अमेरिकी आयोग ने की भारतीय एजेंसियों पर प्रतिबंध की सिफारिश, जानिये ये बड़ा मामला
अमेरिका के एक संघीय आयोग ने भारत में सरकारी एजेंसियों और अधिकारियों को धार्मिक स्वतंत्रता के ‘‘गंभीर उल्लंघन’’ के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए बाइडन प्रशासन से उनकी सम्पत्तियों से जुड़े लेनदेन पर रोक लगाकर उन पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया है। पढ़ें पूरी रिपोर्ट डाइनामाइट न्यूज़ पर
वाशिंगटन: अमेरिका के एक संघीय आयोग ने भारत में सरकारी एजेंसियों और अधिकारियों को धार्मिक स्वतंत्रता के ‘‘गंभीर उल्लंघन’’ के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए बाइडन प्रशासन से उनकी सम्पत्तियों से जुड़े लेनदेन पर रोक लगाकर उन पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया है।
अमेरिकी अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (यूएससीआईआरएफ) ने साथ ही अमेरिकी संसद से अमेरिका-भारत द्विपक्षीय बैठकों के दौरान धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे उठाने और इस पर सुनवाई करने की सिफारिश की।
यूएससीआईआरएफ ने धार्मिक स्वतंत्रता पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट में अमेरिकी विदेश विभाग से कई अन्य देशों के साथ-साथ भारत को धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति पर 'विशेष चिंता वाले देश' के रूप में निर्दिष्ट करने के लिए कहा। यूएससीआईआरएफ 2020 से विदेश विभाग से ऐसी ही सिफारिश कर रहा है, जिन्हें अब तक स्वीकार नहीं किया गया है। यूएससीआईआरएफ की सिफारिशें मानना विदेश विभाग के लिए अनिवार्य नहीं है।
यूएससीआईआरएफ ने अपनी रिपोर्ट के भारत खंड में आरोप लगाया कि 2022 में, भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति लगातार खराब होती गई।
यूएससीआईआरएफ ने अपनी रिपोर्ट में आरोप लगाया कि पूरे वर्ष, भारत सरकार ने राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर धार्मिक रूप से भेदभावपूर्ण नीतियों को बढ़ावा दिया और लागू किया, जिसमें धर्मांतरण, अंतर्धार्मिक संबंध, हिजाब पहनने और गोहत्या को लक्षित करने वाले कानून शामिल हैं, जो मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों, दलितों और आदिवासियों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।
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यूएससीआईआरएफ ने रिपोर्ट में आरोप लगाया, ‘‘राष्ट्रीय सरकार ने आलोचना वाली आवाजों, विशेष रूप से धार्मिक अल्पसंख्यकों और उनकी ओर से वकालत करने वालों को निगरानी, उत्पीड़न, संपत्ति के ध्वस्तीकरण और गैर-कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत नजरबंदी के जरिये दबाना जारी रखा और गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) के तहत निशाना बनाया।’’
डाइनामाइट न्यूज़ संवाददाता के अनुसार विदेश विभाग के उप प्रवक्ता वेदांत पटेल ने सवालों के जवाब में संवाददाताओं से कहा कि यूएससीआईआरएफ विदेश विभाग की शाखा या सरकारी शाखा नहीं है और इसकी रिपोर्ट अमेरिकी लोगों के लिए धार्मिक स्वतंत्रता के महत्व को दर्शाती है।
पटेल ने कहा, ‘‘हालांकि रिपोर्ट की सिफारिशें विदेश विभाग की विशेष चिंता वाले देशों की सूची के साथ कुछ हद तक मेल खाती हैं, लेकिन यह पूरी तरह से निर्णायक नहीं है। ऐसी सरकारों या अन्य संस्थाओं जिन्हें इस रिपोर्ट पर सवाल पूछने हैं या कुछ कहना है, उन्हें सीधे आयोग से सम्पर्क करना चाहिए।’’
अमेरिका के गैर-लाभकारी संगठन, फाउंडेशन ऑफ इंडियन एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज (एफआईआईडीएस) ने यूएससीआईआरएफ की रिपोर्ट को पक्षपातपूर्ण बताते हुए इसकी आलोचना की।
एफआईआईडीएस के खंडेराव कंद ने एक बयान में कहा, ‘‘यूएससीआईआरएफ अदालती मामलों में देरी को तो सूचीबद्ध करता है लेकिन जानबूझकर इस तथ्य को छोड़ देता है कि राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के कार्यान्वयन का आदेश वास्तव में असम उच्च न्यायालय ने दिया था, सरकार ने नहीं।’’
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उन्होंने कहा कि इसके अलावा, रिपोर्ट भारतीय ग्रामीणों के लिए गायों के सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व को स्वीकार करने में विफल रही और इसमें गोहत्या पर संवैधानिक प्रतिबंध का उल्लेख नहीं किया गया है।
उन्होंने कहा कि इसमें अपनी सुविधा के हिसाब से इस तथ्य की उपेक्षा की गयी है कि बुलडोज़र से गिराए गए घर अवैध थे। उन्होंने कहा कि आश्चर्यजनक रूप से यूएससीआईआरएफ कश्मीर में जिहादी मुसलमानों द्वारा हिंदुओं के सिर कलम करने और उनकी लक्षित हत्याओं का उल्लेख नहीं करता।
इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (आईएएमसी) ने भारत को लगातार चौथे वर्ष विशेष चिंता वाले देश के तौर पर उल्लेखित करने के यूएससीआईआरएफ के निर्णय का स्वागत किया।
आईएएमसी के कार्यकारी निदेशक रशीद अहमद ने कहा, ‘‘यह फैसला आईएएमसी की वर्षों से कही जा रही बात की पुष्टि करता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की सरकार ने अल्पसंख्यक समुदायों, विशेष रूप से मुसलमानों और ईसाइयों की धार्मिक स्वतंत्रता का क्रमबद्ध तरीके से उल्लंघन करना जारी रखा है।’’
अहमद ने कहा, ‘‘यह सही समय है कि विदेश विभाग यूएससीआईआरएफ की सिफारिश पर काम करे और भारत को जवाबदेह ठहराए क्योंकि जमीनी स्थिति उसके धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए तेजी से हिंसक और खतरनाक होती जा रही है। हम विशेष रूप से इस बात का स्वागत करते हैं कि रिपोर्ट में पत्रकारों के व्यावस्थागत और भयावह उत्पीड़न पर प्रकाश डाला गया है।’’