ जो भी पार्टी आ रही है उसे साथ लेकर चलना चाहते हैं। 

2. सहारनपुर के शब्बीरपुर गांव में हुई जातीय हिंसा के पीछे भीम आर्मी के संस्थापक रावण को उत्तर प्रदेश पुलिस ने हिमाचल प्रदेश के डलहौजी से गिरफ्तार किया था। उन्हें इस हिंसा के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था।    

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3. तभी से युवाओं में खासे लोकप्रिय हुए रावण की रिहाई के लिए दलित नेता जिग्नेश मेवाणी के जरिए कांग्रेस उन पर लगातार डोरे डाले हुई थी। अब जब मायावती रावण से रिश्ता नहीं बनाना चाहती हैं तो हो सकता है कि कांग्रेस रावण का हाथ थाम लें। 

4. राजनीतिक विशलेषकों की मानें महागठबंधन में शामिल दल अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए 2019 में किसी भी प्रकार से रावण को अपने साथ रखना चाहेंगे। इससे अब ये कयास लगाई रावण से रूठी मायावती को मनाने के लिए ये दल जरूर मायावती को मनाने की कोशिश करेंगे।

5. रावण कई बार पत्रकार वार्ता में न सिर्फ मायावती बल्कि आप पार्टी के प्रमुख व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के भी कामों की तारीफ कर चुके हैं। अब शायद ऐसा भी हो सकता हैं कि आम आदमी पार्टी रावण से मुलाकात कर इस स्थिति को भुनाना चाहेगी और 2019 के चुनावों में रावण को अपने साथ लेकर चलें। 

चेंद्रशेखर उर्फ रावण (फाइल फोटो)

इन कारनामों से रावण हो रहा खासा चर्चित

1. सहारनपुर हिंसा के आरोपित चंद्रशेखर उर्फ रावण आज एक ऐसा नाम बन चुका है जिससे हर कोई राजनीतिक दल उसकी बढ़ती लोकप्रियता को स्वीकार कर रहा है। रावण फिर चाहे कैसे भी लोगों में खासा लोकप्रिय रहा हो इसके पीछे मीडिया की भी भूमिका रही है जिसने रावण को अच्छी करवेज दी है।

2. रावण केंद्र सरकार व प्रधानमंत्री मोदी पर भी टीका-टिप्पणी करने में माहिर है। वह अपनी गिरफ्तारी के लिए बीजेपी को जिम्मेवार मानता है और अपनी रिहाई को भी बीजेपी की साजिश मान रहा है। 

3. मायावती के रावण से रिश्ते में खटास आने के पीछे एक कारण यह भी हैं कि रावण यूपी में दलित युवाओं में अपनी एक छाप छोड़ चुका है। अब इससे बसपा को अपने वोट बैंक के गिरने का भी खतरा महूस हो रहा है। जो रावण के लिए एक संजीवनी बूटी का काम रहा है। 

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4. सोशल मीडिया से जहां बसपा दूर ही रहती हैं वहीं इसके उलट रावण नई तकनीक का भरपूर इस्तेमाल कर चाहे फेसबुक हो, व्हाट्सएप हो या फिर ट्विटर हर जगह अपनी मौजूदगी को दर्ज करवा रहा है। इससे वह पहले से ज्यादा अक्रामक और तेज नजर आ रहा है।

5. अब अगर भीम आर्मी को महागठबंधन व मायावती का साथ नहीं भी मिलता है तो वह अकेले अपने बलबूते अनुसूचित जातियों के वोट बैंक को हासिल करेगा यह न सिर्फ मायावती बल्कि बीजेपी को सत्ता से दूर रखने का सपना देखने वाली मायावती के लिए भी घातक सिद्ध हो सकता है।

 
 

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